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देशहित में नहीं है आरसीइपी

डॉ अश्वनी महाजन एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू ashwanimahajan@rediffmail.com दुनिया के अलग-अलग देशों के बीच व्यापार को संचालित करने के बारे में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का निर्माण हुआ था. डब्ल्यूटीओ के समझौते के अनुसार, देशों के बीच व्यापार को बढ़ाने के लिए आयात शुल्कों को कम करने और गैर-टैरिफ बाधाओं को समाप्त करने के बारे में […]

डॉ अश्वनी महाजन

एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू

ashwanimahajan@rediffmail.com

दुनिया के अलग-अलग देशों के बीच व्यापार को संचालित करने के बारे में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का निर्माण हुआ था. डब्ल्यूटीओ के समझौते के अनुसार, देशों के बीच व्यापार को बढ़ाने के लिए आयात शुल्कों को कम करने और गैर-टैरिफ बाधाओं को समाप्त करने के बारे में तय किया गया था.

यह समझौता अब भी चलन में है, इसके बावजूद कई देश आपस में द्विपक्षीय अथवा बहुपक्षीय मुक्त व्यापार समझौते भी कर रहे हैं. मुक्त व्यापार समझौते का अर्थ है- देशों के बीच शून्य अथवा बहुत ही कम आयात शुल्क पर व्यापार. भारत ने भी कई देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते किये हुए हैं.

कई बार सरकार कहती है कि व्यापार समझौते भी एक प्रकार से कूटनीति का हिस्सा हैं. मुक्त व्यापार समझौतों के बारे में तर्क भी दिया जाता है कि यह संभव है कि देश को इससे कुछ आर्थिक नुकसान हो, लेकिन इससे कई कूटनीतिक लाभ होते हैं और देशों के साथ राजनयिक संबंध बढ़ाने का मौका इन व्यापार समझौतों से ही मिलता है.

ऐसा ही एक समझौता करने की ओर भारत सरकार बढ़ रही है, जिससे न तो कोई दिखने लायक कूटनीतिक फायदा होगा और न ही कोई आर्थिक लाभ. इस समझौते का नाम है- आरसीइपी (क्षेत्रीय विस्तृत आर्थिक साझेदारी). नवंबर 2012 में कंबोडिया में आयाेजित ‘आसियान’ शिखर सम्मेलन में आरसीईपी मुक्त व्यापार समझौते का प्रस्ताव लाया गया, जिसमें प्रारंभिक तौर पर 16 देश शामिल किये गये.

वे देश हैं- इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, ब्रुनेई, वियतनाम, लाओस, म्यांमार और कंबोडिया यानी 10 आसियान देशों के अलावा छह अन्य देश- जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, भारत और चीन शामिल. इस समझौते का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि इन 16 देशों में दुनिया के 3.4 अरब लोग या विश्व की 45 प्रतिशत जनसंख्या ही नहीं रहती, बल्कि वैश्विक व्यापार में इन देशों का हिस्सा 30 प्रतिशत है. ऐसे में यदि यह समझौता हो जाता है, तो यह दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय व्यापार समझौता होगा.

मुक्त व्यापार समझौतों के संदर्भ में भारत का अनुभव उत्साहवर्द्धक नहीं रहा है. वर्ष 2009 में भारत ने आसियान देशों के साथ एक मुक्त व्यापार समझौता किया था.

इस समझौते के बाद वर्ष 2009-10 और 2017-18 के बीच आसियान देशों के साथ भारत का व्यापार घाटा 7.7 अरब डाॅलर से बढ़ता हुआ 13 अरब डाॅलर पहुंच गया. यदि हम सभी आरसीइपी देशों के साथ व्यापार घाटे की बात करें, तो 2017-18 में यह घाटा 104 अरब डाॅलर का रहा और यह भारत के कुल व्यापार घाटे 162 अरब डाॅलर के 64 प्रतिशत के बराबर है. विदेशी व्यापार विशेषज्ञों में इस बात को लेकर लगभग मतैक्य है कि वस्तुओं के व्यापार में आरसीइपी समझौते से भारत को कोई फायदा नहीं होगा. स्पष्ट दिख रहा है कि आरसीईपी समझौते के बाद इन देशों से आयात और ज्यादा बढ़ जायेंगे, खासतौर पर चीन से.

हालांकि, कहा जा रहा है कि आरसीईपी समझौते के बाद भी चीन के साथ एक अलग प्रकार का समझौता किया जायेगा, लेकिन सच्चाई यह है कि जहां आसियान देशों के साथ 90-92 प्रतिशत उत्पादों पर आयात शुल्क को शून्य किया जाना है, चीन के 74 प्रतिशत उत्पादों पर आयात शुल्क शून्य करने का प्रस्ताव भारत सरकार ने दिया है. चीन समेत आरसीइपी के समझौते के बाद भारत में चीनी आयात और बढ़ सकता है. भारत सरकार जो पिछले कुछ समय से चीन से आयातों को रोकने के लिए टैरिफ बढ़ाने, गैर-टैरिफ उपाय अपनाने के साथ-साथ एंटी डंपिंग ड्यूटी भी लगा रही है, आरसीइपी समझौता होने के बाद इन प्रयासों पर रोक लग सकती है.

आरसीइपी समझौते के बाद न्यूजीलैंड और आॅस्ट्रेलिया से डेयरी उत्पाद, मीट एवं कृषि उत्पादों के आयात बढ़ सकते हैं, जो बाजार में कीमतों में कमी लाते हुए किसानों की आय को प्रभावित कर सकते हैं.

ऐसे में वर्तमान सरकार का किसानों की आय दोगुना करने का लक्ष्य पहले से कहीं दूर जा सकता है. फिर भी इस समझौते के पैरोकार यह तर्क देते हैं कि सेवाओं के संदर्भ में हमें आरसीइपी समझौते से लाभ हो सकता है. यह बताना उचित होगा कि सेवाओं के संदर्भ में आरसीईपी के प्रस्तावित समझौते जैसा ही समझौता आसियान में भी हुआ था, लेकिन उसका भी अनुभव भारत के लिए अधिकांशतः खट्टा ही रहा.

भारत ने डब्ल्यूटीओ समझौतों में बौद्धिक संपदा के बारे में जो वचन दिये हुए हैं, उनसे आगे बढ़कर आरसीईपी में समझौते किये जाने की आशंका है.

मसलन, दवा कंपनियों के पेटेंट को 20 साल से आगे बढ़ाने का प्रस्ताव आरसीईपी वार्ताओं में चल रहा है. यदि यह समझौता हो जाता है, तो दवा कंपनियों के पेटेंट की अवधि 20 साल से ज्यादा हो जायेगी. इसका मतलब यह है कि जो जानकारियां कंपनियों के पास हैं, उन पर सदैव उन्हीं का अधिकार होगा. इन प्रावधानों के लागू होने से जनता के लिए सस्ती दवाईयां सुलभ करने के मार्ग में बाधाएं बढ़ जायेंगी.

आरसीइपी समझौता मोदी सरकार की मेक इन इंडिया, किसानों की दोगुनी आय योजना, जनस्वास्थ्य समेत अनेकों नीतियों के रास्ते में बाधा बन सकता है. तो आखिर आरसीईपी क्यों? यह प्रश्न आर्थिक विश्लेषकों, किसान संगठनों को ही नहीं, बल्कि फिक्की और सीआईआई जैसे उद्योग चैंबरों को भी परेशान कर रहा है, और वे सरकार को गुहार लगा रहे हैं कि सरकार इस समझौते में आगे न बढ़े.

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