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सांप्रदायिकता की आग में बंगाल
सांप्रदायिक वैमनस्यता का इतिहास हिंदुस्तान में शायद 16 वीं सदी के पहले नहीं पाया जाता होगा. फिर इसे आज 21वीं सदी में भी क्यों याद रखे हुए हैं. आजादी के समय जो बंटवारा हुआ था, वह घाव शायद अब तक नहीं भरा है. आज पश्चिम बंगाल सांप्रदायिकता की आग में जल रहा है. एक मामूली […]
सांप्रदायिक वैमनस्यता का इतिहास हिंदुस्तान में शायद 16 वीं सदी के पहले नहीं पाया जाता होगा. फिर इसे आज 21वीं सदी में भी क्यों याद रखे हुए हैं. आजादी के समय जो बंटवारा हुआ था, वह घाव शायद अब तक नहीं भरा है. आज पश्चिम बंगाल सांप्रदायिकता की आग में जल रहा है.
एक मामूली से फेसबुक पोस्ट को लेकर हिंसा भड़क गयी है. बंगाल की वह भूमि जहां काजी नजरुल इस्लाम एवं रवींद्रनाथ टैगोर को हर घर में पढ़ा जाता है, वहां का नुआखाली वही स्थान है, जहां गांधीजी ने बंटवारे की हिंसा को रोकने के लिए पूरे चार महीने थे. जो कोई हिंसा में तांडव कर रहे हैं, उन्हें समझना चाहिए कि वे राजनीति के हाथों में खेल रहे हैं. सांप्रदायिक सौहार्द बनाये रखने के लिए प्रशासन को गंभीर प्रयास करने की जरूरत है.
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी, इमेल से
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