23.3 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड में नया खुलासा: महिला कर्मचारी भी करती थीं बच्चियों का यौनशोषण

रविशंकर उपाध्याय मोकामा नाजरथ हॉस्पिटल में इलाजरत बच्चियों ने दिया बयान पटना : मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड में नया और हैरान कर देने वाला तथ्य सामने आया है. बालिका गृह में काम करने वाली महिला कर्मचारी न केवल रेप में साथ देती थीं बल्कि खुद भी बच्चियों का यौनशोषण करती थीं. मोकामा नाजरथ हाॅस्पिटल में […]

रविशंकर उपाध्याय

मोकामा नाजरथ हॉस्पिटल में इलाजरत बच्चियों ने दिया बयान
पटना : मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड में नया और हैरान कर देने वाला तथ्य सामने आया है. बालिका गृह में काम करने वाली महिला कर्मचारी न केवल रेप में साथ देती थीं बल्कि खुद भी बच्चियों का यौनशोषण करती थीं. मोकामा नाजरथ हाॅस्पिटल में इलाजरत बच्चियों ने बयान दिया है कि उनके साथ महिला कर्मचारियों ने बेहद अमानवीय व्यवहार किया है. एक 16 साल की किशोरी ने बयान दिया है कि बालिका गृह में नींद की गोलियां खाने में मिला कर देने के बाद इनके साथ गलत काम किया जाता था. सुबह जागने के बाद दर्द होता था. देखभाल करने वाली इंदु आंटी ही उन्हें बताती थीं कि इनके द्वारा ही गलत काम किया गया है.
बेड-वेटिंग बीमारी से पीड़ित हो गयी हैं लड़कियां : इन लड़कियों का
यौनशोषण होने के कारण कई सेक्सुअल ट्रांसमिटेड डिजीज से पीड़ित हो गयी हैं. उनमें से सबसे ज्यादा बेड-वेटिंग (बिस्तर पर पेशाब कर देना) से पीड़ित हैं. इलाज कर रहे एक मनोचिकित्सक ने बताया कि सभी का इलाज किया जा रहा है. बेड-वेटिंग सभी में एक कॉमन बीमारी के रूप में सामने आयी है. यह बता रहा है कि सभी के दिलोदिमाग पर यौन शोषण घर कर गया है और इसी वजह से उनके साथ यह समस्या आ रही है.
फिर भी होती है धांधली
सरकार बालिका गृह चलाने के लिए एनजीओ को करोड़ों रुपये देती है, लेकिन इसके बाद भी कई स्तर पर धांधली होती है. मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड से यह जाहिर है कि धांधली का स्तर कितना नीचे गिर गया है. अभी 10 बालिका गृह एनजीओ के जरिये सरकार चला रही है जिसमें से हर एक बालिका गृह पर 30 लाख का खर्च होता है. इसमें 90 फीसदी राशि तो सरकार ही देती है और 10 फीसदी एनजीओ को खर्च करना होता है. यानी सरकार 2.7 करोड़ की राशि इस मद में खर्च करती है लेकिन इसके बदले सरकार को केवल बदनामी ही हासिल हो रही है. बिहार सरकार बालिका गृह, बाल गृह और अल्पवास गृह नाम की संस्थाएं चलाती है. अभी कुल 11 बालिका गृह संचालित हो रहे हैं जिनमें 10 को एनजीओ और एक को सरकार संचालित कर रही है.
हर बालिका गृह पर 30 लाख रुपये ऐसे होता है खर्च : एक बालिका गृह पर लगभग 30 लाख रुपये का सालाना खर्च आता है जिसमें मकान का किराया और बच्चियों के लिए खाने-पीने की व्यवस्था की जाती है. गृहों के संचालन में एक काउंसेलर के साथ-साथ 10 लोगों को रखने का प्रावधान है. इन गृहों के संचालन में 90 फीसदी सरकार और 10 फीसदी संबंधित एनजीओ के द्वारा खर्च करने का प्रावधान है. एनजीओ से 11 महीने का कॉन्ट्रैक्ट किया जाता है. रिकॉर्ड को देखते हुए कॉन्ट्रैक्ट आगे बढ़ाया जाता है. अनियमितता की रिपोर्ट मिलने पर कॉन्ट्रैक्ट कैंसिल कर दूसरे को मौका दिया जाता है. किसी एनजीओ के सेलेक्शन में 10 लाख के टर्न ओवर के साथ बाल कल्याण और बाल संरक्षण के क्षेत्र में तीन साल अनुभव होना जरूरी होता है.
10 बालिका गृह एनजीओ के जरिये चला रही है सरकार
30 लाख का सालाना खर्च एक पर
10 फीसदी करना होता है एनजीओ को खर्च
रेप में महिला कर्मचारियों की मिलीभगत
रेप में महिला कर्मचारियों की मिलीभगत बेहद आम थी. 15 साल की लड़की ने बयान दिया है कि ब्रजेश सर द्वारा रेप किया गया था, जिसमें सभी स्टाफ की मिलीभगत थी. एक 10 साल की बच्ची ने बताया है कि अांटी किरण, चंदा, नीलम और हेमा आदि ही उन्हें ब्रजेश के कमरे में जाकर सोने को बोलती थीं और किसी से मिलने की बात कहा करती थी. ये सभी मारपीट के साथ गलत काम की बात किया करती थीं. 10 साल की एक लड़की जिसने बाहर से लड़कों के आने की बात बतायी है उसने भी कहा है कि गलत काम के बाद मारपीट में किरण, मंजू, मीनू, हेमा, नेहा और चंदा आंटी शामिल होती थीं. अनौपचारिक बातचीत में इन लड़कियों ने बताया है कि डर के मारे सभी एक साथ हाथ जोड़ कर सोती थीं, ताकि उनकी रक्षा हो सके. लेकिन सभी को उठा कर महिला कर्मचारी ही ले जाती थीं. इनके साथ दुष्कर्म होता था.
10 जिलों में ये एनजीओ चला रहे हैं बालिका गृह
सारण
भाभा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल सर्विसेज, सांधा खेमा जी टोला, छपरा
बेगूसराय
कर्पूरी ठाकुर ग्रामीण विकास संस्थान, निराला नगर, बेगूसराय
पूर्णिया
नारी गुंजन, चांदनी चौक, पूर्णिया
किशनगंज:
अल जफर मेमोरियल ट्रस्ट, किशनगंज
मधुबनी
परिहार सेवा संस्थान, सूरतगंज, मधुबनी
गया
अविद्या विमुक्ति संस्थान, बोधगया, गया
पू. चंपारण
निर्देश, मंझौला, खाबरा, मुजफ्फरपुर
पटना
मोकामा नाजरेथ हॉस्पिटल, मोकामा, मशाल, पाटलिपुत्र कॉलोनी, पटना
भागलपुर
राष्ट्रीय मानव विकास समिति, भागलपुर
बदलाव की जरूरत
महिलाओं को सुरक्षित माहौल और होम में पारिवारिक माहौल से होगा सुधार
अन्याय, शोषण, हिंसा के खिलाफ बेटियों की लड़ाई जारी है. यह लड़ाई किसी व्यक्ति विशेष से नहीं, बल्कि एक ऐसे सुरक्षा तंत्र से है, जो उनके लिए बनाये गये हैं. पर वहां, सुरक्षा के नाम पर उनकी अस्मिता पर प्रहार किया जाता है. वक्त के थपेड़ों और किस्मत की सतायी बच्चियों को जहां एक अासरे की जरूरत है, वहीं, उन्हें बेगैरत किया जाता है. मुजफ्फरपुर बालिका सुधार गृह में रहने वाली बेटियों के साथ होने वाले यौन शोषण का मामला कुछ इसी तरह की कहानी बयां कर रहा है. खास कर तब, जब इन बेटियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी महिलाएं उठा रहीं हों. ऐसे में बेटियों की सुरक्षा को लेकर बड़ा सवाल खड़ा हो रहा है. क्या महिलाएं ही महिलाओं की दुश्मन हैं? या फिर लोगों की संवेदनाएं मर चुकी हैं? ऐसे अनगिनत सवाल लोगों के जेहन में चल रहे हैं. ऐसे में सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है.
असुरक्षा की भावना बनाती है महिलाओं को एंटी
मनोवैज्ञानिक अमृता श्रुति बताती हैं कि महिलाएं खुद को असुरक्षित मानती हैं. यह असुरक्षा की भावना चाहे उनकी जिदंगी से जुड़ी हो या फिर उनके कैरियर और अस्मिता से जुड़ी हो. हर पल वे असुरक्षा के साये में जिदंगी जीती हैं. ऐसे में जब असुरक्षा उन्हें पूरी तरह से अपना शिकार बना लेती है, तो वे विद्रोही हो जाती हैं. वह हर उस काम को करती हैं, जिससे उन्हें खुशी मिल सके. वह मानसिक विकृति की शिकार हो जाती हैं. जब उनका सामना किसी महिला के दर्द से होता है, तो वह उसे ईजी गोइंग के रूप में देखती हैं. उन्हें लगने लगता है कि ये तो उनके साथ भी हुआ था, फिर ये क्यों नहीं कर सकतीं. महिलाओं की यही विकृति उन्हें महिलाओं का दुश्मन बना देती है.
सरकारी तंत्र में सुधार की है आवश्यकता
बिहार राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष अंजुम आरा कहती हैं कि सरकारी तंत्र में सुधार की जरूरत है. मॉनीटरिंग सिस्टम कमजोर है. जब तक कार्यों की जवाबदेही सुनिश्चित नहीं हाेगी, तब तक सुधार की गुंजाइश नहीं होगी. सुधार गृहों में रहने वाली लड़कियां वहां रहना नहीं चाहती हैं, क्योंकि उन्हें ऐसे माहौल की जरूरत होती है, जहां सुरक्षा के साथ-साथ उनकी भावनाओं का भी ख्याल रखा जा सके, पर उन गृहों में आने के बाद उन्हें एक ऐसी जिंदगी से रू-ब-रू कराया जाता है, जहां उनकी भावनाओं का गला घोंट दिया जाता है. ऐसे में सरकार को उन लड़कियों को भावनात्मक सपोर्ट देने की जरूरत है. न्यायिक प्रक्रिया को फास्ट कर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जाये.
स्पेशल ट्रीटमेंट की है जरूरत
उत्तर रक्षा गृह में काम कर रही अधीक्षक संगीता मिश्रा बताती हैं कि यहां आने वाली ज्यादातर लड़कियां घर परिवार और समाज की सतायी हुई हाेती हैं. ऐसे में उनका लोगों के प्रति विश्वास समाप्त हो जाता है. उसे ठीक करने के लिए उन्हें पारिवारिक सपोर्ट की जरूरत होती है, जो उन्हें नहीं मिल पाता है. ऐसी बच्चियों को स्पेशल ट्रीटमेंट देने की जरूरत है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें