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बेमानी तीसरा पक्ष
दो पड़ोसी देश अपने रिश्ते नये सिरे से तय करें, क्योंकि तीसरे पड़ोसी देश की यही मर्जी है- सुनने में यह बात चाहे जितनी विचित्र जान पड़े, पर भारत और पाकिस्तान को लेकर चीन की नीयत कुछ ऐसी है. भारत में चीन के राजदूत लोउ झाओहुई ने कहा है कि सीमा विवाद पर भारत, पाकिस्तान […]
दो पड़ोसी देश अपने रिश्ते नये सिरे से तय करें, क्योंकि तीसरे पड़ोसी देश की यही मर्जी है- सुनने में यह बात चाहे जितनी विचित्र जान पड़े, पर भारत और पाकिस्तान को लेकर चीन की नीयत कुछ ऐसी है. भारत में चीन के राजदूत लोउ झाओहुई ने कहा है कि सीमा विवाद पर भारत, पाकिस्तान और चीन के बीच त्रिपक्षीय बातचीत होनी चाहिए.
राजदूत का तर्क है कि अगर चीन, रूस और मंगोलिया के बीच ऐसा हो सकता है, तो इन तीन देशों के बीच क्यों नहीं. ऐसा प्रस्ताव रखते समय वह यह भूल गये कि किन्हीं दो संप्रभु राष्ट्रों के आपसी संबंध किसी तीसरे राष्ट्र के चाहने या कहने से निर्धारित नहीं होते. विशेष ऐतिहासिक परिस्थितियों में बने-बिगड़े संबंधों में किसी तीसरे पक्ष को हस्तक्षेप की अनुमति नहीं दी जा सकती है.
भारतीय विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया इस सोच के अनुरूप ही है, जिसमें कहा गया है कि त्रिपक्षीय वार्ता का प्रस्ताव चीनी राजदूत की निजी राय हो सकती है, न कि चीनी सरकार का आधिकारिक वक्तव्य. राजदूत की मंशा को हालिया घटनाक्रम के मद्देनजर समझा जा सकता है.
शंघाई सहयोग संगठन के सम्मेलन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकेतों में चीन की वन बेल्ट-वन रोड परियोजना को लेकर भारत की आपत्ति जता दी थी कि कोई भी परियोजना सदस्य देशों की अखंडता और संप्रभुता की कीमत पर आगे नहीं बढ़ायी जानी चाहिए. इस परियोजना के तहत आर्थिक गलियारे के पाकिस्तानी कब्जेवाले कश्मीर से गुजरने की योजना है, जबकि यह हिस्सा भारत का है.
एशिया, अफ्रीका और यूरोप के साथ वाणिज्यिक संपर्क और सहयोग बेहतर करने के मकसद से चीन इस परियोजना को जल्द पूरा करना चाहता है. वह इस परियोजना के सहारे कश्मीर मसले पर भारत और पाकिस्तान के बीच तीसरी ताकत बनने का आकांक्षी है. इसी मंशा को साकार करने के लिए पाकिस्तान ने अपने तथाकथित ‘आजाद कश्मीर’ के संविधान में संशोधन कर अनेक विशेषाधिकार अपने हाथ में ले लिया है.
संशोधन से पहले पाकिस्तानी कब्जेवाले कश्मीर की नुमाइंदगी पाकिस्तानी संसद में नहीं थी और यह इलाका कश्मीर मामलों के मंत्रालय के अधीन था.
इस संविधान संशोधन पर भारत ने कड़ी आपत्ति दर्ज करायी है. शिमला समझौते के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच लिखित करार चला आ रहा है कि द्विपक्षीय मसले दोनों देश आपस में ही बातचीत के जरिये सुलझायेंगे. तब से हर सरकार ने यही रुख अपनाया है.
इसलिए सीमा विवाद हो, युद्धविराम के मामले हों या कश्मीर को लेकर तनातनी हो, हर द्विपक्षीय मसले पर कोई भी बातचीत भारत और पाकिस्तान के बीच ही होनी चाहिए. मौजूदा हालात में चीन का कोई वाजिब हक नहीं बनता है कि वह अपने निहित स्वार्थों को साधने के लिए दो देशों के आपसी मसलों में पंचायती करे. चीनी राजदूत को गैर-जिम्मेदाराना सलाह देने से बचना चाहिए.
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