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आठ साल पहले गांव में उग्रवादियों ने की थी पांच भाईयों की हत्या, डर से कोई नेता वोट मांगने नहीं आता

दुर्जय पासवान, गुमला बसिया प्रखंड में डाकिया गांव है. यह सिसई विधानसभा क्षेत्र में आता है. आज भी इस गांव के लोग वर्ष 2011 की घटना को नहीं भूले हैं. बढ़ई परिवार के पांच भाईयों की उग्रवादियों ने हत्या कर दी थी. इनका कसूर बस इतना था, कि इन लोगों ने प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन पीएलएफआई […]

दुर्जय पासवान, गुमला

बसिया प्रखंड में डाकिया गांव है. यह सिसई विधानसभा क्षेत्र में आता है. आज भी इस गांव के लोग वर्ष 2011 की घटना को नहीं भूले हैं. बढ़ई परिवार के पांच भाईयों की उग्रवादियों ने हत्या कर दी थी. इनका कसूर बस इतना था, कि इन लोगों ने प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन पीएलएफआई के खिलाफ आवाज उठायी थी. उस घटना के आठ साल हो गये. लेकिन अभी तक बढ़ी परिवार के सदस्यों को सरकार द्वारा जो मदद मिलनी चाहिए. वह मदद नहीं मिली है.

सरकार की उदाशीनता के कारण बढ़ई परिवार के सदस्य सरकारी नौकरी के लिए सरकारी बाबुओं के कार्यालयों का चक्कर काटने को विवश हैं. मृतक की विधवाएं अभी भी सरकारी सहायता की आस में हैं. मृतक महेश बढ़ई की पत्नी पूनम देवी ने कहा कि बड़ी मुश्किल में जीवन गुजर रहा है. बच्चों की परवरिश ठीक ढंग से नहीं कर पा रहे हैं. आठ साल से सिर्फ आश्वासन मिल रहा है. उग्रवादियों ने घर संसार को उजाड़ दिया. अब प्रशासन सहयोग देने के नाम पर परेशान कर रहा है.

पूनम ने यह भी बताया कि अभी चुनावी बेला है. लेकिन कोई नेता वोट मांगने नहीं आया है. उसने यह भी बताया कि उग्रवाद क्षेत्र होने के कारण किसी भी चुनाव में यहां नेता डर से नहीं घुसते हैं. चूंकि गांव पहाड़ पर बसा है. ऊपर से यहां आने के लिए रास्ता भी नहीं है. उसने यह भी कहा कि कोई नेता आये या नहीं आये. गांव के लोग जरूर वोट करने जाते हैं.

इन लोगों की हुई थी हत्या

डाकिया गांव के शीत बढ़ई, बसंत बढ़ई, महेश बढ़ई, जीतू बढ़ई की उग्रवादियों ने 16 मई 2011 को हत्या कर दी थी. इसके बाद 13 अगस्त 2013 को रीतू बढ़ई को उग्रवादियों ने गांव में घुसकर मार डाला था. ये लोग जान बचाने का प्रयास किये थे. लेकिन उग्रवादियों की गोली ने सभी को एक साथ सुला दिया. डाकिया गांव एक जमाने में खुशहाल था पर पीएलएफआई का इस क्षेत्र में पांव पड़ते ही खुशहाली गम व भय में बदल गया है. बढ़ई परिवार के पांच सदस्यों की हत्या के बाद कई लोग डर से गांव से पलायन कर गये हैं. बताया जा रहा है कि बढ़ई परिवार के सदस्यों ने उग्रवादियों के दखल का विरोध किया था. कुछ जमीन का भी मसला था. रात के अंधेरे में पहुंचे उग्रवादियों ने घर से कुछ दूरी पर पांचों भाईयों की हत्या कर दी थी.

पांच बेटों की मौत को भूल नहीं पायी है बूढ़ी मां

मृतक पांच भाईयों की बूढ़ी मां चेनगी देवी जिसकी उम्र 80 साल पार हो गया है. वह आज भी अपने बेटों की मौत को भुला नहीं पायी है. उसका सबसे छोटा बेटा शीत बढ़ई था. जिसकी शादी नहीं हुई थी. चेनगी ने कहा कि प्रशासन ने कहा था कि एक लाख रुपये देंगे. परंतु अभी तक मेरे छोटे बेटे की मौत का मुआवजा नहीं मिला है. अन्य चार बेटों का मुआवजा एक-एक लाख रुपये मिला था. वह पैसा सरकारी बाबुओं के दफ्तरों का चक्कर काटने में खर्च हो गया. चेनगी ने कहा कि गुमला कर डीसी मोके कचिया लेवेक बुलाय रहे. मोय गुमला जाए रहोन. लेकिन कचिया नी मिलअक. उन्होंने यह भी बताया कि आज तक कोई विधायक यहां नहीं आये हैं.

सिर्फ एक परिवार को नौकरी मिली है : पूनम

मृतक महेश की पत्नी पूनम देवी ने बताया कि सरकार ने मृतक जीतू बढ़ी की पत्नी झालो देवी को पुलिस में नौकरी दी है. अभी वह गुमला में डयूटी कर रही है. सरकार ने बसंत बढ़ी की पत्नी ससिया देवी व महेश बढ़ी की पत्नी पूनम देवी को भी ज्वाइनिंग लेटर दिया था. परंतु गुमला पुलिस ने पूनम देवी की लंबाई कम होने व ससिया देवी की उम्र अधिक होने के कारण पुलिस में नौकरी नहीं दी. हमें सरकार ने एक लाख रुपये मुआवजा दिया था. उस राशि से लगातार रांची व गुमला अधिकारियों के पास घूमते रहे. ताकि हमें नौकरी मिले. लेकिन नौकरी नहीं मिली. मुआवजा का पैसा भी खत्म हो गया.

गांव की बनावट

डाकिया घोर उग्रवाद गांव है. इसकी बनावट उग्रवादियों के सेफ जोन के अनुरूप है. गांव तक जाने के लिए सड़क भी नहीं है. जंगल-पहाड़ों के बीच बसे इस गांव के लोगों को आज भी विकास का इंतजार है.

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