झारखंड में सुरक्षा तंत्र ही विफल नहीं हुआ है, यहां की पुलिस की कार्यशैली भी संदेह के घेरे में है. इस वैज्ञानिक युग में किसी भी घटना की सच्चाई जानने और उसकी निष्पक्ष जांच करने के लिए पुलिस के पास कई साधन मौजूद हैं. पर लगता है कि कई मामलों में हमारी पुलिस इसका इस्तेमाल करती ही नहीं है.
या करती भी है, तो मात्र खानापूर्ति के लिए. कई कनीय पुलिस अधिकारी तो किसी घटना की जांच की गहराई तक जाने के बजाय आधी-अधूरी सूचना को ही सच मान कर जांच पूरी कर लेने का दावा करते हैं. इसी का नतीजा है कि सच्चई सामने आने पर राज्य पुलिस को शर्मिदगी ङोलनी पड़ती है. पुलिस की साख पर बट्टा लगता है. लोगों में पुलिस के प्रति नाराजगी व अविश्वास की भावना घर करती जाती है. पुलिस की कार्यशैली का ताजा उदाहरण शनिवार को सामने आया है.
मामला बुंडू थाना पुलिस से जुड़ा है. पुलिस जिस युवती की हत्या के जुर्म में तीन युवकों को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी है, घटना के चार माह बाद वह युवती जिंदा निकली. वह अपने घर के लोगों से भी छिप कर पलामू में रह रही थी. घर के लोग उसे मृत समझ कर उसका श्रद्ध कर्म भी कर चुके थे. रांची में देखे जाने के बाद कुछ लोग युवती को पकड़ कर ग्रामीण एसपी के पास ले गये. तब जाकर पता चला कि वह जीवित है. अब भी इस मामले में कई बातों का उजागर होना बाकी है. पुलिस अब तक पता नहीं लगा पायी है कि 15 फरवरी 2014 को बुंडू के पास जिस युवती की अधजली लाश मिली थी, वह किसकी थी.
जिस युवती की हत्या के मामले में तीनों युवकों को जेल भेजा गया है, उनका इस युवती से क्या संबंध था. इस घटना ने पुलिसिया जांच की पोल खोल कर रख दी है. पुलिस ने न सिर्फ अपनी दबंगई दिखा कर जांच पूरी कर लेने का दावा किया, उसने शक के आधार पर केस डायरी तक बना कर कोर्ट में पेश कर दी. अब जब सच्चई सामने आयी है, तो पुलिस की कार्यशैली की भद्द पिटती नजर आ रही है. लोगों में इससे पुलिस के प्रति विश्वास डिगा है. समय की मांग है कि राज्य पुलिस के आला अधिकारी इस पर गहराई से ध्यान दें, ताकि पुलिस की छवि सुधरे. और राज्य की जनता में पुलिस के प्रति बढ़ता अविश्वास दूर हो सके.