समाज में नैतिक मूल्यों का अनवरत अवमूल्यन चिंताजनक है. छेड़छाड़, मानमर्दन व हत्या सरीखे संगीन कृत्य और एकल परिवारों का चलन नैतिक शिक्षा को तिलांजलि का ही नतीजा है.
शैशवावस्था में बालमन शून्य होता है. चूंकि परिवार प्रथम पाठशाला है लिहाजा अभिभावक व अन्य पारिवारिक सदस्यों का आचरण आदर्श उदात्त भावना से परिपूर्ण होना चाहिए. मूल्यपरक शिक्षा के प्रति नकारात्मक नजरिया राष्ट्रीय प्रगति में भी बाधक है. अनुशासन, ईमानदारी, विवेक, विनम्रता, त्याग, शिष्टाचार, सत्यता, सदाचार सरीखे संस्कार मूल्याधारित शिक्षा में ही निहित हैं और आत्मशक्ति के पर्याय हैं. मूल्याधारित नैतिक शिक्षा को देशभर के शिक्षण संस्थानों में अनिवार्य किया जाना समय की मांग है।
नीरज मानिकटाहला, इमेल से