गांवों-शहरों, देशों-महादेशों और तालाबों-समंदरों तक धरती का कोई कोना ऐसा नहीं जो जलवायु परिवर्तन के कुप्रभावों से अछूता हो. संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध संस्था जलवायु परिवर्तन पैनल द्वारा जापान के योकोहामा शहर में गंभीर विचार-विमर्श के बाद जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि यह संकट दिनोंदिन विकराल होता जा रहा है.
यह संकट वैश्विक है, लेकिन इसका सर्वाधिक असर एशिया पर होगा, जहां निचले क्षेत्रों में रहनेवाले लाखों लोग विस्थापित होंगे, संसाधनों की कमी के कारण लोगों के बीच संघर्ष बढ़ेंगे, अर्थव्यवस्था से बड़े पैमाने पर धन का पलायन होगा और गरमी से होनेवाली मौतों में बढ़ोतरी होगी. 115 देशों के 500 से अधिक वैज्ञानिकों और सरकारी प्रतिनिधियों ने गहन विचार-विचार के बाद इस रिपोर्ट को मंजूरी दी है. उल्लेखनीय है कि यह इस पैनल की दूसरी रिपोर्ट है. पहली रिपोर्ट 2007 में आयी थी. तीसरी रिपोर्ट अगले महीने बर्लिन में जारी होगी. इन रिपोर्टो के आधार पर अगले वर्ष पेरिस में होनेवाली बैठक में एक सार्वभौम जलवायु समझौते की कोशिश होगी. पहली बार इस रिपोर्ट में युद्धों व संघर्षो तथा वैश्विक तापमान के बीच के संबंध को भी रेखांकित किया गया है.
वैज्ञानिकों के अनुसार, तापमान में वृद्धि दुनिया में अस्थिरता पैदा करने तथा स्थिति की भयावहता को बढ़ाने में योगदान दे सकती है. रिपोर्ट के आकलन के मुताबिक, 2050 तक खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तीन से 84 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती है और शहरी आबादी का एक हिस्सा भुखमरी के कगार पर पहुंच सकता है. संकट बरकरार रहा तो पानी की उपलब्धता भी कम होती जायेगी और स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ेंगी. जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक असर गरीबों पर होगा.
आर्थिक वृद्धि और गरीबी उन्मूलन में कमी से गरीबों की संख्या बढ़ेगी. रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि वैश्विक तापमान में मामूली वृद्धि भी मौसम के मिजाज में विनाशकारी परिवर्तन कर सकती है. प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन और बेतहाशा उपभोग की प्रवृत्ति ने आज जलवायु परिवर्तन के संकट को विकराल रूप दे दिया है. फ्रांसीसी दार्शनिक वॉल्तेयर ने कभी कहा था कि ‘मनुष्य सिर्फ बहस करता है, जबकि प्रकृति अपना काम करती है.’ अब तो बस उम्मीद ही की जा सकती है कि दुनिया क्षण-भर ठहर कर कुछ ठोस निर्णय लेगी!