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योगी आदित्यनाथ के पीछे क्यों पड़ा है मीडिया

!!मधु किश्वर,लेखिका!! योगी आदित्यनाथ के बारे में मीडिया वालों ने पूछ-पूछ कर मुझे उनके बारे में जानने के लिए मजबूर कर दिया है, जबकि मैं उनसे न तो मिली हूं और न ही उनके भाषणों को सुनी हूं और न ही उनके बारे में ज्यादा-कुछ जानती ही हूं. अंगरेजी मीडिया एक सवाल लेकर घूम रहा […]

!!मधु किश्वर,लेखिका!!

योगी आदित्यनाथ के बारे में मीडिया वालों ने पूछ-पूछ कर मुझे उनके बारे में जानने के लिए मजबूर कर दिया है, जबकि मैं उनसे न तो मिली हूं और न ही उनके भाषणों को सुनी हूं और न ही उनके बारे में ज्यादा-कुछ जानती ही हूं. अंगरेजी मीडिया एक सवाल लेकर घूम रहा है कि हिंदुत्व और विकास एक साथ कैसे चलेगा? और यही सवाल हिंदी मीडिया के लोग अपने मुंह में डाल कर पूछे जा रहे हैं. यह एक बेवकूफी से भरा सवाल है.

आखिर यह कैसी बात है कि हिंदुत्व या हिंदू शब्द के साथ विकास नहीं चल सकता. तो क्या विकास के लिए हमें क्रिश्चियन बनना पड़ेगा, या मुसलमान बनना पड़ेगा? कितनी अजीब सी बात है कि लोग योगी की सख्त छवि से परेशान हैं. अगर उनकी सख्त छवि है, तो यह प्रशासन के लिए अच्छा है. इस देश में और खासकर उत्तर प्रदेश में जितने टेरर ग्रुप बैठे हैं, उनके लिए सख्त प्रशासन चाहिए और अगर योगी का सख्त होना राज्य के लिए और भी बेहतर है. उन्होंने साफ कहा है कि वे माफिया डॉन के प्रति सख्त हैं, आतंकवादियों के लिए सख्त हैं. इसके पहले तक तो मैं योगी आदित्यनाथ को जानती भी नहीं थी, लेकिन मीडिया ने मुझे मजबूर किया कि मैं उनके बारे में जानूं. और जितना मैंने जाना, उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि इस देश में मुसलमान नहीं रह सकते. यह तो सिर्फ उन्हें बदनाम करनेवाली बात है.

उनके खुद के मठ में हजारों मुसलमान आते हैं और बहुत से मुसलमान मठ की सेवा में लगे हुए हैं. इससे बड़ा खुले दिल वाला कौन व्यक्ति है वहां? इससे ज्यादा खुला दिल क्या हो सकता है कि जिसके दरबार में हिंदू-मुसलिम या जात-पात का भेदभाव नहीं रखा जाता है. मैंने जो रिपोर्ट पढ़ी है उनके मठ के बारे में, उसके जैसा हिंदुस्तान में क्या एक भी कोई चर्च या मसजिद है? अपने मेनिफेस्टो में उन्होंने जितने भी वादे किये हैं, उन सभी के पूरा होने की उम्मीद करती हूं और उन्हें उनको पूरा करना चाहिए. आखिर मधु किश्वर इससे ज्यादा की उम्मीद क्यों करे? मुझसे पूछ कर उन्होंने मेनीफेस्टो नहीं बनाया है. मेरा न तो भाजपा से कोई वास्ता है और न ही योगी जी के मठ में कभी गयी हूं. लेकिन, एक इंसान को बदनाम करने की हद हो गयी है, जो मीडिया वाले किये जा रहे हैं.

सारे लोग हाथ धोकर उनके पीछे ही पड़ गये हैं. जिस किसी भी चीज के साथ हिंदू शब्द जुड़ जाता है, उसे हिंदुत्व का जामा पहना कर उसकी बुराई शुरू कर देते हैं. जबकि मैं योगी को जानती भी नहीं, तब मुझे इतना दुख हो रहा है. लेकिन, जो मीडिया उनके बारे में इतनी बदनाम करनेवाली चीजें छाप-दिखा रहा है, उससे उस आदमी को कितना दुख हो रहा होगा. क्या किसी ने यह सोचा है? यह तो हद है कि किसी को बेवजह जलील करने की कसम खा रखी है आप लोगों ने. हिंदी पत्रकारिता से हम इतनी उम्मीद करते हैं कि वह जमीन से जुड़ी हुई पत्रकारिता करेगी. लेकिन, वह भी अंगरेजी पत्रकारिता की तरह हवा-हवाई चीजों पर यकीन करने लगी है. आप लोगों को गोरखनाथ मठ के आसपास रहनेवाले लोगों से जाकर पूछना चाहिए कि योगी आदित्यनाथ में वहां के लोगों की क्यों इतनी आस्था है. फिर सवाल खड़े करने चाहिए उनके हिंदुत्व पर और उनकी छवि पर कि वे उत्तर प्रदेश के लिए या किसी शासन-प्रशासन के लिए क्यों जरूरी हैं.

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