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आपातकाल के 44 साल : बहन की शादी नहीं देख पाया, पेरोल पर हुई रिहाई, पिटाई, फिर जेल : सुशील मोदी

सुशील कुमार मोदी, उपमुख्यमंत्री सरकार से अपनी सगी बहन उषा की शादी में शामिल होने के लिए पेरोल (छुट्टी) मांगी थी. हजारीबाग जेल प्रशासन की शिथिलता के कारण उषा की शादी के समय तक पेरोल नहीं मिल पाया और मैं उस पारिवारिक उत्सव में भाग लेने से वंचित रह गया. इस बीच, चचेरी बहन रेणु […]

सुशील कुमार मोदी, उपमुख्यमंत्री
सरकार से अपनी सगी बहन उषा की शादी में शामिल होने के लिए पेरोल (छुट्टी) मांगी थी. हजारीबाग जेल प्रशासन की शिथिलता के कारण उषा की शादी के समय तक पेरोल नहीं मिल पाया और मैं उस पारिवारिक उत्सव में भाग लेने से वंचित रह गया.
इस बीच, चचेरी बहन रेणु की शादी 21 जनवरी को निर्धारित हो गयी. 19 जनवरी को पेरोल मिला. सोचा, चलो, सगी बहन न सही, चचेरी बहन की शादी में तो शामिल हो जाऊंगा, परंतु दुर्भाग्यवश, एक संवेदनहीन अफसर के चलते चचेरी बहन की शादी में भी शामिल नहीं हो सका. पेरोल पर रिहा होने की इजाजत बड़ी कानूनी लड़ाई के बाद मिली थी. आपातकाल के दौरान अधिकारियों के निरंकुश अहंकार और अत्याचार की दु:खती यादों की तरह यह घटना भी जेल डायरी में दर्ज हुई.
गाड़ी से उतरते ही पीटने लगा डीएम: पेरोल पर हजारीबाग जेल से रिहा होने के बाद मुलाकात संबंधी कठिनाइयों के संबंध में बात करने मैं जेल गेट से कुछ दूरी पर स्थित डीएम के घर चला गया. 45 मिनट इंतजार करने के बाद भी जब डीएम से मुलाकात नहीं हुई, तो मैं वहां से निकलने लगा.
अचानक बगल के कमरे से डीएम दुर्गाशंकर मुखोपाध्याय भी बाहर निकला. 32 साल का नाटे कद का दुबला-पतला चश्मा पहने छोकरे जैसा डीएम निकल कर गाड़ी में बैठ गया और गाड़ी का शीशा उतारने लगा. मैंने सोचा कि शायद पीए ने झूठ कह दिया है. क्यों न खड़े-खड़े उससे एक मिनट बात ही कर लूं. मैंने गाड़ी के समीप से ही कहा, ‘सर एक मिनट’ इतना कहना था कि डीएम गाड़ी पर से उतरा. मुझे लगा कि वह मुझसे बात करने आ रहा है. किंतु मैं धोखे में था.
उसने आते ही मुझे झापड़ मारना शुरू कर दिया. मैं अचंभित रह गया कि यह क्या हुआ? मुझे लगा कि यदि मैंने प्रतिकार किया, तो यह शायद और उत्तेजित हो जाये. अत: मैं क्षमा मांगने लगा. मैंने कहा कि सर माफ कर दीजिए, गलती हो गयी, कल बहन की शादी है, मैं पेरोल पर आया हूं, किंतु वह तो घूसों–थप्पड़ों से मारे जा रहा था और गालियां बक रहा था. मैं जमीन पर थोड़ी दूर पर गिर पड़ा, चप्पल दूर फेंका गयी.
जानता नहीं कि इमरजेंसी है : मैं उठा और चप्पल पहनने लगा, सोचा कि अब यहां से खिसक जाऊं, किंतु इसी बीच उसने कॉलर पकड़ कर उठाया और फिर मारने लगा. बक रहा था जिले का मालिक हूं, सब नेतागिरी निकाल दूंगा, क्रिमिनल मीसा में बंद कर दूंगा, जानता नहीं इमरजेंसी है. वह अंग्रेजी में गालियां बकता रहा. मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था. यह मैं कहां फंस गया. मुझे कमरे में बंद कर दिया गया. जिस कमरे में कुछ मिनटों पूर्व कुर्सी पर बैठा था, वहीं अब जमीन पर बैठा था.
फूट-फूट कर रोया, दुर्भाग्य को कोसता रहा : थोड़ी देर बाद अचानक मैं फूट-फूट कर रोने लगा. जो भी क्लर्क या चपरासी भीतर आता, मैं उससे कहता कि मुझे छुड़ा दीजिए, कल बहन की शादी है.
मैं वहीं जमीन पर शर्ट, पायजामा पहने मार खाया पागलों के समान बैठा था. कई बार सोचा कि डीएम से जाकर बात करूं. फिर लगा कि जब बिना बात किये यह हाल किया है, तो कहीं वह और क्रोधित न हो जाये. मैं अपने दुर्भाग्य को कोसता कमरे में बैठा आगे की कार्रवाई का इंतजार करता रहा.
थोड़ी देर बाद पुलिस आयी और उठाकर मुझे ले गयी. मुझे हजारीबाग कोतवाली थाना में बंद कर दिया गया. डर के मारे कोई थाना आकर पूछने की हिम्मत नहीं कर रहा था. अगले दिन मुझे कोर्ट में उपस्थित किया गया. बड़ी मुश्किल से जमानत मिली. इसके बाद मैं किसी तरह सड़क मार्ग से अपने घर पटना पहुंचा, तब तक शादी की सारी रस्में समाप्त हो चुकी थीं.

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