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उम्मीद का गलियारा

डेरा बाबा नानक साहिब से गुरुद्वारा दरबार साहिब तक की दूरी पांच किमी से भी कम है, लेकिन बीच में सात दशकों की कांटेदार सरहद है. इस फासले को पाटने के लिए भारत और पाकिस्तान एक गलियारा बना रहे हैं. इस पहल से न सिर्फ इन दो पवित्र स्थानों के बीच आवाजाही आसान होगी, बल्कि […]

डेरा बाबा नानक साहिब से गुरुद्वारा दरबार साहिब तक की दूरी पांच किमी से भी कम है, लेकिन बीच में सात दशकों की कांटेदार सरहद है. इस फासले को पाटने के लिए भारत और पाकिस्तान एक गलियारा बना रहे हैं.
इस पहल से न सिर्फ इन दो पवित्र स्थानों के बीच आवाजाही आसान होगी, बल्कि यह कवायद कूटनीतिक और सामरिक तनातनी से निजात पाने के सिलसिले की शुरुआत भी हो सकती है. चूंकि दोनों देशों को बांटनेवाली सरहद बहुत बाद में बनी है और उससे पहले सदियों से दोनों तरफ बस्तियों और आबादियों का अपनापा रहा था, तो ऐसी कोशिशों की दरकार समूची भारत-पाकिस्तान सीमा पर है. दोनों तरफ से यह बात कही जाती रही है कि बीते दौर की कड़वाहट और रंजिशों को भुलाकर नये सिरे से रिश्तों की तामीर होनी चाहिए. इससे शायद ही किसी को एतराज हो. लेकिन, अगर आतंकवाद, अलगाववाद और घुसपैठ की घटनाएं जारी रहती हैं, तो फिर बीते दौर और मौजूदा वक्त में फर्क कैसे किया जा सकता है?
करतारपुर गलियारा खोलने के साथ भारत कई ऐसी मांगों पर जोर देता रहा है, जिनसे दोनों देशों के लोग और कारोबारी एक-दूसरे के नजदीक आ सकें. इस बाबत कई फैसले भी हुए. श्रीनगर-मुजफ्फराबाद रास्ता खुला, दिल्ली-लाहौर बस चली, समझौता एक्सप्रेस की रवानगी हुई, सामानों की आवाजाही के लिए कायदे नरम हुए, वीजा देने की प्रक्रिया में ढील दी गयी आदि. लेकिन, इसी दौरान कभी संसद पर हमला हुआ, कभी मुंबई को निशाना बनाया गया, कभी जहाज अपहरण किये गये, घुसपैठ जारी रही, आतंकियों को पैसा, हथियार और प्रशिक्षण दिया जाता रहा तथा भारत को तबाह करने की धमकियां दी गयीं. इतना ही नहीं, हाफिज सईद, मसूद अजहर, जकीउर रहमान लखवी जैसे आतंकी सरगनाओं को पाकिस्तानी हुक्मरान सर-आंखों पर बिठाये रहे. कश्मीर के बड़े हिस्से पर पाकिस्तान का अवैध कब्जा तो है ही, जम्मू-कश्मीर को बर्बाद करने में भी पाकिस्तान ने कोई कसर नहीं छोड़ी है. यह सब बदस्तूर जारी है.
पाकिस्तान में चाहे सेना का शासन हो या लोकतांत्रिक सरकार रही हो, आतंकवाद और अलगाववाद उसकी विदेश और रक्षा नीति का अहम हिस्सा रहा है. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की यह बात सही है कि दक्षिण एशिया में गरीबी, बीमारी और पिछड़ेपन जैसे मसले बेहद संगीन हैं तथा भारत-पाकिस्तान हाथ मिला लें, तो इनका हल बहुत मुश्किल काम नहीं होगा, परंतु इसके लिए भरोसे का माहौल बनाने की कोशिशें भी जरूरी हैं.
दोनों देश सरहद को कारोबार के लिए धीरे-धीरे खोलते जाएं और पाकिस्तान आतंक पर नकेल लगाने का काम शुरू कर दे. इतनी कदमताल के बाद खुली बातचीत का मौका तो बन ही जायेगा. खून-खराबे और नफरत ने दोनों देशों का बहुत नुकसान किया है. इसकी भरपाई और आनेवाले दिनों की बेहतरी अमन, कारोबार और आवाजाही के रास्तों से ही संभव है.

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