।। चंचल।।
(सामाजिक कार्यकर्ता)
महाभारत लड़ा जा चुका है, जो शेष है वह प्रतीक्षा में नहीं है. भीष्म पितामह अपने प्रिय अजरुन से घायल, सरशैया पर हैं. सूर्य के उत्तरायण होने पर ही मृत्यु का वरण करेंगे. सूर्यास्त पर हस्तिनापुर का दोनों पक्ष, कौरव और पांडव अपने पितामह के पास आते हैं. भीष्म पितामह उन्हें नीति की बात बताते हैं. एक सांझ जब नीति की बात चल रही थी की पांचाली को हंसी आ गयी और उसने ठहाका लगाया. यह अनपेक्षित घटना थी. शोक में डूबा कुल अचंभित हो उठा. अजरुन को गुस्सा आया और वे द्रौपदी की तरफ बढे. कृष्ण ने भांप लिया- यह तो महाअनर्थ हो जायेगा. कृष्ण ने अजरुन को रोका- गुस्सा मत हो पार्थ, पहले उससे हंसने का कारण तो पूछो. पांचाली ने जो कारण गिनाये, वह महाभारत का मूल तत्व है.
पांचाली ने पूछा है- जब हमारा चीर हरण हो रहा था, उस समय आपकी नीतियां कहां थीं? लाक्षागृह में आपके प्रिय पांडू जलाये जा रहे थे..वगैरह वगैरह.. पितामह मुस्कुराते हुए बोले- इसे अन्नदोष कहते हैं पुत्री! हम उनका अन्न खा रहे थे. अन्न दोष सियासत में बहुत दमदार तत्व है. यह भीष्म पितामह तक को डिगा देता है. हमारी क्या औकात? इसलिए हे मित्र! इससे विचलित मत हो, इस पर गौर करो. जिस दिन अन्नदोष को समझ लोगे, राजनीति समझ में आ जायगी. इतना कह कर बरगद बाबा उठ खड़े हुए, और बगैर कुछ बोले अपने कुटी की तरफ बढ़ गये, जो नदी के किनारे खड़े बरगद के नीचे अभी हाल ही में बनी है.
लाल्साहेब जो अब तक बाबा को सुन जरूर रहे थे, लेकिन पल्ले कुछ नहीं पड़ा. सो उन्होंने चिखुरी से पूछा- काका! ई बाबा का-का बोल के गया, कुछ समझ में आवा? चिखुरी ने लंबी सांस ली- सब समझ में आवा बेटा, हर बार आया है, हो सकता है इस बार भी समझ में आये पर देर से. तब तक सब कुछ बिगड़ चुका होगा. कहते हुए चिखुरी संजीदा हो गये. अन्य दोख? नवल बुदबुदाये.. लाल्साहेब ने दुरुस्त किया-अन्य दोख नहीं, अन्नदोष कहा है. जिसका खाओगे उसे तो भरना ही पड़ेगा. बाबा यही समझा रहे थे.
यह लो, ये तो फिर लौट आये! उमर दरजी ने बरगद बाबा की ओर इशारा किया जो हौले-हौले चले आ रहे थे. और आकर चिखुरी के बगल तखत पर बैठ गये. चिखुरी ने आसरे को आवाज दिया- एक-एक चाय और हो जाये भाई..बाबा के नाम पर. बाबा मुस्कुराये. चिखुरी जी हम बाबा ना हैं. एक मामूली इंसान हैं. लेकिन आम आदमी नहीं. ये जो जमाना चल रहा है न, इसमें हर एक पर संकट है. यहां तक की भाषा और शब्द भी अपना रूप बिगाड़ रहे हैं. मील के पत्थर पर सिंदूर रगड़ आइये, देखिये दूसरे दिन वहां मेला लग जायेगा. हम उस समाज में जी रहे हैं. आप कितने भी दोखी हों, पातकी हों, चोर-चमचोर हों, लेकिन लिबास दुरुस्त कर लीजिए, पूजे जाने लगेंगे.
कीन उपाधिया से नहीं रहा गया. उन्हें यह लगा कि कैसी महफिल है भाई कि अभी हम टटके जीते हैं, हमारी पार्टी की सरकार बनी है और यहां उसकी चर्चा ही नहीं? सो लगे हाथ कीन ने बाबा से पूछ ही लिया- बाबा राजनीति पर कुछ हो जाये. बाबा मुस्कुराये-बात राजनीति की ही हो रही है मित्र. आप न समङों तो हम का करें. आप की पार्टी जीती है. शपथ ग्रहण भी हो गया. जरा शांत चित्त से सोचो यह पहला चुनाव है जो अपने ही कहे के खिलाफ खड़ा हो रहा है. जिन-जिन मुद्दों को उठाया और कांग्रेस पर इल्जाम लगाया, आज वही अपना कार्यक्रम बता रहे हो. देशभक्ति की भावना को इतना भड़काया की आमजन के भीतर एक जोश ठट्ठा मारने लगा की साहेब के जीतते ही पड़ोसी मुल्क को हथिया लिया जायेगा. महंगाई तुरंत खत्म. बिजली सस्ती औ चौबीसों घंटे. विदेश में जमा पूंजी पहले ही दिन वापस. लेकिन पहले ही दिन ने उनके दिल तोड़ दिये, जो दिल्लगी से नहीं दिल से मुट्ठी भींच कर नारा लगाते थे. हवा गरम करते थे. उनमें उत्साह नहीं है. वो अपने को छला हुआ मान लिये हैं. यह खेल लंबा है मित्र. इसे समझने में वक्त लगेगा.
यह एक नकली गांधी अन्ना से चला था और असली गांधी के मजार पर आकार झुक गया. यह कॉरपो कौन सा रेट है? आजकल अखबारों में हर रोज छपता है. कयूम का सवाल वाजिब रहा. यह दोनों अलग नहीं है. इसे कॉरपोरेट कहते हैं. पूंजीपतियों का घराना. यह अन्न खिलाता है. नेता को. डिब्बा को. उस हर बिकाऊ चीज को खरीदता है, जो फायदा देती हो. यहां तक कि भ्रष्टाचार, घोटाला और गरीबी तक को यह बेचता है. यह खुद भी भ्रष्ट हो सकता है, लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़नेवाले को भरपूर खिलाता है. इसे कहते हैं अन्न दोष. जो खायेंगे उन्हें अदा करना होगा. और यह अदायगी नेता अपने खीसे से नहीं जनता के पाकिट से करती है. और हम आज से एक नये कल की ओर चल पड़े हैं.. अब देखिये किधर निकलते हैं..