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नवजात बेटी को बेचने के बाद भी नहीं बची माता-पिता की जान, पत्नी के बाद पति की भी मौत

दुर्जय पासवान, गुमला गुमला शहर से सटे चंपा नगर निवासी चरवा उरांव (45 वर्ष) की आखिरकार गरीबी के कारण रविवार को मौत हो गयी. प्रशासन ने उसकी मदद देर से की. जिस कारण रिम्स में शनिवार को भर्ती होने के दूसरे दिन रविवार को उसकी जान चली गयी. अगर प्रशासन चरवा के इलाज में पहले […]

दुर्जय पासवान, गुमला

गुमला शहर से सटे चंपा नगर निवासी चरवा उरांव (45 वर्ष) की आखिरकार गरीबी के कारण रविवार को मौत हो गयी. प्रशासन ने उसकी मदद देर से की. जिस कारण रिम्स में शनिवार को भर्ती होने के दूसरे दिन रविवार को उसकी जान चली गयी. अगर प्रशासन चरवा के इलाज में पहले मदद करता तो उसकी जान बच सकती थी.

उसके घर राशन कार्ड व गोल्डेन कार्ड होता तो वह उसका लाभ लेकर अपनी जान बचा सकता था. लेकिन प्रशासन से मदद नहीं मिली. जिसका नतीजा है. चरवा की मौत हो गयी. जबकि 20 दिन पहले उसकी पत्नी झिबेल तिर्की की भी मौत हो गयी थी.

चरवा की मौत के बाद उसका शव रांची रिम्स में पड़ा हुआ है. उसके दो बच्चे शव के पास रोते बिलखते रहे. शव कैसे गुमला लाया जाये. इसकी चिंता में बच्चों ने गुमला के समाज सेवी गोविंदा टोप्पो को फोन किया. गोविंदा ने शव लाने के लिए गाड़ी की व्यवस्था करा दिया. गोविंदा ने कहा है कि देर रात तक शव को गुमला लाया जायेगा और सोमवार को अंतिम संस्कार किया जायेगा.

गोविंदा ने कहा है कि चरवा के घर में कुछ नहीं है. इसलिए उसका अंतिम संस्कार चंदा के पैसा से किया जायेगा. इधर, पुग्गू पंचायत के मुखिया बुधू टोप्पो ने कहा कि चरवा की बीमारी के बाद उसे गुमला अस्पताल में भर्ती कराया गया था. लेकिन गुमला में इलाज संभव नहीं था. उसे रिम्स भेजना था.

परिवार के पास पैसे नहीं थे. इसलिए एक सप्ताह तक गुमला अस्पताल में ही इलाज हुआ. प्रशासन ने शनिवार को रिम्स भेजने की व्यवस्था की. लेकिन तब तक देर हो गयी थी और रविवार को उसकी मौत रिम्स में हो गयी. अंतिम संस्कार में मेरे तरफ से जो संभव होगा. मैं मदद करूंगा.

नवजात बेटी को बेचने के बाद भी नहीं बची मां-पिता की जान

चरवा उरांव को किसी प्रकार की सरकारी सुविधा नहीं मिलती है. पहले से उसके सात बच्चे थे. 22 अगस्त को उसकी पत्नी झिबेल तिर्की ने एक बेटी को जन्म दी थी. लेकिन उसके परवरिश की चिंता ऊपर से चरवा की बीमारी से परिवार चिंता में आ गया था. वहीं प्रसव के बाद झिबेल के शरीर में खून की कमी से उसकी स्थिति गंभीर हो गयी थी.

अंत में चरवा ने अपनी पत्नी व खुद के इलाज के लिए अपनी दुधमुंही बेटी को 10 हजार में बेच दिया था. परंतु बेटी के बेचने के दूसरे दिन ही झिबेल की मौत हो गयी. बेटी को बेचकर मिले पैसे व कुछ ग्रामीणों के चंदा के पैसा से झिबेल का अंतिम संस्कार हुआ था. पत्नी की मौत के बाद चरवा की स्थिति गंभीर हो गयी थी.

एक सप्ताह तक वह विस्तर पर पड़ा रहा. समाज सेवी गोविंदा ने उसे अस्पताल में भर्ती कराया. जब प्रशासन को इसकी जानकारी शुक्रवार को हुई तो शनिवार की शाम को चरवा को रिम्स भेजा गया और रविवार की शाम को उसकी मौत हो गयी.

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