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असम की पुथी चित्रकला शौली में है विष्णु के 10 अवतारों का वर्णन

महुआडांड़ : शनिवार को जिले के नेतरहाट में आयोजित प्रथम राष्ट्रीय आदिवासी एवं लोकचित्र कला शिविर का समापन हो गया. 10 फरवरी से प्रारंभ इस शिविर में देश के कई राज्यों के ख्याति प्राप्त लोक चित्रकार शामिल हुए. इस दौरान असम के सूचित दास ने पुथी चित्रकला शौली का प्रदर्शन किया. उन्होंने प्रभात खबर को […]

महुआडांड़ : शनिवार को जिले के नेतरहाट में आयोजित प्रथम राष्ट्रीय आदिवासी एवं लोकचित्र कला शिविर का समापन हो गया. 10 फरवरी से प्रारंभ इस शिविर में देश के कई राज्यों के ख्याति प्राप्त लोक चित्रकार शामिल हुए. इस दौरान असम के सूचित दास ने पुथी चित्रकला शौली का प्रदर्शन किया. उन्होंने प्रभात खबर को बताया कि इस चित्रकला में विष्णु के 10 अवतारों का वर्णन किया जाता है.

यह असम की सबसे पुरानी संस्कृति से जुड़ा हुई है. पुथी चित्रकला शौली विलुप्ति के कगार पर थी, लेकिन इसे पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है. इस कला को लेकर उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हो चुके हैं. लंदन में वर्ष 2012 में उनके द्वारा 28 फीट की ब्रश से पेंटिंग बनाने के लिए उनका नाम गिनीज ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज किया गया था.
हैदराबाद के दो भाई साई किरण व श्रवण कुमार ने बताया कि उनके प्रदेश की चैरियल स्क्रोल चित्रकला पर्व से जुड़ी हुई है. यह संक्रांति, बतकामा और खेती के खत्म होने के बाद जब नये फसलों को घरों में लाया जाता है तब किया जाता है.
शिविर में चित्तौड़ के रहने वाले आशाराम निवास ने बताया कि वे इस शिविर में पिछवाई चित्रकला का प्रदर्शन कर रहे हैं. राजस्थान में श्रीनाथजी का एक मंदिर है, मंदिर में कृष्ण जी की जो मूर्ति है उसके डेकोरेशन के लिए मूर्ति के पीछे हर रोज एक तस्वीर लगती है, जो कृष्ण लीला से संबंधित होती है. पीछे जो पेंटिंग लगती है उसका नाम पिछवाई है. उन्होंने बताया कि वे इस चित्रकला को लेकर इजराइल समेत अन्य दो देशों का दौरा कर चुके हैं. वर्ष 2001 में राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें नेशनल अवार्ड दिया था. अब वे इस कला को अपने बेटे को सिखा रहे हैं.
शोधकर्ता आदित्य झा के नेतृत्व में जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) से 11 छात्रों का एक दल नेतरहाट के शैले हाउस पहुंचा है. श्री झा ने कहा कि यह आयोजन सराहनीय है. इस तरह के आयोजन से देश के विभिन्न प्रदेशों की कला संस्कृति को देखने का अवसर प्रदान होता है. बिहार के सुरेंद्र पासवान, संजीव कुमार व सुरेंद्र पासवान कहते हैं कि मधुबनी पेंटिंग भगवान कृष्ण और रामायण के दृश्यों पर आधारित होती है.
इतिहासकारों के अनुसार, इस कला की उत्पत्ति रामायण युग में हुई थी, जब सीता के विवाह के अवसर पर उनके पिता राजा जनक ने इस अनूठी कला से पूरे राज्य को सजाने के लिए बड़ी संख्या में कलाकारों का संगम था. मूल रूप से इन चित्रों में कमल के फूल, बांस, चिड़िया व सांप आदि कला कृतियां भी पाई जाती है. इन छवियों को जन्म के प्रजनन और प्रसार के प्रतिनिधित्व के रूप में दर्शाया जाता है.
आंध्रप्रदेश की चित्रकार विजयलक्ष्मी एवं मुनिरतनमा ने बताया कि उनकी पेंटिंग में रामायण एवं भगवान राम के परिवारों का वर्णन चित्रकला के माध्यम से किया जाता है. झारखंड सोहराई चित्रकला महिला समिति की अध्यक्ष अलका अलमा ने बताया कि सोहराई चित्रों में दीवारों की पृष्ठभूमि मिट्टी के मूल रंग की होती है. उस पर गोद और काले रंगों से आकृतियां बनायी जाती है.

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