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पत्नी का गरमी कनेक्शन

अभिषेक मेहरोत्रा व्यंग्यकार अरे साहब, ये अखबार वाले तो रोज बता रहे हैं कि शहर में पारा रोजाना चढ़ रहा है, गरमी के मारे घरों में रहना मुश्किल हो रहा है. पर गुरू! हमारे घर पर तो हम उल्टा ही महसूस कर रहे हैं. पिछले हफ्ते से हमारे घर का तापमान तो काफी कम है, […]

अभिषेक मेहरोत्रा

व्यंग्यकार

अरे साहब, ये अखबार वाले तो रोज बता रहे हैं कि शहर में पारा रोजाना चढ़ रहा है, गरमी के मारे घरों में रहना मुश्किल हो रहा है. पर गुरू! हमारे घर पर तो हम उल्टा ही महसूस कर रहे हैं. पिछले हफ्ते से हमारे घर का तापमान तो काफी कम है, घर में ठंडक सी भी महसूस हो रही है, अरे भाई ऐसा इसलिए, क्योंकि पत्नी हमारी मायके जो गयी हैं. अब तो हम गरमी में कूल-कूल फील कर रहे हैं.

वैसे हर साल लोग जब गरमी से परेशान होते हैं, ऐसे में हमें यह मौसम बड़ा सुहाता है. इसी मौसम में हम अपने बैचलरहुड के दिनों को दोबारा जीते हैं. न सुबह दूध लाने की चिकचिक और न ही मैडम को मेट्रो तक छोड़ने का झंझावात.

हां, घर में यह ठंडक बनी रहे, इसलिए दिन में एकाध बार मैडमजी को फोन घनघना कर जरूर कह देते हैं कि लौट आओ प्रिय, तुम्हारे बिन घर सूना है, और याद से ‘लंबी जुदाई…’ वाला बैकग्राउंड म्यूजिक भी जरूर बजा देते हैं. पर, मन में तो अलग ही सुर बज रहे होते हैं कि तुम कुछ दिन गुजारो मायके में, ताकि हम भी गुजार सकें कुछ दिन अपने जायके से.

गरमियों में कभी-कभी रेलवे वाले भी हमारी मनचाही मुराद पूरी कर देते हैं. जैसे ही पता चलता है कि पत्नी के लौटने का रिजर्वेशन तो वेटिंग में ही रह गया है, तो ऐसा लगता है कि दो-चार दिन की लॉटरी फिर निकल आयी और ऊपर वाला तो इस पर छप्पर फाड़ कर देने के मूड में है.

वैसे इन गरमियों में घर को कूल रखने में हमारे कुछ साथियों की भी अहम भूमिका है. वे शाम होते ही हमारे घर ‘जौ वाली शीतल जल’ लेकर आ जाते हैं और घर पर पत्नी के न होने के चलते जम कर उसका रसास्वाद लेते हैं.

इस दौरान वैसे हम कई तरह के अमृतपान करने से भी नहीं चूकते हैं. पत्नी के अभाव में हमारे कई तरह के भाव व्यक्त होते हैं, चाहे मामला फिर देर रात दोस्तों के साथ मूवी देखने का हो या फिर मदिरालय जाने का, हमारे मुंह से ना शब्द तो फूटता ही नहीं है. हम इतने पॉजिटिव हो जाते हैं कि किसी भी दोस्त की कैसी भी गुजारिश हो, सब पर अपना समर्थन देने से जरा भी परहेज नहीं करते हैं, क्योंकि मन में सिर्फ एक ही गाना बज रहा होता है- चार दिन की चांदनी है…

वैसे एक बार इस बात को लेकर कोफ्त जरूर होती है कि हमारे पड़ोसी वर्मा जी के घर का तापमान हमारे घर से ज्यादा दिनों तक कम रहता है, क्योंकि उनकी ससुराल विदेश में जो है. हमारी तो बस 200 किमी ही दूर है. वैसे नर हैं तो निराश क्यों हों? ऊपरवाले ने सुनी, तो हमारे ससुर साहब का भी जल्द ही विदेश ट्रांसफर होनेवाला है. तो उम्मीद है कि अगले साल की गरमियां तो हमारी कूल ड्यूरेशन भी बढ़ानेवाली है.

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