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सोना बरसा होरी गाओ

II मिथिलेश कु. राय II युवा रचनाकार परसों रात थान पर हो रहे कीर्तन में जग्गो झूम-झूमकर फगुआ गा रहे थे. उतने ही उत्साह से मंटू ढोल भी बजा रहा था. पीछे से गा रहे सारे लोग इतने तल्लीन होकर ताली बजा रहे थे कि ऐसा लगता था कि सबकी कोई मुराद पूरी हो गयी […]

II मिथिलेश कु. राय II
युवा रचनाकार
परसों रात थान पर हो रहे कीर्तन में जग्गो झूम-झूमकर फगुआ गा रहे थे. उतने ही उत्साह से मंटू ढोल भी बजा रहा था. पीछे से गा रहे सारे लोग इतने तल्लीन होकर ताली बजा रहे थे कि ऐसा लगता था कि सबकी कोई मुराद पूरी हो गयी है.
कक्का ने बताया कि वैसे तो होरी वसंत पंचमी से ही गाया जाने लगता है, लेकिन माघ जाते-जाते और फाल्गुन चढ़ते-चढ़ते अगर आकाश से पानी की चार बूंदें धरती पर गिर जाती हैं, तो चेहरे खिल उठते हैं और होरी गाने में आनंद आने लगता है. यह समय गेहूं की दूसरी सिंचाई का होता है. थोड़ी सी बारिश से पटवन का खर्चा बच जाता है.
कक्का बता रहे थे कि इस समय जब बूंदें धरती पर गिर रही होती हैं, तो लोग किलक उठते हैं और कहने लगते हैं कि सोना बरस रहा है! वे बताने लगे कि जब आकाश से बारिश की बूंदें नीचे गिरती हैं, वह फसल को सिर से नहलाती हुई जड़ों के पास आकर थम जाती हैं.
इस कारण से पौधे कई दिनों तक तृप्त महसूस करते हैं. कक्का कह रहे थे कि फिर देखते ही देखते पौधे हरे कचोर हो जाते हैं. यह नजारा देखकर सबका मन हर्षित हो जाता है और मेघ के लिए दुआ निकलने लगती है. वे कह रहे थे कि इस समय की बारिश के बाद हवा का रुख भी बदल जाता है. पुरवाई ऐसे चलने लगती है कि समझो फगुनाहट का माहौल बन जाता है.
कक्का का कहना था कि मेघ से हमारा नाता ऐसा होता है कि लगता है कि वह हमारे ही परिवार का एक सदस्य है. समय पर नहीं बरसने पर हम उससे नाराज होते हैं. अगर वह समय पर खेतों को पानी दे देता है, तो हम उसे दिल खोलकर दुआएं देते हैं. अगर कभी वह बिना रुके बरसता रह जाता है, तो हम इसे उसकी बदमाशी मानते हैं और उसे खरी-खोटी भी सुनाते हैं.
कभी उसे मनाने के लिए हम उससे मनुहार करते हैं. कक्का ने बताया कि बारिश को मनाने के लिए हमारे कंठ में कई गीत रचे-बसे होते हैं. सावन जब बीत रहा होता है और बिन पानी के धान की फसल बर्बाद हो रही होती है, तब हम एक राग में मेघ से अनुनय-विनय करते हैं. लड़कियां रात को जुते खेतों में मेघ को रिझाने के लिए नाचती-गाती हैं. मेघ की राजी-खुशी में ही अपनी राजी-खुशी होती है.कक्का बता रहे थे कि कितना कुछ बदल गया है, लेकिन खेती-किसानी के तौर-तरीकों में बहुत बदलाव नहीं हो पाया है.
देश में सिंचाई के मद्देनजर न तो नहरों के रख-रखाव पर पर्याप्त ध्यान दिया गया है और न ही बिजली से चलनेवाले मोटरों पर. खेती का सीजन आता है, तो किसान सिंचाई की चिंता में दुबले होते रहते हैं और बार-बार ऊपर की ओर सिर उठाकर मेघ का रंग और हवा का मूड टटोलते रहते हैं. कुछ अच्छा नजर आता है, तो होठों पर खुशी के गीत फूट पड़ते हैं.
पर कभी सूनेपन में चेहरे पर उदासी की रेखाएं फैल जाती हैं. कक्का बोले कि अब गेहूं को ही ले लो. पूस में जैसे-तैसे हम उसकी पहली सिंचाई कर लेते हैं. लेकिन, माघ-फाल्गुन में अगर थोड़ी सी बारिश नहीं हुई, तो हम पर एक और सिंचाई की मार पड़ जाती है.

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