सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) राष्ट्रीय संपत्ति या प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर सरकार के साथ राजस्व की साङोदारी के आधार पर व्यवसाय कर रही निजी क्षेत्र की कंपनियों का लेखा परीक्षण कर सकते हैं.
दो जजों की खंडपीठ ने दूरसंचार स्पेक्ट्रम से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान यह निर्णय दिया कि राष्ट्रीय संपत्ति का उपयोग करनेवाली हर संस्था या प्रतिष्ठान जनता और संसद के प्रति जवाबदेह है, क्योंकि इसका स्वामित्व जनता के पास है. माना जा रहा है कि इस निर्णय के दूरगामी परिणाम होंगे, क्योंकि अभी सर्वोच्च न्यायालय 2जी स्पेक्ट्रम, कोयला खदानों के आवंटन और रिलायंस इंडस्ट्रीज व पेट्रोलियम मंत्रालय के बीच कथित सांठ-गांठ के आरोप से जुड़े मामलों की सुनवाई कर रहा है.
भले ही इस आदेश से उद्योग जगत असहज है, लेकिन न्यायालय ने यह स्पष्ट कह दिया है कि संसद को यह जानने का अधिकार है कि सरकार और कंपनियां राष्ट्रीय संपत्ति का किस तरह उपयोग कर रही हैं और उससे प्राप्त धन का सही आकलन व संग्रहण हो रहा है या नहीं. इस तरह के अनेकों मामले सामने आते रहते हैं, जिनमें सरकारें और कंपनियां आपसी मिलीभगत कर राजस्व का नुकसान करती हैं. न्यायालय ने इस बात को रेखांकित करते हुए संसाधनों पर संसदीय नियंत्रण को जरूरी बताया है.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार सरकार प्राकृतिक संसाधनों का न्यासी और वैधानिक स्वामी है. इस अनुच्छेद पर स्पष्टीकरण देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने 1979 में कहा था कि सरकार को इन संसाधनों के आवंटन में संवैधानिक और कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना होगा, अन्यथा ऐसे आवंटनों को निरस्त किया जा सकता है. न्यायालय का वर्तमान फैसला उक्त निर्णय का तार्किक विस्तार है. ऐसे समय में, जब नव उदारवादी नीतियों के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित उद्योग और व्यापार का बड़ा हिस्सा निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा संचालित हो रहा है, इन पर वैधानिक नियंत्रण अत्यंत आवश्यक है. उम्मीद है कि उद्योग जगत इसे सकारात्मक रूप से लेते हुए राजस्व तंत्र को अधिक पारदर्शी बनाने में समुचित सहयोग करेगा.