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आधी आबादी की आजादी

बचपन से सुनती आयी हूं कि 15 अगस्त 1947 को हमारा देश अंग्रेजों से आजाद हुआ. हम सब गुलामी की जंजीरों से बाहर आ गये और इस कारण स्वतंत्रता दिवस पूरे देश में राष्ट्रीय उत्सव के रूप में मनाया जाता है, पर क्या आजाद भारत के साथ हम सब सच में गुलामी की जंजीरों से […]

बचपन से सुनती आयी हूं कि 15 अगस्त 1947 को हमारा देश अंग्रेजों से आजाद हुआ. हम सब गुलामी की जंजीरों से बाहर आ गये और इस कारण स्वतंत्रता दिवस पूरे देश में राष्ट्रीय उत्सव के रूप में मनाया जाता है, पर क्या आजाद भारत के साथ हम सब सच में गुलामी की जंजीरों से बाहर आ पाये हैं?
अपनी समस्याओं से आजाद हो पाये हैं? हमारे देश की आधी आबादी आज भी अपनी आजादी को पूर्ण रूप से महसूस नहीं कर पायी है. आज भी वह अत्याचारों की जंजीरों में खुद को जकड़ी हुई ही पाती है.
आखिर कब तक वह भ्रूणहत्या, बलात्कार, दहेज प्रथा, यौन हिंसा, घरेलू शोषण जैसे अत्याचारों से घिरी रहेगी? महिलाएं आज भी, चाहे वह गर्भ में हों, आठ वर्ष की हों, 18 वर्ष की हों या 80 की, न घर के भीतर और न ही घर के बाहर पूर्ण रूप से सुरक्षित महसूस कर पा रही हैं.
हर पल एक अनजाने डर, एक अनहोनी के भय से वह घिरी हुई है. आजाद होते हुए भी आखिर कब तक वह इन कुप्रथाओं व हिंसा की बेड़ियों में जकड़ी रहेंगी? आखिर कब वे अपनी आजादी को महसूस कर पायेंगी?
शिल्पा महतो, चक्रधरपुर

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