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स्पष्ट रणनीति बने

नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान द्वारा संघर्ष-विराम के उल्लंघन की घटनाएं बर्दाश्त से बाहर होती जा रही हैं. रविवार को राजौरी सेक्टर में पाकिस्तानी गोलाबारी में एक अधिकारी समेत हमारे चार सैनिक शहीद हुए हैं. कुछ सैनिक और नागरिक घायल हैं. ऐसी घटनाओं में बीते पांच हफ्तों में बारह सैनिकों की जान जा चुकी है. इस […]

नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान द्वारा संघर्ष-विराम के उल्लंघन की घटनाएं बर्दाश्त से बाहर होती जा रही हैं. रविवार को राजौरी सेक्टर में पाकिस्तानी गोलाबारी में एक अधिकारी समेत हमारे चार सैनिक शहीद हुए हैं.

कुछ सैनिक और नागरिक घायल हैं. ऐसी घटनाओं में बीते पांच हफ्तों में बारह सैनिकों की जान जा चुकी है. इस साल पाकिस्तान ने 160 से ज्यादा बार संघर्ष-विराम का उल्लंघन किया है. पिछले साल ऐसा 860 बार हुआ था, जिनमें अकेले दिसंबर में 147 घटनाएं हुई थीं. वर्ष 2015 में 387 और 2016 में 271 ऐसे मामले घटित हुए थे.

इन आंकड़ों से साफ जाहिर है कि पाकिस्तान की आक्रामकता लगातार बढ़ती जा रही है और इस पर लगाम लगाने की कवायद तेज करने की जरूरत है. इस साल कश्मीर में सबसे कम बर्फ गिरी है. ऐसे में पाकिस्तान गोलाबारी की आड़ में आतंकियों की घुसपैठ को अंजाम दे रहा है.

भारतीय सेना ने मुस्तैदी दिखाते हुए आतंकियों के लॉन्च-पैड बने पाकिस्तानी चौकियों को निशाना बनाया है. घाटी में आतंकियों के सफाये की कोशिशों को बहुत कामयाबी मिली है. इन कार्रवाइयों से बौखलाया पाकिस्तान अब हमलावर हो रहा है. तनाव के चरम पर होने का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि सीमावर्ती क्षेत्रों में रहनेवाले 40 हजार लोगों को घर-बार छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर शरण लेनी पड़ी है. सभी 84 स्कूलों को कुछ दिनों के लिए बंद कर दिया गया है.

अफसोस की बात है कि दिसंबर में दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक के बावजूद पाकिस्तान के रवैये में सुधार के आसार नहीं दिख रहे हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है कि सरकारी बयानों, कूटनीतिक प्रयासों तथा सेना की चौकसी के बावजूद दोनों देशों के संबंध आज बहुत ही नाजुक और भ्रामक मोड़ पर खड़े दिख रहे हैं.

जब पाकिस्तानी जेल में बंदी कुलभूषण जाधव की माता और पत्नी से हुए खराब व्यवहार पर देश क्षुब्ध था, उसके अगले दिन भारतीय सेना ने नियंत्रण रेखा पार कर जोरदार कार्रवाई की थी. उन्हीं दिनों पाकिस्तानी गोलाबारी भी तेज थी और दोनों देशों के सुरक्षा सलाहकारों की बैठक भी हो रही थी. इन सबसे यही संकेत मिलता है कि पाकिस्तान को लेकर नीतिगत स्पष्टता की कमी है.

जनवरी के शुरू में विदेश मामलों की स्थायी समिति ने लोकसभा में पेश रिपोर्ट में जोर देकर कहा है कि ‘एक राष्ट्रीय सुरक्षा फ्रेमवर्क और पाकिस्तान के बरक्स ठोस रणनीति की जरूरत है.’ पिछले साल अगस्त में भी इस समिति ने कहा था कि द्विपक्षीय बातचीत से पहले ठोस नीति का निर्धारण अनिवार्य तत्व है.

परंतु सरकार इस दिशा में कोई खास पहल नहीं कर पायी है. मौजूदा हालत में सिर्फ बड़े बयानों या फिर युद्ध का राग अलापने से कुछ हासिल नहीं होगा. अभी आवश्यकता है नीतिगत पहल की जिसके आधार पर मजबूत रणनीति बन सके. उम्मीद है कि स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सरकार इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ेगी.

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