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फ्री में वार्इ-फार्इ पाने को अपनी निजता को भी साझा करने को तैयार रहते हैं भारतीय

नयी दिल्लीः निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार मानने की बहस के बीच एक चौंकाने वाला अध्ययन सामने आया है. एंटीवायरस बनाने वाली एक साॅफ्टवेयर कंपनी नाॅर्टन ने अपनी अध्ययन रिपोर्ट में यह कहा गया है कि मुफ्त में वार्इ-फार्इ पाने के लिए भारत के करीब 73 फीसदी से अधिक आबादी अपनी निजी सूचनाआें को […]

नयी दिल्लीः निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार मानने की बहस के बीच एक चौंकाने वाला अध्ययन सामने आया है. एंटीवायरस बनाने वाली एक साॅफ्टवेयर कंपनी नाॅर्टन ने अपनी अध्ययन रिपोर्ट में यह कहा गया है कि मुफ्त में वार्इ-फार्इ पाने के लिए भारत के करीब 73 फीसदी से अधिक आबादी अपनी निजी सूचनाआें को भी साझा करने में गुरेज नहीं करते. इस रिपोर्ट में यह कहा गया है कि भारत में बडी संख्या में लोगों को अच्छा वाई-फाई उपयोग करने को नहीं मिलता. ऐसे में यह तथ्य भी सामने आया है कि यदि उन्हें अच्छे मुफ्त वाई-फाई की सेवा मिले, तो करीब 73 फीसदी लोग उसके लिए अपनी निजी जानकारी साझा करने में भी कोई गुरेज नहीं करेंगे.

इस खबर को भी पढ़ेंः जियाे का नया धमाकाः मुफ्त डाटा आैर वाॅयस काॅल देने के बाद अब केवल 500 रुपये में मोबाइल

इस बात का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पिछले साल सितंबर महीने में जब रिलायंस इंडस्ट्रीज के मालिक मुकेश अंबानी ने नयी टेलीकाॅम कंपनी जियो को स्थापित करके लोगों को मुफ्त में डाॅटा आैर वाॅयस काॅल की सुविधा देने की शुरुआत की, तब देश में मुफ्त में इन सेवाआें का लाभ लेने वालों का तांता लग गया. इसी का नतीजा है कि आज लोगों को मुफ्त में ही इंटरनेट डाटा आैर वाॅयस काॅल की सुविधा बढ़ाने के लिए रिलायंस जियो को अपनी योजनाआें की अवधि बढ़ानी पड़ रही है.

यह बात दीगर है कि अपनी इस महत्वाकांक्षी योजना से रिलायंस जियो ने अपने साझीदारों के साथ मिलकर मोबाइल से जुड़े अन्य उत्पादों की जमकर बिक्री की आैर अपने उपभोक्ताआें की संख्या के लक्ष्य को प्राप्त करने में सफलता हासिल की. वहीं, इसका दूरसंचार बाजार में नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहा है. रिलायंस जियो के धमाकेदार आॅफर का ही नतीजा है कि आज देश के दूरसंचार बाजार की कर्इ कंपनियों को भारी कर्ज का सामना करना पड़ रहा है.

यहां यह बता देना भी जरूरी है कि जिस समय रिलायंस जियो ने देश के मोबाइल उपभोक्ताआें को मुफ्त में सेवाएं देने की योजनाआें की शुरुआत की, उस समय से लेकर अब तक जियो का सिम पाने के लिए आधार नंबर को अनिवार्य बना दिया गया है. इस आधार नंबर में लोगों की कर्इ एेसी महत्वपूर्ण सूचनाएं दर्ज होती हैं, जिसका लीक हो जाने के बाद उनके साथ में धोखाधड़ी की आशंकाएं बढ़ जाती हैं. बावजूद इसके काफी संख्या में देश के करोड़ों लोगों ने अपने आधार नंबर देकर जियो की मुफ्त सेवाआें का लाभ लेने में किसी प्रकार की कोताही नहीं बरती.

इन तमाम तथ्यों को देखते हुए एंटीवायरस बनाने वाली सॉफ्टवेयर कंपनी नॉर्टन ने अपनी ‘वाई-फाई जोखिम रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया है कि अब सेवाओं को चुनने में भी मुफ्त वाई-फाई एक बड़ा मापदंड बनता जा रहा है. कंपनी की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि करीब 82 फीसदी लोग होटल चुनने, 67 फीसदी लोग परिवहन सेवा चुनने, 64 फीसदी लोग विमानन सेवा चुनने और 62 फीसदी लोग रेस्तरां इत्यादि चुनने में इस विकल्प को तरजीह देते हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वेक्षण में शामिल 51 फीसदी भारतीयों ने माना कि वाई-फाई क्षेत्र में आने के बाद इंटरनेट से जुड़ने के लिए वह कुछ मिनट का इंतजार भी नहीं कर पाते हैं. करीब 19 फीसदी लोगों का कहना है कि मुफ्त वाई-फाई के लिए वह अपने निजी ई-मेल और संपर्क सूची को साझा करने के लिए तैयार हैं. वहीं, 22 फीसदी इस सेवा के लिए अपने निजी फोटो भी साझा करने को तैयार हैं. रोमांचक तथ्य यह है कि करीब 74 फीसदी लोगों का मानना है कि सार्वजनिक वाई-फाई सेवा का उपयोग करने के दौरान उनकी निजी जानकारी सुरक्षित रहती है.

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