पटना : बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन का आज एक अहम दिन है. बिहार व देश की नजर आज उनके द्वारा उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर लिये जाने वाले फैसले पर है. लोगों के दिमाग में यह सवाल है कि वे तेजस्वी के खिलाफ कार्रवाई करेंगे या फिर अपने अनूठे राजनीतिक शैली के कारण बीच का कोई ऐसा रास्ता निकालेंगे जो अप्रत्याशित होगा और लोगों को भौंचक कर देगा. राष्ट्रीय जनता दल के नेता व लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी यादव पर पिछले दिनों सीबीआइ ने प्राथमिकी दर्ज की है,आवास पर छापेमारीकी हैऔर उनसे पूछताछ की है. उनके परिवार पर पिता के रेलमंत्री रहते रेलवे के होटलों की नीलामी के बदले अचल संपत्ति लिये जाने का आरोप है.
जीतन राम मांझी के कुछ महीनोंकेशासन को छोड़कर पिछले 12 सालों से बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार ने अबतकमांझी सहित अपनेचार मंत्रियोंसेइस्तीफा लिया है.येइस्तीफे सामान्य और आरोपों के आधार पर लियेगये,जबकि तेजस्वी यादव पर अपेक्षाकृत अधिकबड़ा व गंभीर आरोप लगा है. हालांकि लालूप्रसादयादवपुत्रके बचाव मेंकह रहे हैं कि जिससमयकायह मामला है, उससमय तेजस्वी नाबालिग थे.
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दरअसल, नीतीश कुमार हमेशा वही फैसला नहीं लेते जिसका लोग अनुमान लगाते होते हैं या हालात जिसके अनुरूप होता है. वे चौंकाने वाले फैसले लेते हैं और उसके पीछे इतने मजबूत तर्क देते हैं कि आलोचकों के पास बहुत कुछ कहने का या सवाल उठाने का विकल्प नहीं बचता है. नीतीश के लंबे राजनीतिक जीवन व विशिष्ट राजनीतिक शैली को बारीक ढंग से देखने पर यह समझा जा सकता है.
आज जब राजगीर से स्वास्थ्य लाभ कर लौटे नीतीश कुमार अपने नेताओं के साथ बेहद अहम औरनिर्णायक बैठक कर रहे हैंतब भीयहतय है कि उनकेदिमागमें पूरे राजनीतिक परिदृश्य को लेकरएक स्पष्ट सोच व आइडिया होगा. और,अपने प्रमुख नेताओं कीसलाहव विधायकों की राय-मंतव्य जानकर वेउसीसोच व आइडिया के अनुरूप फैसला लेंगे.
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1990 के दशक में लालू प्रसाद यादव से अलगाव पर भी नीतीश के तर्क बेहद ठोस थे और जब उन्होंने भाजपा को छोड़ा तो उसके पक्ष में भी ठोस तर्क दिये. 2014 में अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने पर दो सीटों तक सीमित रहने के बाद जब लालू प्रसाद यादव के साथ उन्होंने गठजोड़ किया तो भी उसके लिए ठोस तर्क गढ़े. लालू प्रसाद यादव के कथित भ्रष्टाचार और जातिवाद के खिलाफ दो दशक से अधिक समय तक अभियान चलाने वाले नीतीश के बयानों व तर्कों ने उनसे दोस्ताना होने पर इसकी आंच कभी उनकी राजनीतिक छवि पर नहीं आने दी.
नीतीश ने यूपीए के घटक राजद और कांग्रेस को अपने गंठबंधन में शामिल किया, लेकिन बड़ी चतुराई से उसे यूपीए की बिहार इकाई नहीं बनने दिया, बल्कि उसका नाम महागंठबंधन रखा जिसके नेता वे हैं. आज बिहार के इसी सफल राजनीतिक गठबंधन की राष्ट्रीय व्याख्या हो रही है और कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा ही महागंठबंधन बनना चाहिए.