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नीतीश को ‘मित्र’ कहने वाले शरद यादव के बयान के मायने, क्या फिर बढ़ने लगी नजदीकी, जानें

आशुतोष कुमार पांडेय @ पटना पटना : कहते हैं कि सियासत संभावनाओं की कला है और इनमें से कौन सी संभावना कब राजनीतिक गलियारों में जन्म ले ले यह कोई नहीं कह सकता. बिहार में महागठबंधन टूटने के बाद जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पार्टी के संस्थापक सदस्यों में […]

आशुतोष कुमार पांडेय @ पटना

पटना : कहते हैं कि सियासत संभावनाओं की कला है और इनमें से कौन सी संभावना कब राजनीतिक गलियारों में जन्म ले ले यह कोई नहीं कह सकता. बिहार में महागठबंधन टूटने के बाद जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पार्टी के संस्थापक सदस्यों में एक और राज्यसभा सांसद शरद यादव के रिश्तों में दूरी सी आ गयी. नीतीश के खिलाफ शरद बयान देने लगे, लेकिन नीतीश कुमार ने जो भी कहा बचते-बचाते हुए कहा. शरद यादव ने जदयू की उस चेतावनी को भी दरकिनार किया, जिसमें लालू की रैली में शामिल नहीं होने के बारे में कहा गया था, फिर भी शरद यादव रैली में शामिल हुए और महागठबंधन टूटने के खिलाफ अपनी भड़ास निकाली. शरद यादव गुट के जदयू की ओर से बुलायी गयी राष्ट्रीय परिषद की बैठक में श्री यादव ने नीतीश कुमार का नाम लिये बगैर कहा कि उन्होंने एनडीए से अलग होने के समय भी विरोध किया था, लेकिन तब उनकी (नीतीश कुमार ) को बात को मानना पड़ा, नहीं तो पार्टी टूट जाती. इस बार भी उनके मित्र ने अलग रास्ता पकड़ लिया. मुझे कुछ नहीं कहना.

शरद यादव का इस तरह नीतीश कुमार को मित्र कहना हाल के राजनीतिक संबंधों के आईने में देखें, तो यह बहुत बड़ी बात है. महागठबंधन टूटने के बाद नीतीश कुमार से शरद की बढ़ी तल्खी जगजाहिर है, लेकिन अपने समर्थकों की बैठक में शरद यादव का यह बयान दर्शाता है कि कहीं न कहीं मन के किसी कोने में नीतीश कुमार के प्रति उनका प्यार अभी भी उमड़ता है. नेता भावनाओं की सुनते हों ये बात आज कम लोग मानेंगे, लेकिन अपमान की भावना को भुलाना आसान भी नहीं. अगर शरद बाकी चीजें भूलकर पिछले कुछ सालों में नीतीश द्वारा बार-बार पर कतरे जाने से अपमानित होने की बात याद रखेंगे तो उनके लिए नीतीश से प्रतिकार का सबसे बेहतर मौका मौजूद है. शरद जानते हैं कि उनके पास कोई जमीनी वोट बैंक नहीं है. न ही संगठन. हालांकि, वह राष्ट्रीय फलक के नेता हैं और कुछ भी कहते हैं, तो उसे ध्यान से सुना जाता है.

राजनीतिक जानकारों की मानें, तो बीजेपी 2019 के आम चुनाव के लिए कमर कस चुकी है. बीजेपी के खिलाफ गठबंधन करके आम चुनाव लड़ने की जरूरत तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी, राजद के लालू यादव, सपा के अखिलेश यादव और खुद शरद यादव बता चुके हैं. ऐसे में शरद अपने भावी राजनीतिक जीवन के लिए नई और सार्थक भूमिका की तलाश के लिए यह विकल्प चुन लें तो कोई बड़ी बात नहीं होगी, लेकिन अपने गुट की बैठक में इतने दिनों बाद नीतीश को मित्र बुलाना एक बार फिर राजनीतिक विश्लेषकों को चौकाता है. शरद यादव की राजनीति को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद दत्त कहते हैं कि शरद यादव ने बहुत कुछ सोच-समझकर नीतीश कुमार को मित्र बुलाया है. शरद यादव को यह साफ दिख रहा है कि राजद और बिहार के सबसे बड़े सियासी परिवार के मुखिया राजद सुप्रीमो लालू यादव का कुनबा भ्रष्टाचार और बेनामी संपत्ति के आरोपों में घिरा हुआ है. कब किसको सजा होगी और पार्टी की स्थिति क्या होगी, यह संभावना अभी पूरी तरह अंधेरे मे है.

प्रमोद दत्त कहते हैं कि शरद यादव ने इस बयान के जरिये अपने विकल्पों को खुला रखा है. उन्हें पता है कि नीतीश कुमार से उन्होंने लालू की वजह से दूरी बना ली है, लेकिन लालू की पार्टी का कोई ठिकाना नहीं है. शरद यादव को एक अदद लोकसभा या राज्यसभा की सीट चाहिए, उसके लिये वह अपने सभी दरवाजों को खुला रखना चाहते हैं. उन्हें पता है कि राजनीति में कब कौन किसकी मदद के लिए आगे आ जाये, इसलिए उन्होंने इस बयान के जरिये नीतीश को साधने की कोशिश की है. उन्हें पता है कि राजद की नाव डूबेगी या फिर उसमें बदलाव होने पर उसका नेतृत्व कौन करेगा, यह बाद की बात है. गौरतलब हो कि, बिहार में जब 2015 के विधान सभा चुनाव से पहले राजद-कांग्रेस-जदयू ने गठबंधन किया तो उसे महागठबंधन का नाम दिया गया. बहरहाल 26 जून को नीतीश ने इस गठबंधन को तोड़ दिया. लेकिन पिछले कुछ हफ्तों में जिस तरह के राजनीतिक हालात बनते दिख रहे हैं उसमें अगर उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश के सबसे जाने-माने यादव नेता जातीय गोलबंदी के आधार पर आपस में हाथ मिला लें तो बड़ी बात नहीं होगी. शरद यादव भले ही बिहार से राज्य सभा सांसद हों, वो मूलतः मध्य प्रदेश के जबलपुर के रहने वाले हैं. लालू यादव शरद को अपने साथ आने का खुला न्योता दे चुके हैं. ऐसे में शरद यादव को लग रहा है कि जॉर्ज की हालत में पहुंचने से पहले पार्टी से अलग होकर अपनी इज्जत बचायी है, लेकिन किसी पद पर आसीन होने के लिए विकल्पों का खुला रखना जरूरी है.

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