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महागठबंधन की फांस में लटक गये डॉ अजय कुमार, बढ़ा विवाद

आनंद मोहन, रांची : 17 नवंबर 2017 को डॉ अजय कुमार को केंद्रीय नेतृत्व ने झारखंड की कमान सौंपी थी. उस वक्त एक साल पहले ही डॉ अजय पार्टी में आये थे और प्रदेश अध्यक्ष बन गये. डॉ अजय ने कम ही दिनों में केंद्रीय नेतृत्व का भरोसा जीत लिया. लेकिन 18 महीने में ही […]

आनंद मोहन, रांची : 17 नवंबर 2017 को डॉ अजय कुमार को केंद्रीय नेतृत्व ने झारखंड की कमान सौंपी थी. उस वक्त एक साल पहले ही डॉ अजय पार्टी में आये थे और प्रदेश अध्यक्ष बन गये. डॉ अजय ने कम ही दिनों में केंद्रीय नेतृत्व का भरोसा जीत लिया. लेकिन 18 महीने में ही बतौर अध्यक्ष डॉ अजय के राजनीतिक सफर पर विराम लग गया़ क्योंकि लोकसभा चुनाव से ही डॉ अजय के साथ प्रदेश नेताओं के विवाद का प्लॉट तैयार होने लगा था. वहीं दूसरी तरफ राज्यसभा चुनाव में मिली जीत के बाद से डॉ अजय कुमार की झामुमो से नजदीकी बढ़ने लगी.

इसके बाद डॉ अजय ने लोकसभा में झामुमो-झाविमो के साथ गठबंधन की जोरदार पैरवी की और आलाकमान ने सुनी. लेकिन लोकसभा के टिकट बंटवारे में डॉ अजय के खिलाफ एक के बाद एक नेता खड़े होते चले गये. हजारीबाग सीट को लेकर किचकिच थी. कांग्रेस प्रभारी आरपीएन सिंह से लेकर सुबोधकांत सहाय का खेमा योगेंद्र साव या उनके रिश्तेदार को उतारना चाह रहा था़
योगेंद्र साव और निर्मला देवी का मामला केस में फंस गया. इसके बाद योगेंद्र साव की बेटी अंबा प्रसाद की लॉबिंग होने लगी. प्रदेश अध्यक्ष डॉ अजय, अंबा प्रसाद को उम्मीदवार बनाने के लिए तैयार नहीं थे. उन्होंने गोपाल साहू को प्रत्याशी बनाने के लिए प्रभारी को राजी कर लिया.
लोकसभा के टिकट बंटवारे की कहानी ने नया मोड़ लिया : इसके बाद खूंटी में लोकसभा के टिकट बंटवारे की कहानी शुरू हुई. यहां कांग्रेस के प्रदीप बलमुचु भी उम्मीदवार थे. प्रभारी आरपीएन सिंह भी शुरू में पक्ष में थे. इस सीट से डॉ अजय कुमार ने पहले दयामनी बारला का नाम आगे बढ़ाया. हालांकि दयामनी बारला की जीत की संभावना पार्टी को नहीं लगी. लेकिन साथ ही बलमुचू का भी टिकट कटा. इस सीट से चुनाव लड़ चुके कालीचरण मुंडा पर ही पार्टी ने दांव लगाना उचित समझा.
प्रदीप बलमुचु बिदक गये. फिर धनबाद सीट की बारी आयी. इस सीट से ददई दुबे, राजेंद्र सिंह, राजेंद्र सिंह के बेटे अनूप सिंह सभी दावेदार बन रहे थे. लेकिन इस सीट पर केंद्रीय नेतृत्व का फरमान आया. दिल्ली के रणनीतिकारों ने कीर्ति के लिए धनबाद सीट से जुगाड़ लगायी. उस खेमे से डॉ अजय की नजदीकी थी.
डॉ अजय भी कीर्ति को धनबाद से लड़ाने के लिए तैयार हुए. दिल्ली के एक होटल में कीर्ति आजाद के साथ प्रभारी की मुलाकात हुई. प्रभारी भी राजी हुए. धनबाद से पत्ता कटने के बाद ददई दुबे, राजेंद्र सिंह सहित कई नेता डॉ अजय से नाराज हो गये.
लोस चुनाव के बाद डॉ अजय की घेराबंदी : इसके बाद लोहरदगा सीट से सुखदेव भगत को उम्मीदवार बनाये जाने से रामेश्वर उरांव नाराज हुए. प्रभारी आरपीएन सिंह ने भी सुखदेव की उम्मीदवारी पर हामी भरी.
इधर, गोड्डा सीट पर गठबंधन ने पूरी तसवीर ही बदल दी थी़ डॉ अजय इस सीट के कारण झाविमो के साथ समझौता तोड़ने के पक्ष में नहीं थे़ बाबूलाल मरांडी को यह सीट प्रदीप यादव के लिए हर हाल में चाहिए थी. प्रदीप यादव उम्मीदवार बने, तो फुरकान अंसारी तेवर में आ गये़
इस तरह लोकसभा चुनाव ने पूरी तरह से डॉ अजय के खिलाफ प्रतिरोध का माहौल तैयार कर दिया़ सुबोधकांत सहाय चुनाव हार गये़ डॉ अजय को जिस गठबंधन पर भरोसा था, मोदी फैक्टर में सब हवा हो गया़ केवल चाईबासा जीत पाये़ चुनाव के बाद सभी विक्षुब्ध एक साथ हो गये और डॉ अजय की घेराबंदी करने लगे. इसके बाद कांग्रेस की कहानी यहां तक पहुंच गयी़

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