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अर्थव्यवस्था पर चिंता

आर्थिक मोर्चे से आगाह करती खबरें आ रही हैं. अभी स्टेट बैंक के अनुसंधान विभाग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सरकारी निवेश ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने की जरूरत है. इसके बगैर वांछित वृद्धि-दर बनाये रखना मुश्किल होगा. तैंतीस लाख करोड़ की बैलेंस शीट वाला स्टेट बैंक दुनिया के 50 बड़े बैंकों में शुमार […]

आर्थिक मोर्चे से आगाह करती खबरें आ रही हैं. अभी स्टेट बैंक के अनुसंधान विभाग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सरकारी निवेश ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने की जरूरत है. इसके बगैर वांछित वृद्धि-दर बनाये रखना मुश्किल होगा. तैंतीस लाख करोड़ की बैलेंस शीट वाला स्टेट बैंक दुनिया के 50 बड़े बैंकों में शुमार है और रिजर्व बैंक का नोडल बैंक भी है. इसलिए उसकी बात को गंभीरता से लेने की जरूरत है.

बैंक की रिपोर्ट को हाल की कुछ खबरों से भी जोड़ कर देखना होगा. देश के वित्त-मंत्रालय के एक अधिकारी के हवाले से छपी एक खबर के मुताबिक जीएसटी के जरिये तात्कालिक तौर पर राजस्व में आयी कमी को पूरा करने के लिए सरकार बुनियादी ढांचे पर निवेश में कटौती कर सकती है. लेकिन, स्टेट बैंक की रिपोर्ट का कहना है कि सरकार ने अपने खर्चों में कटौती की, तो वृद्धि-दर और नीचे जा सकती है.

जहां तक आर्थिक वृद्धि दर का सवाल है, एनडीए सरकार के बीते तीन सालों में इसका औसत 7.3 प्रतिशत से नीचे रहा है और अगर जनवरी-मार्च 2016 से अप्रैल-जून 2017 के बीच की अवधि को देखें, तो इसमें हर तिमाही वृद्धि-दर में गिरावट आयी है. जून में केंद्रीय सांख्यिकी संगठन के आंकड़ों से जाहिर हुआ कि तीन साल पहले की तुलना में वृद्धि-दर में तीन प्रतिशत की गिरावट आयी है. अर्थव्यवस्था की क्षेत्रवार तस्वीर जीवीए (ग्रॉस वैल्यू एडिशन) की स्थिति से जानी जा सकती है और इसमें लगातार तेज गिरावट जारी है. जीवीए अर्थव्यस्था में हुए कुल उत्पादन और आमदनी के योगफल को कहते हैं.

वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में लगी कच्ची सामग्री तथा अन्य उपादान की कीमत को घटाने के बाद यह योगफल निकलता है. वर्ष 2016 के मार्च में औद्योगिक क्षेत्र में जीवीए की वृद्धि दर 10.7 प्रतिशत थी, जो 2017 के मार्च में घटकर 3.8 प्रतिशत पर आ गयी. जीवीए की गिरावट का एक संकेत यह है कि नौकरियां बढ़ने के बजाय घट रही हैं. इसकी पुष्टि श्रम मंत्रालय के नये आंकड़ों से भी होती है. फरवरी में श्रम मंत्री ने संसद को बताया था कि 2013-14 में संगठित और असंगठित क्षेत्र में रोजगारशुदा लोगों की संख्या 48.04 करोड़ थी, जो 2014-15 में घटकर 46.62 करोड़ हो गयी.

इस अवधि में देश के 29 में से 14 राज्यों में बेरोजगारी दर बढ़ी. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) की नयी रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018 में भारत में पूर्ण रूप से बेरोजगार लोगों की संख्या 1.80 करोड़ तक पहुंच सकती है. चुनौती अपेक्षित उत्पादन और उपभोग के स्तर को बनाये रखने और निजी क्षेत्र के लिए निवेश के आकर्षक अवसर तैयार करने की है.

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