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झारखंड स्थापना दिवस: इन्होंने बढ़ाया राज्य का मान, पढ़ें खास रिपोर्ट

झारखंड राज्य के गठन को 19 वर्ष पूरे हो चुके हैं. इतने सालों में झारखंड ने हर क्षेत्र में लंबी दूरी तय की है. राज्य स्थापना और उसके बाद के आंकड़ों पर नजर डालें तो व्यापक तौर पर सकारात्मक बदलाव हुए हैं. समाज के लोगों ने दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ काम करके झारखंड की […]

झारखंड राज्य के गठन को 19 वर्ष पूरे हो चुके हैं. इतने सालों में झारखंड ने हर क्षेत्र में लंबी दूरी तय की है. राज्य स्थापना और उसके बाद के आंकड़ों पर नजर डालें तो व्यापक तौर पर सकारात्मक बदलाव हुए हैं. समाज के लोगों ने दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ काम करके झारखंड की सूरत बदली है. 15 नवंबर को धरती आबा बिरसा मुंडा का जन्म दिवस भी है. जिन्होंने समाज के बदलाव के लिए बिगुल फूंका था. उनसे प्रेरणा लेकर कई लेखक, साहित्यकार और समाज सेवी जमीनी स्तर पर कड़ी मेहनत कर राज्य की दशा व दिशा बदलने में जुटे हैं. अपने कार्यों से वे समाज व देश का नाम का रोशन कर रहे हैं. पेश है जमशेदपुर डेस्क की रिपोर्ट…

साहित्य सृजन कर बढ़ाया मान
कुछ लोगों की आदत में शामिल है कि वे कभी शांत नहीं बैठते. वे जनहित व समाज हित में निरंतर कुछ न कुछ कार्य करते रहते हैं. उन्हीं में से एक हैं साहित्यकार यशोदा मुर्मू. वह दिल्ली में पंजाब एंड सिंध बैंक में कार्यरत हैं. सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करते हुए समाज में बदलाव की बयार लाने के लिए साहित्य सृजन का कार्य कर रही हैं. संताली भाषा में काव्य संग्रह तोवा दारे, लघु कहानी सांवता ढर, बच्चों की कविता संग्रह गुड़ मेसा गरम रासा व कांत रे झोरका ताहें काना आदि पुस्तकें प्रकाशित हैं. वह साहित्य अकादमी नयी दिल्ली की संताली एडवाइजरी बोर्ड की सदस्य रह चुकी हैं. आकाशवाणी व दूरदर्शन केंद्र कोलकाता की भी संयुक्त सदस्य रह चुकीं हैं. वर्तमान पश्चिम बंगाल संताली अकादमी की सदस्य हैं.

साहित्य अकादमी से पुरस्कृत
एलआइसी में कार्यरत गणेश ठाकुर हांसदा असाधारण व्यक्तित्व हैं. अखिल भारतीय स्तर पर संताल समुदाय का नेतृत्व कर रहे हांसदा ऑल इंडिया संताली राइटर्स एसोसिएशन के महासचिव हैं. वे आेलचिकि व संताली भाषा को समृद्ध व विकसित करने की दिशा में काम कर रहे हैं. काम व पारिवारिक बोझ के बावजूद साहित्य सृजन में जुटे हुए हैं. उन्होंने लघु कहानी आचार, बुरू लुकुई, उपन्यास भोगनाडीह रेयाक डाही रे, काव्य संग्रह जीवी जाला, बूल बनाम आदि लिखी है. संताली साहित्य सेवा के लिए उन्हें साहित्य अकादमी ट्रांसलेशन अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है. साहित्यिक व सामाजिक गतिविधियों में विशिष्ट योगदान के लिए उन्हें कई सम्मान प्राप्त हो चुके हैं.

मातृभाषा व समाज मां के समान
चंद्रमोहन किस्कू दक्षिण पूर्व रेलवे के खड़गपुर मंडल में दूरसंचार अनुरक्षक के पद पर कार्यरत हैं. मातृभाषा व समाज मां के समान है. इस सोच के साथ चंद्रमाेहन मातृभाषा संताली व संताल समाज की सेवा में जुटे हुए हैं. वे संताली ही नहीं हिंदी में भी कविता, कहानी लिखते हैं. उनकी प्रमुख रचनाओं में मुलुज लांदा (संताली काव्य संग्रह), फेसबुक (संताली कहानी संग्रह), सिदो-कान्हू तिकिना : होते ते (उपन्यास), आंगरा (अनुवाद कविता संग्रह), बीर बुरु रेयाक सेचेद (अनुवाद कविता संग्रह), सबरनाखा (कविता संग्रह), हुल रेयाक सेंगेल जुलेना (कविता) आदि प्रमुख हैं. वे प्रगतिशील लेखक संघ, अखिल भारतीय संताली लेखक संघ जुवान ओनोलिया आदि से जुड़कर साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिय हैं.

संताली भाषा को दिया बढ़ाया
इंसान को कठिनाइयों की आवश्यकता होती है, क्योंकि सफलता का आनंद उठाने के लिए यह जरूरी है. पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का यह कथन साहित्यकार होलिका मरांडी के लिए प्रेरणा स्रोत है. वह संताली भाषा-साहित्य को समृद्ध व विकसित बनाने में महती योगदान दे रही हैं. उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिसमें संताली भाषा की शॉर्ट स्टोरी ञोलहाद, उमूल जुड़ासी आदि प्रमुख हैं. साहित्यिक गतिविधियों की बात करें तो वह ऑल इंडिया संताली राइटर्स एसोसिएशन व युवा लेखक संघ से जुड़ी हैं. वह सिदो-कान्हू यूनिवर्सिटी दुमका के गोड्डा कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. कॉलेज में संताली पढ़ाती हैं. वह ऑल इंडिया रेडियो भागलपुर से भी जुड़कर संताली भाषा-साहित्य को आगे बढ़ा रही हैं.

मिल चुका है साहित्य पुरस्कार
हौसला व जुनून हो तो कोई भी काम असंभव नहीं. इसे सच कर दिखाया है साहित्यकार भुजंग टुडू ने. 65 वर्ष की आयु में भी सामाजिक व साहित्यिक गतिविधियों में उनकी सक्रियता कम नहीं हुई है. वे मूल रूप से घाटिशला दामपाड़ा क्षेत्र के पुखुरिया गांव के निवासी हैं. श्री टुडू को वर्ष-2017 में साहित्य पुरस्कार मिल चुका है. उन्हें यह पुरस्कार उनके संताली कविता संग्रह पुस्तक ताहेंनाञ तांगी रे (रहूंगा इंतजार में) के लिए मिला था. भुजंग टुडू वर्ष 2016 में ही रेलवे के खड़गपुर अकाउंट्स डिवीजन से सेवानिवृत्त हो चुके हैं. वे भारत जाकात संताली ओनोलिया गांवता झाड़ग्राम, आसेका पश्चिम बंगाल, आसेका झारखंड समेत अन्य सामाजिक संगठन व क्लबों से जुड़े हुए हैं. उन्होंने कई संताली पुस्तकें लिखी है.

कुछ अलग करने का सपना
जहां चाह-वहां राह कथन युवा साहित्यकार रानी मुर्मू पर सटीक बैठता है. उन्हें अपने पिता बुधराय मुर्मू से साहित्य लेखन, सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रहने की प्रेरणा मिली. उन्होंने समाज के लिए अलग हट कर कुछ करने का सपना देखा, जिससे परिवार व समाज का नाम रोशन हो. उन्होंने अपनी पहली संताली कहानी संग्रह का नाम भी होपोन मइया : कुकमू’ (छोटी बहन का सपना) रखा था. इस पुस्तक के लिए उन्हें वर्ष 2018 में साहित्य अकादमी नयी दिल्ली की ओर से साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार मिल चुका है. रानी मुर्मू संताली साहित्यकार होने के साथ-साथ पेशे से आरवीएस कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी जमशेदपुर में ट्रेनिंग एवं प्लेसमेंट सेल में सपोर्टर के रूप में कार्य कर चुकी हैं.

युवा साहित्य पुरस्कार से सम्मानित
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती. इन पंक्तियों से युवा साहित्यकार श्याम सी टुडू को प्रेरणा मिलती है. पेशे से असिस्टेंट प्रोफेसर श्री टुडू पश्चिम बंगाल के सालबनी डिग्री कॉलेज में संताली पढ़ाते हैं. संताल समाज में संताली भाषा-साहित्य का प्रचार-प्रसार करने व लोगों को ओलचिकि लिपि से रूबरू कराने के लिए संताली भाषा में पिछले 15 वर्षों से पत्रिका का प्रकाशन कर रहे हैं. वर्ष 2012 में उन्हें साहित्य अकादमी नयी दिल्ली की ओर से काव्य संग्रह जालादाक के लिए युवा साहित्य पुरस्कार मिल चुका है. उन्होंने ओलचिकि लर्निंग, संताली भाषा शिक्षा, सिंगड़ बिजली, ओकाते, बुढ़ी पारकोम, उनी सेन तायोम, शिशिर पोरायनी, विनिड गाते, होपोन एरा, बीर बाजल दो बाको पासी लेदेया, टुडू कोड़ा रूसिका आदि पुस्तकें लिखी है.

झारखंड में आर्चरी के जनक
झारखंड (अविभाजीत बिहार) में आर्चरी की शुरुआत करने का श्रेय एल मूर्ति को जाता है. जिन्होंने डीके सरकार व अरुण घोष के साथ मिलकर झारखंड में पहली बार आर्चरी की शुरुआत की. धीरे-धीरे यह खेल पूरे झारखंड में छा गया. काशीडीह के रहने वाले एल मूर्ति ने यह खेल 1979 में कोलकाता में देखा था. एल मूर्ति 1980 से 1994 तक लगातार विभिन्न आर्चरी चैंपियनशिप में भाग भी लिये. रिकर्व वर्ग में आर्चरी करने वाले एल मूर्ति 1988 ओलिंपिक के लिए भारतीय कैंप में भी थे. एसोसिएशन के वर्किंग सेक्रेटरी भी रहें. वर्तमान में झारखंड आर्चरी संघ में डिप्टी प्रेसिडेंट के पद पर स्थापित एल मूर्ति युवाओं को आर्चरी के तकनीकी गुर सीखा रहे हैं.

महिलाओं को बना रहीं सशक्त
बाराद्वारी की अनामिका मजूमदार ने वर्ष 2017 में कौन बनेगा करोड़पति धारावाहिक में एक करोड़ रुपये जीतकर जमशेदपुर का गौरव बढ़ाया था. वह कॉमर्स ग्रेजुएट और सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में ऑनर्स डिप्लोमा हैं. साथ ही प्रयाग संगीत समिति से संगीत विशारद भी हैं. उन्होंने समाजसेवा का रास्ता चुना. स्वयंसेवी संस्था फेथ इन इंडिया के जरिये वह गांव की महिलाओं को स्वावलंबी बनाने में लगी हैं. करणडीह प्रखंड के चिरुगोड़ा और धुआं गांव को गोद लेकर महिलाओं को प्रशिक्षित कर रही हैं. उनका मानना है कि पढ़े-लिखे लोगों को राजनीति में आना चाहिए. खासकर महिलाओं की भागीदारी इसमें बढ़नी चाहिए.

आर्चरी में द्रोणाचार्य पुरस्कार
भारतीय आर्चरी में बारीडीह की रहने वाली पूर्णिमा महतो 80 व 90 के दशक में एक शानदार खिलाड़ी रहीं पूर्णिमा महतो वर्तमान में एक जानदार कोच हैं. 1987 में पूर्णिमा महतो ने आर्चरी करना शुरू किया. लेडी इंद्र सिंह स्कूल से दसवीं तक पढ़ाई करने वाली पूर्णिमा महतो ने मात्र सात महीने की ट्रेनिंग में ही बर्मामाइंस में आयोजित स्टेट चैंपियनशिप में कांस्य पदक हासिल किया. इसके बाद पूर्णिमा ने कोच जेजी बनर्जी व पीएन दास से पूर्णिमा महतो ने ट्रेनिंग लेना शुरू किया. पूर्णिमा महतो ने भारत की स्टार तीरंदाज दीपिका सहित सैकड़ों राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी को ट्रेनिंग दी. भारत सरकार ने उनको भारत की सबसे प्रतिष्ठित आवार्ड ‘द्रोणाचार्य पुरस्कार’ से भी नवाजा है.

जल, जंगल और जमीन की रक्षा में सक्रिय हैं लेडी टार्जन
जल, जंगल, जमीन की बात तो सभी करते हैं लेकिन इसकी रक्षा के लिए कम लोग आगे आते हैं. लेडी टार्जन के नाम से मशहूर पद्मश्री जमुना टुडू जंगल बचाने के लिए आगे आयीं. यह काम आसान नहीं था. उन्हें जंगल माफियाओं से लगातार लड़ाई लड़नी पड़ी. पूर्वी सिंहभूम के 300 गांवों में वन सुरक्षा समिति बनायी. जमुना बताती हैं कि पेड़ों को बचाने में पुरुषों की सहभागिता भी जरूरी है. इसकी प्रेरणा उन्हें पिता से मिली. जमुना कहती हैं कि पेड़ों को बचाना हम सभी का उद्देश्य होना चाहिए.

तीरंदाजी में बढ़ाया मान
लक्ष्मी रानी मांझी ने तीरंदाजी में झारखंड का नाम रोशन किया है. पूर्वी सिंहभूम जिले के नारवा में रानी पली-बढ़ीं. चार भाई-बहनों में वह सबसे बड़ी हैं. रानी जब कक्षा नौ में पढ़ रही थीं,तो एक दिन खेल अधिकारियों की टीम उनके स्कूल पहुंची. टीम के साथ तीरंदाजी के राष्ट्रीय कोच धर्मेंद्र तिवारी भी थे. उन्होंने बच्चों से पूछा, आप में से कौन तीरंदाजी सीखना चाहेगा? रानी ने हाथ उठाकर कहा, सर, मैं सीखूंगी तीर चलाना. यह सुनकर कोच बहुत खुश हुए. ट्रेनिंग के दौरान रानी ने खूब मेहनत की. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में ढेर सारे मेडल जीते. 2015 में डेनमार्क में आयोजित विश्व तीरंदाजी चैंपियनशिप में रजत पदक जीता. फिर उन्हें खेल कोटे से रेलवे में नौकरी मिली. रानी ओलिंपिक में भी भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं.

बॉक्सिंग में दिलाया स्वर्ण
शहर के युवा बॉक्सर सिलय सोय ने गुवाहाटी में आयोजित जूनियर नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण जीतकर सबसे पहले सुर्खियां बटोरी. 2010 के बाद यह पहला मौका था जब बालक वर्ग में बॉक्सिंग में झारखंड के खाते में राष्ट्रीय पदक आया था. उलीडीह का रहने वाले सिलय वर्तमान में मंगोलिया में आयोजित यूथ एशियन बॉक्सिंग चैंपियनशिप के सेमीफाइनल में पहुंच कर झारखंड के लिए एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है. सिलय 2014 में स्कूल नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में पहली बार स्वर्ण पदक जीतकर सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा था. इसके बाद सिलेय 2015 में नेशनल स्कूल चैंपियन रहा. सिलेय स्टेट चैंपियनशिप और इंटर सेंटर बॉक्सिंग चैंपियनशिप में भी गोल्ड हासिल कर चुका है.

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