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अतिथि देवो भव की परिभाषा
आकार पटेल कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया aakar.patel@gmail.com अनेक दशकों से मैंने कई देशों की यात्रा की है. यह संख्या संभवत: तीस-चालीस के करीब हो सकती है. इनमें से किसी भी देश में मैंने घर आये अतिथि को, चाहे वह मेहमान हाे या अजनबी, पानी पिलाने की परंपरा नहीं देखी है. मेरी मां ने मुझे […]
आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक,
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
aakar.patel@gmail.com
अनेक दशकों से मैंने कई देशों की यात्रा की है. यह संख्या संभवत: तीस-चालीस के करीब हो सकती है. इनमें से किसी भी देश में मैंने घर आये अतिथि को, चाहे वह मेहमान हाे या अजनबी, पानी पिलाने की परंपरा नहीं देखी है. मेरी मां ने मुझे इस परंपरा का पालन करना नहीं सिखाया था, लेकिन जब भी कोई घर आता, तो मैं मां को उसे पानी पिलाते देखता था.
बस, मेरी भी यही आदत बन गयी. चार दशक पहले के मुकाबले आज कहीं ज्यादा अजनबी हमारे दरवाजे पर दस्तक देते हैं. कोरियर देनेवाले, केबल टीवी मरम्मत करनेवाले और इसी तरह के अन्य लोग लगभग रोज ही हमारे घर आते हैं. ये लोग कभी भी यह उम्मीद नहीं करते कि हर घर में इनका मेहमान की तरह स्वागत हो, लेकिन चूंकि यह बात मेरी आदत में शामिल है, तो मैं उनसे पूछ लेता हूं कि क्या वे पानी पीना चाहेंगे.
कुछ वर्षों पहले जब मैंने वाल्मिकी रामायण पढ़ी थी (मेरी दोस्त अर्शिया सत्तार ने उस संस्करण का उत्कृष्ट अनुवाद किया था और उसे पेंगुइन ने छापा था), तो मैं यह देखकर आश्चर्यचकित रह गया था कि यह परंपरा श्रीराम के समय भी विद्यमान थी.
जितनी बार वे नयी जगह जाते, चाहे वह किसी ऋषि की कुटिया हो या गांव के किसी निर्धन व्यक्ति का घर, प्रत्येक घर परंपरा के अनुरूप उन्हें पानी के लिए अवश्य पूछता था. यह हमारी भारतीय परंपरा है और विशेष रूप से हमें इस पर गर्व होना चाहिए. विश्व में मैंने कहीं भी, किसी को भी ऐसा करते नहीं देखा है. हम सभी ‘अतिथि देवो भव’ पंक्ति, जो हमारे एक उपनिषद से ली गयी है, से भलीभांति परिचित हैं. यह पूरी पंक्ति इस तरह है- ‘मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव, अतिथि देवो भव’.
सूरत के अपने स्कूल में हमने इसे पढ़ा था. इसका अर्थ यह हुआ कि माता, पिता, गुरु और अतिथि को ईश्वर के समान आदर देना चाहिए. हममें से जो लोग खुद को हिंदू मानते हैं, उन्हें हमारे ग्रंथ में दिये गये निर्देश की रोशनी में इस बात पर अवश्य विचार करना चाहिए कि हिंदू होने का सही अर्थ क्या होता है?
असम में मताधिकार के नाम पर लोगों के साथ जो कुछ भी हो रहा है, क्या उसमें अापने किसी प्रकार का आदर या सहानुभूति का भाव देखा है? आरोप है कि वहां के 40 लाख लोग, जिनके पास इस बात के प्रमाण नहीं हैं कि वे 1971 से भारतीय नागरिक हैं, वास्तव में बांग्लादेशी हैं.
यहां कुछ लोगों, जैसे भारत के पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के रिश्तेदार, के पास भी ऐसा प्रमाणपत्र नहीं है, उनके प्रति सहानुभूति है. लेकिन धारणा यही है कि ये लोग सच्चे व अच्छे भारतीय हैं और इनका नाम पंजीकरण प्रक्रिया में छूट गया है. मेरी चिंता सभी के लिए है. यहां तक कि अगर कोई बांग्लादेशी नागरिक के बेटे/ बेटी या उनके पोते/ पोती हैं, या खुद प्रवासी हैं, तो भी क्या?
मेरी संस्कृति, मेरा धर्म व मेरी परवरिश मुझसे कहती है कि मुझे उनका ख्याल रखना चाहिए और खासकर वैसे लोग जो गरीब और कमजोर हैं, उनका पूरी मानवता के साथ ख्याल रखना चाहिए. मुझे नहीं लगता कि राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण प्रक्रिया, जो मूल रूप से मुझे क्रूर लगता है, को लेकर हम हिंदू मानवता और मानवीयता दिखा रहे हैं.
जिन लोगों ने बांग्लादेश में जन्म लिया है या जिनके माता-पिता का वहां जन्म हुआ है और वे हमारे देश में काम कर रहे हैं, उनके बारे में हमारी क्या धारणा है? उनके बारे में स्वाभाविक प्रतिक्रिया यही होगी कि वे यहां आतंकवाद में लिप्त हैं व हमारे समाज में घुसपैठ कर रहे हैं और हमारी चीजों का लाभ उठा रहे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल में भी इसी तरह के आरोप लग रहे हैं.
उन्होंने कहा है कि वे गंदे देशाें के नहीं, बल्कि केवल नॉर्वे जैसे देशों के अप्रवासियों को अपने यहां आने देना चाहते हैं. मतलब वे अमेरिका और भारत (वह भी तब जबकि अनेक भारतीय आप्रवासी उच्च मूल्य वाले एच1बी वीजा के लिए आवेदन करते हैं, जो अमेरिका की अर्थव्यवस्था में योगदान देता है) जैसे देश के लोगों को नहीं, बल्कि गोरे देशों के लोगों को अपने यहां आने देना चाहते हैं. यह गुस्सा मुख्य तौर पर मेक्सिको के लोगों के लिए है, जिनके बारे में माना जाता है कि वे ‘मूच’ के लिए यहां आना चाहते हैं. ‘मूच’ एक अमेरिकी अभिव्यक्ति है, जिसे उन लोगों के लिए प्रयोग किया जाता है, जो इस देश की सुविधाओं का लाभ उठाते हैं, जैसे नि:शुल्क घर, सस्ते सार्वजनिक परिवहन और बेरोजगारी लाभ, परंतु वेे आमतौर पर आलसी होते हैं.
मैं अमेरिका को अच्छे से जानता हूं और मेरे अनुभव कहते हैं कि मेक्सिको से आये आप्रवासी के साथ-साथ अवैध गुजराती पटेल आप्रवासी देश के सबसे ज्यादा मेहनतकश लोग हैं. हम पटेल मोटल के बारे में जानते हैं, लेकिन हमें यह भी जानना चाहिए कि इनमें से ज्यातादर लोग गलत वीजा के साथ यहां आये और मोटल रूम की सफाई के साथ अपने कैरियर की शुरुआत की, जो कठिन शारीरिक श्रम की मांग करता है.
बांग्लादेशी या वैसे लोग जो भारतीय हैं, लेकिन उन्हें बांग्लादेशी समझा जा रहा है, के साथ भी बिल्कुल इसी तरह का व्यवहार हो रहा है.अगर हम किसी रेस्टोरेंट के सेवा कर्मचारी व चौकीदार और देशभर में इसी तरह के काम में लगे लोगों पर नजर डालें, तो पायेंगे कि उनमें से ज्यादातर लोग बंगाल के हैं, चाहे वे पूर्वी हिस्से के हों या पश्चिमी हिस्से के. पूरी इटली में अनेक अवैध बांग्लादेशी आप्रवासी रहते हैं, लेकिन वे बिना किसी सवाल के उद्यम व कठिन श्रम कर रहे हैं और वे यहां इसलिए आये हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि यह रहने के लिए अच्छी और सभ्य जगह है. हमें ऐसे लोगों को क्यों खारिज करना चाहिए, जो हमारे यहां इसलिए आये हैं, क्योंकि वास्तव में वे अपने देश से ज्यादा हमारे देश को पसंद करते हैं!
मैं पाठकों से सिर्फ यही कहना चाहता हूं, जिसे वे पहले से जानते हैं कि अमेरिका और यूरोप के उलट हमारे पास नि:शुल्क या सहायताप्राप्त सार्वजनिक आवास नहीं हैं, हमें बेरोजगारी लाभ नहीं मिलता है और हमारे यहां अच्छी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा भी नहीं है. जो गरीब हैं, उनके लिए भारत में निवास करना कठिन है.
इस प्रक्रिया के अगले चरण में जब इन लोगों को विदेशी घोषित किये जाने और इन्हें चिह्नित करने, कि इनके साथ क्या किया जाये, को लेकर हम चर्चा करेंगे, तब हमें इस बात को ध्यान में रखने की जरूरत होगी. और हमें, खासकर हममें से वैसे लोगों को, जो महत्वपूर्ण पदों पर हैं तथा जो हमारी संस्कृति, परंपरा और धर्म पर गर्व महसूस करते हैं, उन्हें खुद से पूछना होगा कि एेसे लोगों के लिए हम ‘अतिथि देवो भव’ को किस तरह परिभाषित करेंगे.
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