500 एकड़ जमीन के विवाद में नक्सली बना था कुंदन पाहन
रांची-टाटा रोड पर सफर के दौरान लोग दहशत में रहते थे. रात में वाहनों के चक्के थम जाते थे. शाम ढलते ही बुंडू-तमाड़ के बाजार बंद हो जाते थे. हालात ऐसे बने हुए थे कि अगर किसी राजनेता या डीजीपी समेत अन्य पुलिस अफसर को सड़क मार्ग से जमशेदपुर जाना होता था, तो टाटा रोड में सीआरपीएफ के जवानों की तैनाती करनी पड़ती थी. नामकुम के बाद से तमाड़ थाना क्षेत्र की सीमा तक जगह-जगह फोर्स की तैनाती की जाती थी. तब इस बात की आशंका रहती थी कि कुंदन पाहन का दस्ता रोड पर आकर किसी वीवीआइपी पर फायरिंग न कर दे.
वर्ष 2009 में स्पेशल ब्रांच के इंस्पेक्टर फ्रांसिस इंदवार का अपहरण कर हत्या किये जाने की घटना ने पुलिस विभाग को सकते में डाल दिया था. तब पुलिस मुख्यालय की तरफ से कई कदम उठाये गये थे. आइपीएस प्रवीण सिंह को रांची का एसएसपी बनाया गया. तैमारा घाटी, अड़की व बुंडू के सुदूर गांवों में सीआरपीएफ का कैंप खोला गया. इसके बाद पुलिस ने बुंडू, तमाड़, राहे और अड़की इलाके में कुंदन पाहन के दस्ते के खिलाफ लगातार कई बड़े अभियान चलाये. कई बार चार-चार घंटे तक पुलिस व कुंदन पाहन के दस्ते के बीच मुठभेड़ हुई. पुलिस ने अड़की व बुंडू इलाके में कई सभाएं की. जिसमें शामिल होनेवाले ग्रामीणों की कुंदन पाहन ने हत्या कर दी. इस कारण कुंदन पाहन को ग्रामीणों का सहयोग मिलना बंद हो गया.
इस दौरान कुंदन पाहन और संगठन के शीर्ष नेताओं के बीच भी अनबन की खबरें आने लगीं. वर्ष 2011 में पुलिस को यह खबर भी मिली कि भाकपा माओवादी संगठन ने कुंदन पाहन से रिश्ता तोड़ लिया है. इसके बाद कई तरह की दूसरी खबरें भी पुलिस को मिलीं. जिसमें कुंदन पाहन के गंभीर रूप से बीमार होने से लेकर उसकी मौत हो जाने तक की खबरें शामिल हैं. लेकिन संगठन से निकाले जाने के बाद कुंदन पाहन किस हाल में था, इसकी कोई पक्की सूचना पुलिस को कभी नहीं मिली. न ही पुलिस अब तक उसकी कोई तसवीर हासिल कर पायी.