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हम सभी के लिए यह गर्व का क्षण है

अनुज कुमार सिन्हा हरिवंश जी का राज्यसभा का उपसभापति पद पर चुना जाना यानी गर्व का क्षण. हर किसी के लिए. मेरे लिए, प्रभात खबर के लिए, देश के पत्रकाराें के लिए. खास ताैर पर झारखंड आैर बिहार के लाेगाें के लिए. संभवत: बिहार-झारखंड का पहला व्यक्ति, जाे इस पद पर चुने गये. हालांकि कड़िया […]

अनुज कुमार सिन्हा
हरिवंश जी का राज्यसभा का उपसभापति पद पर चुना जाना यानी गर्व का क्षण. हर किसी के लिए. मेरे लिए, प्रभात खबर के लिए, देश के पत्रकाराें के लिए. खास ताैर पर झारखंड आैर बिहार के लाेगाें के लिए. संभवत: बिहार-झारखंड का पहला व्यक्ति, जाे इस पद पर चुने गये. हालांकि कड़िया मुंडा लाेकसभा के उपाध्यक्ष बने थे, एनई हाेराे काे विपक्ष ने उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था.
इसलिए जब हरिवंश जी के विजयी हाेने की घाेषणा हुई, आसन पर देखा ताे गर्व महसूस हुआ. इसके साथ ही उनके साथ बिताये गये 29 साल का एक-एक पल याद हाेता गया. रांची में आते देखा, प्रभात खबर के प्रधान संपादक के ताैर पर साथ काम किया, फिर राज्यसभा में गंभीर विषयाें पर चर्चा करते देखा. आैर अब आसन की महत्वपूर्ण जिम्मेवारी काे संभालते देखेंगे.
तीन दिनाें पहले जैसे ही यह खबर मिली कि राज्यसभा के उपसभापति के लिए एनडीए ने हरिवंश जी काे उतारने का फैसला किया है, उनकी जीत के प्रति मैं आश्वस्त उसी समय हाे गया था. इसका कारण था.
मैंने हरिवंशजी के साथ 1989 से 2017 जनवरी तक काम किया है. उसके बाद भी संपर्क लगातार बना हुआ रहा. मैं उनके काम करने के तरीके काे जानता हूं. समझता हूं. जब चुनाव परिणाम आया ताे गर्व महसूस हुआ कि प्रभात खबर में हमलाेगाें के बीच 29 साल काम करनेवाले हरिवंश जी काे हमलाेग राज्यसभा का संचालन करते देख पायेंगे. गर्व है हम मीडिया के साथियाें के लिए भी, क्याेंकि ईमानदारी, जज्बा, समर्पण, ज्ञान, मूल्याें की पत्रकारिता की आज भी कितनी प्रतिष्ठा है. हरिवंशजी जब तक प्रभात खबर में रहें, जनहित की पत्रकारिता काे महत्व दिया.
बलिया (उत्तर प्रदेश) के किसान परिवार में जन्म लेनेवाले हरिवंशजी की जन्मभूमि भले ही उत्तर प्रदेश रही हाे, लेकिन उनकी कर्मभूमि ताे झारखंड-बिहार है. झारखंड अलग राज्य के आंदाेलन काे इतना खुला समर्थन काेई आैर दूसरा संपादक दे नहीं पाता. जब 1989 में वे रविवार की नाैकरी छाेड़ कर प्रभात खबर आये, उसी समय मेरी मुलाकात उनसे हुई थी. तब मैं रांची में पढ़ता भी था आैर प्रभात खबर में नाैकरी भी करता था. उन दिनाें प्रभात खबर बेहतर स्थिति में नहीं था.
हरिवंश जी ने उसी प्रभात खबर काे शिखर पर पहुंचाया. जाे अखबार सिर्फ रांची से निकलता था, वह देश के तीन राज्याें के दस स्थानाें से निकल कर देश के शीर्ष दस अखबाराें में शामिल हाे गया. यह काम काेई एक दिन में नहीं हुआ. उनकी तपस्या, मेहनत, लगन, बाेल्ड पत्रकारिता के कारण हुआ. अच्छी टीम बनायी आैर उस टीम पर अांख मूंद कर भराेसा किया.
यही हरिवंश जी का खास गुण है. जिस पर विश्वास करते हैं, उसके साथ खड़ा रहते हैं. अपने साथियाें काे काम करने की आजादी दी आैर मूल्याें की पत्रकारिता सिखायी. यह बताया कि साख से बढ़ कर कुछ नहीं है. लीडरशिप का अदभुत गुण उनमें आरंभ से रहा है. जब वे रांची आये ताे रांची एक छाेटा सा शहर था. आंदाेलन के कारण झारखंड अशांत रहता था. उन्हाेंने इसी अखबार काे ठीक करने की चुनाैती ली. चुनाैती वे स्वीकार करते हैं. हार नहीं मानते. आगे भी यही दिखेगा.
रांची जैसे शहर में रह कर देश के बड़े-बड़े अफसराें-नेताआें, सामाजिक कार्यकर्ताआें से उनके संपर्क आरंभ से रहे. हाे सकता है कि मुंबई में धर्मयुग में धर्मवीर भारती, गणेश मंत्री आैर रविवार में सुरेंद्र प्रताप सिंह, उदयन शर्मा जैसे बड़े पत्रकाराें के साथ काम करने का उन पर प्रभाव रहा हाे. खुद अनुशासित आैर टीम काे भी अनुशासित रखने की कला वे जानते हैं.
नये-नये से पत्रकार भी अगर काेई खास रिपाेर्ट लेकर आता, ताे उसका उत्साह बढ़ाते. सच ताे यह है कि पत्रकारिता में उन्हाेंने जितने प्रयाेग किये (प्रभात खबर में रहते हुए), शायद ही किसी ने किया हाे. प्रभात खबर के प्रधान संपादक रहने के बावजूद सादा जीवन व्यतीत करते थे. जब भी अखबार आर्थिक संकट में रहा, उन्हाेंने खुद से अपनी सुविधा में कटाैती की. किस अखबार का काैन सा प्रधान संपादक हाेगा, जाे बस आैर स्कूटर की सवारी करने से परहेज नहीं करता हाे. तब मैं जमशेदपुर में संपादक था. खबर मिली कि हरिवंशजी बस से रांची से जमशेदपुर जायेंगे. मेरे पास तब स्कूटर था.
मैं स्कूटर लेकर बस स्टैंड पहुंच गया आैर उसी स्कूटर से उन्हें जमशेदपुर शहर घुमाता रहा. अपने एक-एक साथी का ख्याल रखना. कई बार ऊपर से कड़े दिखते लेकिन उन्हें विश्वास दिलाने पर कई फैसले बदल देते. जब भी पत्रकाराें पर काेई हमला हुआ, विराेध करने से नहीं चूके. नये लीडर तैयार करने में वे विश्वास करते थे.
युवाआें काे बहुत माैका दिया. जब जमशेदपुर में पहली बार प्रभात खबर निकालने का फैसला हुआ ताे मुझ पर ही भराेसा किया आैर वहां अखबार निकालने के लिए भेजा. यह आसान काम नहीं था क्याेंकि तब मुझसे सीनियर पत्रकाराें की भरमार थी.
विजन ताे अदभुत. 2010 में जब मैं जमशेदपुर में संपादक था, तब धालभूमगढ़ के बीडीआे का अपहरण नक्सलियाें ने कर लिया था. सरकार ने तब नक्सलियाें की बात मान ली थी लेकिन वे बीडीआे काे नहीं छाेड़ रहे थे. मेरे एक संवाददाता ने खबर दी कि नक्सली बीडीआे काे छाेड़ सकते हैं अगर प्रभात खबर का काेई सीनियर पत्रकार लेने आये.
मैंने कहा-मैं खुद जाऊंगा. मैं जमशेदपुर से निकल चुका था,बगैर सरकार की अनुमति के. चीजाें काे मैं समझ नहीं पाया था. एक ही जुनून था कि बीडीआे काे छुड़ा लाऊं. लेकिन जब मेरी फाेन पर हरिवंशजी से बात हुई ताे उन्हाेंने साफ कहा कि बगैर सरकार की अनुमति के नहीं जाना. वे जानते थे कि बगैर सरकार से अनुमति लिये जाने पर क्या हाे सकता है.
अंतत: उन्हाेंने अनुमति दिलायी. मैं गया आैर बीडीआे काे लेकर आ ही रहा था कि पुलिस ने जबरन बीडीआे काे छीन लिया. पुलिस के गुस्से काे मैं आज भी याद करता हूं आैर पाता हूं कि अगर मैं हरिवंश जी की बात काे नहीं माना हाेता ताे पुलिस मेरा क्या हाल करती. यह हरिवंशजी के विजन का एक उदाहरण है.
जब भी मैंने काेई विशेष अभियान चलाने का उनसे आग्रह किया, वे सहमत हाे गये. चुनाव में रथ निकालना हाे, अलबर्ट एक्का की पत्नी के लिए कार्यक्रम कर चार लाख रुपये की व्यवस्था करने की बात हाे, वे पीछे नहीं रहे. अपने साथियाें का ख्याल वे बहुत करते हैं. जब भी मैं रांची मीटिंग के लिए आता, रात में लाैटने के लिए नाै-दस बजे निकलता, वे समय नाेट कर लेते.
जब तक मैं रात में (कभी-कभी एक बजता था) जमशेदपुर नहीं पहुंच जाता, वे साेते नहीं. जब मैं कहता-सर ठीक से पहुंच गया हूं. तब वे चैन से साेते. अपने साथियाें के लिए इतना ध्यान रखने वाला विरले ही हाेते हैं. रांची जैसे शहर से निकलनेवाला प्रभात खबर ने अगर देश में पहचान बनायी ताे इसमें सबसे बड़ा याेगदान उन्हीं का है.
रांची में भाषण देने रूसी माेदी, जावेद अख्तर,भैराें सिंह शेखावत, अरुण शाैरी, एसपी सिंह जैसे व्यक्ति नहीं आते, अगर हरिवंश के साथ उनके निजी संबंध नहीं हाेते. चंद्रशेखर जी (पूर्व प्रधानमंत्री) के साथ उनके करीबी रिश्ते थे. यही कारण था कि चंद्रशेखर जी जब प्रधानमंत्री बने ताे हरिवंशजी उनके मीडिया सलाहकार बने. यहां तारीफ करनी हाेगी हरिवंशजी की. पीएमआे में वे थे. उन्हें जानकारी थी कि दूसरे दिन चंद्रशेखर जी इस्तीफा दे सकते हैं, लेकिन उनके अपने अखबार में एक लाइन की खबर नहीं छपी थी. इसी कहते हैं पद की गाेपनीयता. इसे कहते हैं विश्वास.
इसलिए आज जब हरिवंशजी राज्यसभा के उपसभापति पद के लिए चुन गये हैं, इससे सदन की गरिमा बढ़ेगी. ज्ञान का वे भंडार हैं. लगन है. सम्मान करना जानते हैं. साफ छवि है. समाजवादी आंदाेलन के पक्षधर हैं. जेपी आंदाेलन की उपज हैं. नेतृत्व करने की क्षमता है. राष्ट्रीय सुरक्षा पर वे खास चाैकस रहते हैं. अखबार में रहते हुए भी इन चीजाें पर खास ध्यान देते थे. इसलिए देश काे आज गर्व है कि ऐसा उपसभापति मिला है जिसमें सदन के बेहतर तरीके से चलाने की क्षमता है. इससे सदन की भी गरिमा बढ़ेगी. झारखंड आैर प्रभात खबर (उनके साथियाें काे भी) काे गर्व है कि हरिवंश जी इस पद पर पहुंचे हैं. बधाई.

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