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विदेशी मुल्कों ने भारत के बाजारों की नब्ज पहचानी

सुनील चौधरी/सतीश कुमार रांची : विदेशी मुल्कों ने सबसे पहले भारत के बाजारों की नब्ज को पहचाना. यहां जिन वस्तुओं की मांग थी, उस पर ज्यादा ध्यान दिया. जैसे गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति, डेकोरेटिव लाइट और घरोंमें बनायी जाने वाली रंगोली. इसमें भारत के व्यापारियों ने भी सहयोग किया. महावीर चौक के एक व्यापारी बताते हैं […]

सुनील चौधरी/सतीश कुमार
रांची : विदेशी मुल्कों ने सबसे पहले भारत के बाजारों की नब्ज को पहचाना. यहां जिन वस्तुओं की मांग थी, उस पर ज्यादा ध्यान दिया. जैसे गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति, डेकोरेटिव लाइट और घरोंमें बनायी जाने वाली रंगोली. इसमें भारत के व्यापारियों ने भी सहयोग किया. महावीर चौक के एक व्यापारी बताते हैं कि उन्होंने दीपावली में इस्तेमाल होने वाले कलश का डिजाइन एक पड़ोसी देश में दिया. ठीक इसके अनुरूप ही वहां उत्पाद तैयार कर दिया गया, जो भारत के उत्पादों से काफी सस्ता है.
भारत के लोग इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण और गजट को ज्यादा पसंद करते हैं, पर इसके लिए कीमत कम से कम देना चाहते हैं. यही वजह है कि कई मुल्क भारतीय ग्राहकों को ध्यान में रख कर उनके बजट के अनुरूप उत्पाद तैयार करते हैं. भारतीय झालर लाइट यहां 150 रुपये में मिलती है़ वहीं विदेशी झालर लाइट मात्र 50 रुपये में मिलती है. स्थिति यह हो गयी है कि मिट्टी के दीये और मिट्टी से बनी गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति को छोड़ आज दीपावली में इस्तेमाल होने वाले तमाम सामान पर विदेशी कंपनियों का कब्जा है. हालांकि पटाखा में शिकायत आने पर इसकी मांग कम हुई है.
कैसे होता है कारोबार
व्यापारी बताते हैं कि विदेशों के व्यापारी लगातार भारत का दौरा कर रहे हैं. अब तो विदेशी कंपनियों ने यहां एजेंट रख लिया है, जो उत्पादों को दिखा कर अॉर्डर लेते हैं. कोलकाता और दिल्ली के बड़े आयातक ही ज्यादा आयात करते हैं. फिर रांची, जमशेदपुर व आसपास के शहरों के व्यापारी इन आयातकों से सामान खरीद कर लोकल मार्केट में बेचते हैं. स्थानीय व्यापारियों के लिए आयात करना आसान नहीं है. चूंकि विदेशों में एक उत्पाद एक कंटेनर लेने पर ही सस्ता पड़ता है. यदि कम मात्रा में लिया जाया, तो इसकी दर अधिक होती है. यही वजह है कि अभी भी बड़े आयातकों का ही इलेक्ट्रॉनिक्स मार्केट में कब्जा है.
कम रखते हैं एमआरपी
एमआरपी कम रखा जाता है, ताकि भारत में कम से कम एक्साइज ड्यूटी और कस्टम शुल्क देना पड़े. इस समय 30 फीसदी तक टैक्स लग जाते हैं. यही कारण है कि विदेशी उत्पादों का एमआरपी कम रखा जाता है. झारखंड में कुछ ऐसे भी व्यापारी हैं, जो पड़ोसी देशों से सीधा आयात करते हैं. उनमें से ही एक व्यापारी ने बताया कि वह सबसे पहले वहां जाकर अपनी पसंद के माल का आर्डर देते हैं. फिर ये माल एक एक्सपोर्ट सेंटर में चला जाता है. फिर वहां से शिपिंग के जरिये कोलकाता आता है. कोलकाता से सड़क मार्ग से झारखंड के बाजार में आता है.
ऑर्डर देकर उत्पाद पर अपना लेबल लगाती हैं कंपनियां
विदेश के उत्पादों की मांग भारतीय कंपनियों के बीच भी है. देश की प्रतिष्ठित कंपनियां अपना लेबल लगाकर चीनी उत्पादों को बेचती हैं. उत्पादों के डब्बे पर स्पष्ट तौर पर लिखा जाता है उक्त उत्पाद की मार्केटिंग संबंधित कंपनी द्वारा की जा रही है. ऐसा इंडक्शन कुकर से लेकर बिजली के तार, कुछ मोबाइल फोन व बिजली के उपकरण में मुख्य रूप से होता है.
टैक्स से बचने के लिए भुगतान दुबई में :
एक व्यापारी ने बताया कि कुछ काम कच्चे पुरजे पर भी होते हैं, ताकि भारत में टैक्स न देना पड़े. बड़े भुगतान पर टैक्स से बचने के लिए विदेशी कंपनियों के एजेंट को दुबई में हवाला के जरिये भी भुगतान कराया जाता है. बदले में उनके किसी आदमी को भारत में नकद भुगतान कर दिया जाता है.

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