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बैंकों पर कसती लगाम

जगदीश रत्तनानी वरिष्ठ पत्रकार editor@thebillionpress.org भुगतान की गयी किन्हीं राशियों की वसूली अमेरिका के लिए कोई असामान्य घटना नहीं है. कंपनी के किसी ऐसे पूर्व उच्चाधिकारी से की जा रही ऐसी वसूली उसके हितभागियों के लिए खासकर तब और भी संतोष की वजह बन जाती है, जिसने अपने कारनामों से उस कंपनी की साख पर […]

जगदीश रत्तनानी
वरिष्ठ पत्रकार
editor@thebillionpress.org
भुगतान की गयी किन्हीं राशियों की वसूली अमेरिका के लिए कोई असामान्य घटना नहीं है. कंपनी के किसी ऐसे पूर्व उच्चाधिकारी से की जा रही ऐसी वसूली उसके हितभागियों के लिए खासकर तब और भी संतोष की वजह बन जाती है, जिसने अपने कारनामों से उस कंपनी की साख पर चोट पहुंचायी हो. अब यह परिपाटी भारत में भी प्रारंभ हुई है, जब विशेष रूप से बैंकिंग क्षेत्र में ऐसी मार्गदर्शिकाएं लागू की गयीं, जो किसी उच्चाधिकारी के पद छोड़ने के बाद भी उसे उसके पूर्व कृत्यों के लिए जिम्मेदार ठहराती हैं.
अभी पिछले ही सप्ताह ऐसी रिपोर्टें आयीं कि निजी क्षेत्र के देश के चौथे सबसे बड़े बैंक, यस बैंक ने, जिसने अपने पूर्व प्रकवर्तक तथा मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी (सीइओ) राना कपूर के मार्गदर्शन में वृद्धि एवं विकास के कीर्तिमान स्थापित किये थे, उनसे 1.44 करोड़ रुपये के पूर्व बोनस वापस करने को कहा.
यह वसूली आरबीआई की उस मार्गदर्शिका के अनुरूप ही है, जो किसी सीइओ को भुगतेय प्रतिफलों के संबंध में नियमों को और भी कठोर कर रहा है. आइसीआइसीआइ बैंक ने भी अपनी शक्तिशाली पूर्व सीइओ चंदा कोचर से उन्हें दिये बोनसों और कंपनी के शेयरों की हिस्सेदारी वापस करने को कहने का फैसला किया है.
बैंकिंग का व्यवसाय कम से कम सिद्धांत रूप में तो बिल्कुल ही सरल एवं सीधा है. जिनके पास पैसे हैं, उनसे उसे लेकर बैंक उसे ऋणस्वरूप उन्हें देता है, जिन्हें उसकी जरूरत है. इस तरह बैंक आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देते हुए बदले में मुनाफा कमाते हैं. बैंक भी एक व्यवसाय है, पर इसमें किसी को भी हाथ डालने की खुली अनुमति इसलिए नहीं दी जाती, क्योंकि उसमें जनता के, न कि शेयरहोल्डरों के, पैसे लगे होते हैं.
यही वजह है कि यहां आरबीआइ को बैंकों पर मजबूत नियामकीय निगाह रखने की शक्ति प्रदान करते हुए उसे उनके लिए वे सीमाएं तय करने की जिम्मेदारी दी गयी है, उन्हें जिनके अंदर अपना परिचालन सुनिश्चित करना होता है. इन विनियमों का प्राथमिक उद्देश्य विभिन्न जोखिमों से, खासकर दिवालियेपन से बैंकों की रक्षा करना है, ताकि लोगों के पैसे सुरक्षित रहें.
आरबीआइ की मार्गदर्शिकाओं का मकसद यह है कि बैंक भलीभांति पूंजीकृत रहते हुए हर किसी को और सब किसी को वित्त प्रदान नहीं करें और इसी उद्देश्य से उनके सीइओ को भुगतेय प्रतिफलों पर भी विशेष रोक-टोक लगायी गयी है.
बैंकिंग विनियमन अधिनियम में एक खास तौर से स्पष्ट एवं सारगर्भित प्रावधान वह है, जो यह साफ करता है कि क्या और किस तरह विनियमित किया जाना है. यह कहता है कि ‘कोई भी बैंकिंग कंपनी न तो ऐसे किसी व्यक्ति को नियुक्त कर सकती है, न ही उसकी नियुक्ति जारी रख सकती है, जिसे मिलनेवाले प्रतिफल, रिजर्व बैंक की दृष्टि में अत्यधिक हैं.’
यह सही है कि बैंकिंग प्रणाली अब बहुत ज्यादा जटिल हो चुकी है, जिसकी कामकाजी भाषा एवं साख उसके अंदर पनप रही बीमारियां छिपा ले जाती हैं. उदाहरण के लिए यस बैंक द्वारा अपनी परिसंपत्ति की रिपोर्ट तथा आरबीआइ की निगाह में उसकी वास्तविक स्थिति के बीच ‘भिन्नता’ और उस पर आरबीआइ की अप्रसन्नता को लिया जा सकता है, जिसके आलोक में राना कपूर को अंततः इस वर्ष के शुरू में अपना पद छोड़ना पड़ा. बैंक की परिसंपत्ति में ‘भिन्नता’ की रिपोर्ट एक ऐसा तरीका रहा है, जिसके दुरुपयोग द्वारा नियमों के भारी उल्लंघन को भी एक सामान्य घटना बताया जा सकता था.
अपनी रिपोर्ट में 31 मार्च, 2017 की स्थिति के संबंध में यस बैंक ने अपने सकल डूबत ऋणों की राशि लगभग 2018.557 करोड़ रुपये बतायी, जबकि आरबीआइ ने इसके 8373.757 करोड़ रुपये होने का अनुमान किया, जिन दोनों के बीच ‘भिन्नता’ का अनुपात 300 प्रतिशत पहुंच गया. इसी तरह इसी तिथि के लिए उसके शुद्ध डूबत ऋणों की रिपोर्ट एवं आरबीआइ द्वारा किये गये उसके अनुमान में भी 450 प्रतिशत की ‘भिन्नता’ थी.
कुछ ऐसी ही स्थिति निजी क्षेत्र के तीसरे सबसे बड़े बैंक एक्सिस बैंक की थी, जिसके सीइओ ने भी उक्त पद पर अपने लिए एक और कार्यकाल की मांग न करना ही सही समझा. दरअसल, बैंकों द्वारा की गयी ऐसी रिपोर्टें ‘छिपाने’ से लेकर ‘गलत रिपोर्ट करने’ तक के बीच कहीं भी रखी जा सकती हैं.
ऐसी गलतियों के दोषी बैंक के सीइओ को जिम्मेवार बनाने के अतिरिक्त आरबीआइ की जिस एक और कार्रवाई ने सारा फर्क पैदा किया, वह दोषी बैंकों के नाम एवं उनकी रिपोर्ट में पायी गयी ऐसी ‘भिन्नताओं’ को सार्वजनिक करना है.
आरबीआइ ने अब ऐसी किसी भिन्नता द्वारा 15 प्रतिशत की सीमा रेखा पार किये जाने पर उसकी रिपोर्ट करने को बाध्यकारी बना दिया है, क्योंकि जब ऐसी गड़बड़ियां प्रकाश में आती हैं, तभी उन्हें दोहराने की प्रवृत्ति पर लगाम लग सकती है. ऐसे खुलासों से आरबीआइ तथा बैंक दोनों ही सतर्क रहेंगे. और अंत में, यही कहा जाना चाहिए कि इन मामलों में ऐसी कम-से-कम चीजें गोपनीय रखी जायें, क्योंकि जो कुछ दांव पर लगा है, वह भारत की सामान्य जनता का विश्वास एवं भरोसा है.
(अनुवाद: विजय नंदन)

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