पटना : भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली का बिहार से गहरा लगाव था. वर्ष 2005 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान जेटली बिहार भाजपा के प्रभारी थे. यह उनके कुशल राजनीतिक प्रबंधन का ही कमाल था कि इस चुनाव में लालू-राबड़ी की सरकार चली गयी. हालांकि, एनडीए को पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाया, लेकिन एक बार राजद की सरकार गयी तो फिर दोबारा वह अपने बलबूते कभी सरकार नहीं बन पाया.
1974 के छात्र आंदोलन के नेता रहे अरुण जेटली का बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से व्यक्तिगत संबंध रहे थे. जिन दिनों बिहार में राजद को सत्ता से हटाने के लिए नये राजनीतिक समीकरण बनाने की तैयारी चल रही थी, अरुण जेटली ने भाजपा को नीतीश कुमार को नेता मान कर चुनाव में जाने की सलाह दी थी.
उन्होंने न सिर्फ सलाह दी, बल्कि लालकृष्ण आडवाणी को बताकर पिछड़ा नेतृत्व को उभारते हुए नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव मैदान में जाने का अपना निर्णय सुना दिया था. भाजपा और जदयू के बीच उन्हें कड़ी के रूप में देखा जाता था. बिहार के भाजपा नेताओं से उनके व्यक्तिगत ताल्लुक थे. जो नेता उनसे मिलते थे, उनके पारिवारिक से राजनीतिक जीवन तक की वह चर्चा करते थे.
राज्य सरकार में स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय बताते हैं, पार्टी का कोई भी कार्यकर्ता उनसे मिल सकता था. दूसरी पंक्ति के नेता को खड़ा करने और संगठन को धार देने में उनका कोई सानी नहीं थी. बिहार भाजपा के उपाध्यक्ष देवेश कुमार कहते हैं, जेएनयू में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के जब अध्यक्ष थे, उन दिनों जेटली छात्रों में अधिक लोकप्रिय थे.
कई बार जेएनयू कैंपस में उनका भाषण कराया. इसके बाद एक पत्रकार और भाजपा के मुख्य प्रवक्ता के रूप में उनका सानिध्य रहा. देवेश बताते हैं, व्यक्तिगत संबंध को वह इतने तरजीह देते थे कि मेरे बच्चे के जनेऊ और मां का निधन होने पर अंतिम संस्कार के पूरे समय तक वह बैठे रहे. मुझे भाजपा ज्वाइन करने और बिहार में काम करने की भी उनकी ही सलाह थी.
2019 के लोकसभा चुनाव में वह बिहार नहीं आये, लेकिन नयी दिल्ली से ही सक्रिय रहे. बीमार होने के बावजूद उन्होंने चुनावी रणनीति बनाने में निर्णायक भूमिका निभायी. भाजपा में अति पिछड़ा नेता उदय प्रजापति कहते हैं, वह विशाल दिल वाले थे. लोकसभा चुनाव में बिहार भाजपा के जिन सांसदों के टिकट कट गये, उन्हें संगठन कार्यों के लिए मनाना और पार्टी के साथ चलने की सलाह दी.