भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के पूर्वानुमान के अनुसार, देश में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की बारिश सामान्य (लंबी अवधि के औसत का 97 फीसदी) रहेगी. मॉनसून समय पर आये और बरसात भरपूर हो, हमारी अर्थव्यवस्था के लिए इससे अच्छी खबर और क्या हो सकती है? भारत में सालाना बारिश का 70 फीसदी हिस्सा मॉनसून की देन है.
इसी बारिश से तय होता है कि आनेवाले वक्त में बाजार और सियासत की रंगत क्या रहेगी. देश में खेती एक बड़ा हिस्सा (करीब 50 फीसदी) सिंचाई के लिए बारिश के पानी पर निर्भर है. हालांकि, अर्थव्यवस्था में खेती-किसानी तथा उससे जुड़े हिस्से का योगदान अब 15 फीसदी के आसपास रह गया है, परंतु सवा अरब लोगों के इस देश में अब भी आधी आबादी जीविका के लिए खेती पर निर्भर है.
मॉनसून के समय पर आने और अच्छी बारिश होने से ऊपज अच्छी होती है तथा ग्रामीण भारत की आमदनी में इजाफा होता है. यह स्थिति बाजार के लिए सकारात्मक होने के कारण निवेशकों का भरोसा मजबूत बनाने और लोगों में सरकार के प्रति संतोष का भाव भरने में सहायक होती है. लेकिन, मौसम विज्ञान विभाग के पूर्वानुमान को ठीक से समझकर उम्मीद बांधने की जरूरत है. एक तो यह पहला ही पुर्वानुमान है.
नये आंकड़ों के साथ जून के महीने में जब दूसरा पूर्वानुमान आयेगा, तब स्थिति कहीं अधिक स्पष्ट होगी. अगर अपवादस्वरूप 2017 के साल को छोड़ दें, तो बीते पांच सालों में मॉनसून के पहले पूर्वानुमान और बारिश की वास्तविक मात्रा में बहुत ज्यादा अंतर रहा है. ध्यान रखने की दूसरी बात यह है कि मॉनसून का आंकड़ा एक औसत की बात करता है.
इससे यह जाहिर नहीं होता कि देश के किस हिस्से में सामान्य से ज्यादा बारिश होगी और किस हिस्से में सामान्य से कम. धान या गन्ने जैसी फसलों को लंबे समय तक ज्यादा पानी की जरूरत होती है और ऐसी फसलों पर देश के कुछ इलाकों में विशेष जोर है.
सो, देखा यह भी जाना चाहिए कि ज्यादा बारिश की जरूरत के क्षेत्रों में मॉनसून की बारिश का हिसाब क्या रहता है. विभागीय पूर्वानुमान से पहले हाल में निजी क्षेत्र के एक अनुमानकर्ता स्काईमेट का आकलन आया था. उस अनुमान में मध्य भारत में सबसे ज्यादा बारिश की संभावना जतायी गयी है.
पर, स्काईमेट के मुताबिक देश के मध्य भाग में अलग-अलग जगहों पर कहीं 15 फीसदी अतिरिक्त बारिश, कहीं सामान्य से 10 फीसदी कम और कुछ जगहों पर सूखे की भी आशंका है. इसी तरह स्काईमेट ने देश के पूर्वी और पूर्वोत्तर वाले हिस्से में 95 फीसदी के साथ सबसे कम बरिश की बात कही है और दक्षिण के राज्यों में भी कुछ हिस्सों में कम बारिश होने की आशंका है.
सो, मॉनसून के पहले पूर्वानुमान पर भरोसा बांधने से पहले कुछ देर और इंतजार करना होगा तथा किसी भी चिंताजनक स्थिति से निपटने की तैयारी समय रहते कर लेनी चाहिए.