महात्मा गांधी भारत ही नहीं, पूरे विश्व के लिए एक महान आदर्श, पूजनीय और प्रेरणादायी व्यक्ति रहे हैं. उनकी विचारधारा को अनेक देशों ने सम्मान के साथ अपनाया और अनुकरण किया है. लेकिन, यह कैसी विडंबना है कि गांधी जी के पावन नाम को आज विदेशों में भुनाया जा रहा है. उनकी विरासत और धरोहर को पैसों के लालच में हमारे ही लोग विदेशों में बेच रहे हैं, वो भी खुलेआम. दुख तो इस बात का है कि उनका जन्मस्थल भारत इस समस्त घटनाक्र म पर मूक दर्शक बना हुआ है.
गांधीजी के पत्रों की ब्रिटेन में नीलामी शीर्षक से 15 मई के प्रभात खबर में समाचार प्रकाशित हुआ था, जिसने न जाने कितने देशवासियों को निश्चित रूप से उद्वेलित व पीड़ित किया होगा. ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. इसके पूर्व भी गांधीजी के चश्मे, छड़ी और बिस्तर की चादरों की ऊंची कीमत पर नीलामी की जा चुकी है. स्वाभाविक रूप से, गांधीजी की ये चीजें भारत के संग्रहालयों में सुरक्षित व संग्रहीत होनी चाहिए थीं, जिनके सत्यापित होने की बात भी संस्था द्वारा स्वीकार की गयी है. ये चीजें बाहर कैसे पहुंची या किन लोगों द्वारा पहुंचायी गयी, यह निश्चित रूप से जांच का विषय है.
जिन धरोहरों पर देश का ही एकमात्र अधिकार होना चाहिए था, उन्हीं चीजों को नीलामी में क्यों खरीदना पड़ रहा है? अपमान और शर्म की हद तो तब पार हो गयी जब समाचारों में गांधीजी द्वारा अपने पुत्र हरिलाल को लिखे गये पत्रों को सार्वजानिक रूप से नीलाम करने की बात प्रकाशित हुई. आज तक ऐसा कभी सुनने को नहीं मिला कि अमेरिका की ऐसी चीजों को भारत में नीलाम किया जा रहा है, तो फिर भारतीय वस्तुओं के साथ ऐसा क्यों? इस दिशा में कठोर कानून अतिशीघ्र बनना चाहिए.
पूनम पाठक