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झारखंड में धड़ल्ले से चल रही हैं मौत की बसें, नियमों का पालन नहीं कर रहे अधिकतर बस संचालक

पाकुड़ की घटना प्रशासन के िलए सबक रांची : आप अगर झारखंड की बसों में सवारी कर रहे हैं, तो सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि कानून को ताक पर रखकर स्लीपर बसें चल रही हैं. इस वजह से इन बसों में कभी भी कोई हादसा हो सकता है. पाकुड़ के महेशपुर में बुधवार (19 […]

पाकुड़ की घटना प्रशासन के िलए सबक
रांची : आप अगर झारखंड की बसों में सवारी कर रहे हैं, तो सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि कानून को ताक पर रखकर स्लीपर बसें चल रही हैं. इस वजह से इन बसों में कभी भी कोई हादसा हो सकता है. पाकुड़ के महेशपुर में बुधवार (19 फरवरी) को सानिया बस (जेएच 01 बीसी 6153) में आग लग गयी थी. बस रांची से पाकुड़ जा रही थी. घटना के वक्त 25-30 यात्री सवार थे. गनीमत रही कि कोई हादसा का शिकार नहीं हुआ. घटना की वजह प्रथम दृष्टया शॉर्ट सर्किट बताया गया.
लेकिन इस घटना ने साफ कर दिया कि नियम को ठेंगे पर रखकर बसें चलायी जा रही हैं. हैरत यह कि इन सभी बातों से परिवहन विभाग के अधिकारी भी वाकिफ हैं. बावजूद इसके कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है. इस घटना से पहले रामगढ़, हजारीबाग और अन्य जगहों पर भी बसों में आगजनी की घटनाएं हो चुकी हैं. इसके बाद भी जवाबदेह सो रहे हैं. झारखंड में स्लीपर बसों को चलाने की अनुमति नहीं है. फिर भी रांची और अन्य स्थानों पर बेधड़क स्लीपर बसों का परिचालन होता है. इस संबंध में विभागीय अधिकारी से संपर्क की कोशिश की गयी, लेकिन संपर्क नहीं हो सका.
क्या है बस बॉडी कोड
बस बाॅडी कोड 119. इस कोड के मुताबिक बस की लंबाई, चौड़ाई, ऊंचाई कैसी होगी इसका मापदंड केंद्र सरकार के स्तर पर किया गया है. मापदंड पूरा करने के बाद ही बस परमिट जारी किया जाना है.
कैसे चल रहा गोरखधंधा
झारखंड में बस संचालक चेचिस खरीदते हैं. फिर बस को मनमाना आकार दिया जाता है. इसके बाद संचालक बस लेकर बिहार चले जाते हैं. वहां बस का रजिस्ट्रेशन कराते हैं. क्योंकि झारखंड में बिना बस कोड का मापदंड पूरा किये बिना परमिट नहीं दिया जा सकता. इससे झारखंड सरकार को राजस्व के तौर पर हर साल बड़ी क्षति होती है. झारखंड में सिर्फ दो बस बाॅडी बिल्डर्स के पास बस बाॅडी कोड का लाइसेंस है. इनमें सूरत बस बॉडी बिल्डर और बेवको बस बॉडी बिल्डर्स शामिल है.
जारी है टेंपररी परमिट के खेल
पहली बार टेंपररी परमिट जारी होने पर संचालक बस का निर्माण करवाने के लिए ले जाते हैं. बस तैयार होने के बाद नियम के तहत जहां से पहली बार टेंपररी परमिट जारी हुआ है, वहीं पर बस को वापस लाकर उसका परमानेंट रजिस्ट्रेशन कराना है. टेंपररी परमिट एक ही बार बनता है. किसी वजह से समय समाप्त होने पर एक बार रिन्युअल विपरीत परिस्थिति में कुछ दिनों के लिए अधिकारी करते हैं.
हालांकि रिन्युअल का कोई प्रावधान नहीं है. लेकिन झारखंड में तीन बार तक टेंपररी परमिट जारी कर दिया जाता है. कई बस संचालक दोबारा बस का सेल लेटर लेकर ऑनलाइन टेंपररी परमिट बनाकर बस बिहार ले जाकर वहां रजिस्ट्रेशन करा लेते हैं. नियम के तहत चेचिस के मूल्य का 28 फीसदी राजस्व झारखंड को मिलना चाहिए, जो नहीं मिल रहा है.
पांच फीसदी जीएसटी ले रहे हैं एसी बस संचालक
रांची : प्रदेश में एसी बसों का परिचालन होता है. इन बसों की सीट के हिसाब से पांच फीसदी राशि हर माह जीएसटी के तौर पर सरकार को देनी है. पांच फीसदी राशि में से ढाई-ढाई फीसदी राज्य और केंद्र सरकार को जाना है.
यात्रियों को जो टिकट दिये जाते हैं उसमें भी जीएसटी कटौती का कोई उल्लेख संचालकों द्वारा नहीं किया जाता. कहा जा रहा है कि कई संचालक यात्रियों से जीएसटी वसूल करने के बाद भी उसे सरकार के खाते में जमा नहीं कर रहे हैं. इस मामले में बस एसोसिएशन के अध्यक्ष एसएन सिंह ने दावा कि इंटर स्टेट चलनेवाली बसों का सबकुछ ऑनलाइन हो रहा है. ऐसे में जीएसटी से कोई नहीं बच सकता. इसलिए जीएसटी जमा नहीं करने पर बस मालिक को पेनाल्टी के साथ पैसा जमा करना पड़ेगा. लोकल एसी बस में 20 लाख तक की छूट है. इतना पैसा वे लोग कमाते ही नहीं है कि जीएसटी जमा करें.
सीट के आधार पर समझें जीएसटी का गणित
एक एसी बस दिनभर में रांची से जमशेदपुर के बीच दो बार अप डाउन करती है. बस में 37 सीट रहने पर एक तरफ से प्रति सीट 250 रुपये के हिसाब से किराया 9250 रुपये होता है. यानी चार बार में कुल किराया 37 हजार रुपये होता है.
इस कुल राशि का पांच फीसदी 1850 रुपये होता है. एक साल में 365 दिन का जीएसटी 6,75,250 रुपये होता है. वित्तीय वर्ष 2017-18 से जीएसटी लागू है. अभी वित्तीय वर्ष 2019-20 चल रहा है. यानी तीन वर्ष में एक 37 सीट वाले बस का जीएसटी 20,25,750 रुपये होता है. प्रदेश में अगर एक हजार से ज्यादा बसें चलती है, तो एक हजार बस पर जीएसटी 02अरब 25 करोड़ 75 लाख रुपये होता है.

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