मिथिलेश कु. राय
युवा रचनाकार
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लड़के का नाम कुछ अजीब सा था. इस तरह का नाम मैंने पहले कभी नहीं सुना था. इससे पहले कोई भी नाम मुझे इतना अद्भुत नहीं लगा था. एक बार मामा जी के ससुर से मेरी मुलाकात हुई थी. उन्होंने बड़े गर्व से अपना नाम बताया था. उन्होंने मुझे अपने नाम का इतिहास भी बताया था कि उनका नाम तो सिर्फ चंद्र है. राज उनके पिता का नाम है. जबकि सिंह ठाकुर से उनके खानदान का बोध होता है. लेकिन इस लड़के का नाम!
वैसे, नाम है क्या? भाषा में नाम मात्र एक संज्ञा है, जिससे व्यक्ति, वस्तु और स्थानों को समझने में सुविधा होती है. यह पहचान नहीं है. पहचान तो कर्म से मिलती है. कर्म से जिस चीज की पहचान होती है, वह नाम के माध्यम से इस जगत में प्रकाश में आता है. बाबा भारती वाली कहानी में डाकू खड़ग सिंह का नाम सुनकर लोग भय में आ जाते थे. गब्बर सिंह के नाम का डंका भी खूब बजा. नाम का अपना एक महात्म्य है.
कुछ दिन पहले मैं एक उर्दू कहानी का अनुवाद पढ़ रहा था. कहानी के शुरू में नाम पर ही आधा पेज लिखा गया था कि मुस्लिम-समाज अपने बच्चों के नाम रखने से पहले बड़े संयम बरतते हैं. वे नाम बहुत सोच-समझकर रखते हैं कि जुबान पर चढ़ जाये और उच्चारण में किसी तरह की कठिनाई न हो. शेष समाज में भी नामांकरण के लिए कई तरीके अपनाये जाते हैं.
बोलचाल की सुविधा के लिए अब तो नामों को छोटा करके बोलने का एक फैशन भी चल पड़ा है. बच्चों के नाम पर गौर कीजिए, तो वहां आपको संगीतात्मकता मिलेगी. लड़कियों के नाम में एक कोमलता भी मिक्स रहती है. उच्च वर्गीय परिवार के बच्चों के नामों में पाश्चात्य संस्कृति की झलक मिलती है. जमींदार लोगों के नामों में मुझे रौब और कड़कपन नजर आया- सुमेर प्रताप सिंह!
नाम के मामले में यह बात सर्वविदित है कि बहुधा यह दूसरे का दिया ही जीवनपर्यंत चलता है. एक बात यह भी देखा गया है कि लोग अपने नाम के आगे बाप-दादा का नाम भी जोड़ते रहे हैं. सरनेम तो पितृसत्तात्मकता की निशानी है ही.
लेकिन इस लड़के के नाम में यह क्या लगा है…! ग्रेजुएशन का यह लड़का अपने वेश-भूषा से पूरा मॉडर्न लग रहा है. जींस-टीशर्ट. बाइक. बढ़िया मोबाइल. गॉगल्स. देखने से यह कहीं से भी ऐसा नहीं लगता है कि यह लड़का चीजों को बहुत गहराई से देखता होगा. लेकिन अपना नाम ‘गौतम विभा झा’ बता रहा है.
विभा झा? उसने बताया- ‘विभा झा मेरी मां का नाम है. तीन साल हो गये. मां की दोनों किडनी फेल है. हम सामर्थ्यानुसार उनका उपचार करा रहे हैं. अब सप्ताह में दो बार डायलिसिस होने लगा है. हम जानते हैं कि अब मां कुछ ही दिन जीवित रहेंगी.
दो साल पहले मैंने अपना नाम बदल लिया. मेरा नाम गौतम था. मां का नाम विभा झा. अब मैं गौतम विभा झा हूं.’ लड़का जहां भी अपना पूरा नाम बताता है, लोग चौंक उठते हैं. लेकिन, इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता. वह जीवनपर्यंत अपनी मां को अपने में जिंदा रखना चाहता है!