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कई स्टॉलों के पास अवैध निर्माण

खाली पड़ी जमीन पर भी किया कब्जा डीड में कई विवादित शर्तें जोड़ी गयीं सिलीगुड़ी : उत्तर बंगाल में कच्चे माल की सबसे बड़ी थोक मंडी सिलीगुड़ी रेगुलेटेड मार्केट में स्टालो के आवंटन या हस्तांतरण में नियमों की अनदेखी व फर्जीवाड़े का मामला परत दर परत सामने आ रहा है. आज और भी कई रहस्य […]

खाली पड़ी जमीन पर भी किया कब्जा

डीड में कई विवादित शर्तें जोड़ी गयीं
सिलीगुड़ी : उत्तर बंगाल में कच्चे माल की सबसे बड़ी थोक मंडी सिलीगुड़ी रेगुलेटेड मार्केट में स्टालो के आवंटन या हस्तांतरण में नियमों की अनदेखी व फर्जीवाड़े का मामला परत दर परत सामने आ रहा है. आज और भी कई रहस्य सामने आया है. एक तरफ मार्केट कमेटी अतिक्रमण के खिलाफ सख्त कार्यवाई करती है, वहीं दूसरी तरह मार्केट में ही कई अवैध निर्माण को सही ठहरा रही है. बल्कि आवंटन के दस्तावेज में भी कई विवादित शर्तों को शामिल किया गया है.
प्राप्त दस्तावेजों के मुताबिक सिलीगुड़ी रेगुलेटेड मार्केट के प्रवेश द्वार (गेट-1) के बायीं तरफ 7 स्टालों का आवंटन वर्ष 2010 में किया गया. सिलीगुड़ी रेगुलेटेड मार्केट कमेटी(एसआरएमसी) के मेमो नंबर 636(6) के अनुसार गेट से प्रवेश करते ही बायीं ओर स्थित पहला स्टॉल आशिर्वाद ट्रेडिंग के मालिक संजय पाल को, 635(6) के तहत पार्थ चक्रवर्ती को, 637(6) के तहत रतन कुमार साहा व मनोज कुमार साहा को , 638(6) के तहत अभिषेक चक्रवर्ती को, 639(6) के तहत राम पवित्र राय को, 640(6) के तहत तापस कुंडू व संतोष कुमार प्रसाद को और 641(6) के तहत चंदन घोष व कंचन घोष को आवंटित किया गया. ये सभी मेमो नंबर एसआरएमसी ने वर्ष 2010 के 20 दिसंबर को जारी किया है. इन सभी को 500 वर्गफीट की खाली जमीन पर एग्रो बिज़नेस काम्प्लेक्स बनाने के लिए आवंटित किया. इसके बाद एसआरएमसी ने मालिको के साथ 1 फरवरी 2011 को आवंटन की डीड जारी की.
इन सभी आवंटन के लिए बनी डीड में स्टेट मार्केटिंग बोर्ड की स्वीकृति व दिशा-निर्देशों का जिक्र तो किया गया है, लेकिन डीड में कई विवादित शर्तो को शामिल किया गया है. दस्तावेजो में 10 अक्टूबर 2010 को तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार द्वारा जारी नोटिफिकेशन व सरकारी आदेश का जिक्र है. जबकि दस्तावेज के मुताबिक ऐसा कोई नोटिफिकेशन खोजने पर भी नहीं मिल रहा है. निर्देश में 500 वर्गफीट की जमीन लीज पर काम्प्लेक्स बनाने की बात कही गई है.
जबकि डीड में एसआरएमसी ने जी प्लस 2 इमारत को मंजूरी दी है. डीड के मुताबिक स्वीकृति के 6 महीनों के अंदर निर्माण कार्य पूरा करना था, जबकि 2011 के फरवरी में जारी डीड के 8 वर्ष बाद 2018 के जनवरी में निर्माण कार्य शुरू किया गया. डीड में सबसे बड़ी और विवादित शर्त स्टॉल मालिक इसे किसी भी राष्ट्रीय बैंक को गिरबी रख कर कर्ज ले सकते हैं, की है. यहां एक सवाल उभर कर सामने आता है कि कर्ज की रकम अदा न करने की स्थिति में बैंक जमीन सहित निर्माण को जब्त करेगी या सिर्फ निर्मित इमारत पर कब्जा करेगी.
यहां बता दें कि 1983 में आवंटित मालिको को स्टॉल के पीछे खाली जमीन पर अपने खर्च से शौचालय बनाने की स्वीकृति दी गई थी. जिसे वर्ष 2012 में तत्कालीन महकमा शासक ने अवैध निर्माण करार देकर ढाह दिया था. वर्ष 2018 के जून में सिलीगुड़ी रेगुलेटेड मार्केट कमिटी के सचिव का पदभार संभालने वाले देवज्योति सरकार ने भी 30 अगस्त को अवैध निर्माण व अतिक्रमण के खिलाफ सख्त करवाई करने का एक निर्देश जारी किया. इस निर्देश को केंद्रित कर फल-सब्जी कमीशन एजेंट एसोसिएशन ने एसआरएमसी का ध्यान गेट-1 से सटे स्टाल नंबर बीए-1 के अतिक्रमण की ओर आकर्षित किया.
स्टॉल बीए-1 के मालिक ने 500 वर्गफीट आवंटित जगह के साथ पीछे की 300 वर्गफीट की जमीन अपने कब्जे में ले लिया है. जबकि 4 महीने बाद 18 दिसंबर 2018 को एसआरएमसी सचिव देवज्योति सरकार ने एक निर्देश जारी कर गेट-1 के पास बने सभी स्टॉल को नियम के अनुसार करार दिया है. इसके आधार पर ये कहना गलत नही होगा कि घोटालो की परत पिछले कई वर्षों से जमती आ रही है. वर्षों से दबे इन रहस्यो से पर्दा उठाने पर व्यवसाइयों में हड़कंप है.
इस संबंध में स्टॉल बीए-1 के मालिक संजय पाल ने पहले तो मालिकाना से इनकार किया. बाद में उन्होंने रहस्यों से पर्दा उठाने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि वहां उनका स्टॉल है, लेकिन नंबर उन्हें याद नहीं. वहां स्थित अन्य स्टॉल मालिकों से बात करने के बाद उनसे पूछताछ करनी चाहिए.

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