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पटना : प्राइवेट स्कूल प्रतियोगिताओं व फेयर के नाम पर काटते हैं अभिभावकों की जेब

आनंद मिश्र पटना : प्राइवेट स्कूल हर सेशन में मंथली फीस तो बढ़ाते ही हैं, साथ में तयशुदा दुकानों से किताबें खरीदने को मजबूर कर और चैरिटी, पिकनिक आदि के नाम पर भी बच्चों से अतिरिक्त पैसे वसूलते हैं. स्कूलों में अब प्रतियोगिताओं व फेयर का चलन बढ़ा कर अभिभावकों पर वित्तीय बोझ बढ़ाया जा […]

आनंद मिश्र
पटना : प्राइवेट स्कूल हर सेशन में मंथली फीस तो बढ़ाते ही हैं, साथ में तयशुदा दुकानों से किताबें खरीदने को मजबूर कर और चैरिटी, पिकनिक आदि के नाम पर भी बच्चों से अतिरिक्त पैसे वसूलते हैं.
स्कूलों में अब प्रतियोगिताओं व फेयर का चलन बढ़ा कर अभिभावकों पर वित्तीय बोझ बढ़ाया जा रहा है, जिसमें समय-समय पर एक से डेढ़ हजार रुपये खर्च होना आम बात है. किताब-कॉपी व स्कूल ड्रेस के अलावा स्कूलों ने प्रतियोगिताओं को भी कमाई का जरिया बना लिया है, जिसमें एंट्री फीस से लेकर बच्चे को तैयार करने तक का खर्च वहन करना पड़ता है.
इनडोर व आउटडोर कंपीटीशन : स्कूल में प्रतियोगिता या किसी फेयर का आयोजन किया जाता है. चयनित अथवा इच्छुक बच्चों को सौ से पांच सौ रुपये तक एंट्री फीस चुकानी पड़ती है.
मेकअप व ड्रेस पर खर्च : अभिभावक बताते हैं कि प्रतियोगिता में बच्चों की भूमिका के अनुसार उसका मेकअप भी उन्हें ही करना पड़ता है. मेकअप, ड्रेस एंट्री फीस आदि पर कुल मिला कर डेढ़ से दो हजार रुपये तक का खर्च आता है.
इवेंट्स एवं दूसरे आयोजनों के जरिये स्कूल कर रहे अच्छी-खासी कमाई, बढ़ रहा आर्थिक बोझ
प्रतियोगिताओं या किसी फेयर के दौरान स्कूल प्रायोजक भी ढूंढ़ लेते हैं. एक अभिभावक ने बताया कि पिछले ही दिनों शहर स्थित एक स्कूल में साइकिल रेस प्रतियोगिता हुई. उनके तीन बच्चे उसी स्कूल में पढ़ते हैं, अत: 100 रुपये एंट्री फीस के हिसाब से उन्हें तीन सौ रुपये देने पड़े. स्कूल के ऑफिस को इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है. वहीं दूसरी ओर क्लास में शिक्षक या शिक्षिका द्वारा बच्चों को एंट्री फीस देने को कहा जाता है.
अभिभावकों ने कहा
प्रतियोगिताओं को भी स्कूलों ने कमाई का जरिया बना लिया है. इसके लिए भी वे तयशुदा दुकान से ड्रेस की खरीदारी करने को कहते हैं. यदि बच्चे इन्कार करें, तो स्कूल दबाव बनाते हैं.
रमेश कुमार, कदमकुआं
पहले प्रतियोगिताएं होती थीं, तो बच्चे पुरस्कार के रूप में कुछ लेकर आते थे, लेकिन अब तो उसमें घर से खर्च करना पड़ता है. दरअसल इसे भी कमाई का जरिया बना लिया गया है.
सुरेंद्र कुमार, राजेंद्र नगर
गरीब बच्चे छोड़ रहे हैं स्कूल
दूसरी ओर प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत कोटे की सीटों पर नामांकित कमजोर व अभिवंचित वर्ग के बच्चों की स्थिति ही कुछ अलग है. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार पाठ्यक्रम से अतिरिक्त गतिविधियों व शिक्षा पर खर्च के कारण इस वर्ग के बच्चे बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं.
हालांकि इसका एक कारण अंग्रेजी में बोल-चाल भी है. अभिभावकों की मानें, तो किताबें तो स्कूल में मिल जाती हैं, लेकिन पाठ्यक्रम के अलावा तरह-तरह की गतिविधियों का खर्च बहुत अधिक होता है, जिसके चलते वे स्कूल छोड़ देते हैं.

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