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ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित थी, बेटियों ने दिया नया जीवन

कोलकाता : कैंसर कोई लाइलाज बीमारी नहीं है, आधुनिक चिकित्सा में इसका इलाज संभव है. अगर किसी महिला को ब्रेस्ट कैंसर है तो उसे घबराने या हिम्मत हारने की जरूरत नहीं है. कैंसर को लेकर लोगों में एक दहशत सी बनी हुई है, जैसे मैंने इस बीमारी का मुकाबला किया, वैसे हर महिला कर सकती […]

कोलकाता : कैंसर कोई लाइलाज बीमारी नहीं है, आधुनिक चिकित्सा में इसका इलाज संभव है. अगर किसी महिला को ब्रेस्ट कैंसर है तो उसे घबराने या हिम्मत हारने की जरूरत नहीं है. कैंसर को लेकर लोगों में एक दहशत सी बनी हुई है, जैसे मैंने इस बीमारी का मुकाबला किया, वैसे हर महिला कर सकती है.

बस…..इस स्थिति में घर वालों का विशेषकर बेटियों का सपोर्ट मिले तो हर मां इस दुःखद स्थिति से बाहर निकल सकती है. अपने जीवन का अनुभव बता रही हैं, कैंसर सरवाइवर शीला कुमार. शीला एक स्कूल में शिक्षिका हैं व कई सामाजिक गतिविधियों से जुड़ी हुई हैं. वह बताती हैं कि 2007 में उनकी बड़ी बेटी बेंगलुरू में पढ़ रही थी. दोनों बेटियों के कैरियर व परिवार की जिम्मेदारी को लेकर काफी स्ट्रेस में रहती थीं. यह स्ट्रेस कैसे बीमारी में बदल गया, मुझे भी इसका अंदाजा नहीं था. वह बताती हैं कि 2010 में मुझे पता चला कि स्तन (दाहिने) में ग्लैंड है.
बड़ी बेटी हमेशा कहती कि मम्मी जल्दी जांच करवाओ. उसी के कहने पर जब डॉक्टर से फाइन निडिल टेस्ट करवाया तो पॉजीटिव निकला. जांच में डॉक्टरों ने बताया कि उसे ब्रेस्ट कैंसर है. इसके बाद तीसरे दिन ही वह अपने पति के साथ टाटा मेमोरियल, अस्पताल, मुंबई में अपना इलाज करवाने पहुंची. जीवन बचाने के लिए डॉक्टरों ने उसका राइट ब्रेस्ट ऑपरेशन करके निकाल दिया. इसको मेस्ट्रोटोमी तकनीक कहा जाता है. यह घटना है, अगस्त 2010 की. वह दिन मेरे लिए काफी चुनाैती भरा था लेकिन अस्पताल से छूटने के बाद मैंने सब कुछ स्वीकार कर लिया. इस ऑपरेशन के बाद भी 8 बार मेरी कीमोथेरेपी की गयी. कीमोथेरेपी से मेरे सिर के बाल भी झड़ने लगे थे. इस संकट की घड़ी में मुझे सबसे ज्यादा सपोर्ट मेरी बड़ी बेटी स्नेहा कुमार ने किया.
वह अभी मेडिसिन में जर्मनी में रिसर्च कर रही है. उसके मोटीवेशन व केयर से ही मेरी जान बची है. उसके अलावा छोटी बेटी अनुजा कुमार ने भी ऑपरेशन के बाद मेरी काफी सेवा की. खाना बनाना, खिलाना व मेरी ड्रेसिंग करना उसका रोज का काम था. दोनों बेटियां मेरी काउंसेलिंग करती थी, कि मम्मी, कुछ नहीं हुआ, सब ठीक हो जायेगा. शीला कहती हैं कि ईश्वर ऐसी गुणी बेटियां सबको दें. ये मेरी दोनों बेटियां मेरी हिम्मत हैं. उन्होंने मुझे नया जीवन दिया है.
जीवन के प्रति सकारात्मक सोच रखने वाली इस दिलेर शिक्षिका का कहना है कि मेरी इस परीक्षा में मेरे पति एस कुमार ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी. मुंबई में इलाज के दाैरान पूरी देखभाल की. हर तरह से मुझे हिम्मत बंधाते रहे, जैसे कुछ हुआ ही नहीं है. वे रेलवे में नाैकरी करते हैं लेकिन काफी केयर करते हैं. ईश्वर ऐसा परिवार सबको दे. शीला कहती हैं कि अभी राइट बेस्ट रिमूव होने के बाद वह विशेषज्ञों द्वारा सुझायी गयी आर्टिफिशियल ब्रेस्ट के जरिये अपना पूरा कामकाज कर लेती हैं. वह स्कूल में पढ़ा भी रही हैं.
उसे 10 साल हो गये हैं, ऑपरेशन करवाये हुए. हालांकि वह अभी भी चेकअप के लिए मुंबई जाती हैं लेकिन अभी वह जीवन को ज्यादा इन्ज्वाय करती हैं, क्योंकि ईश्वर ने उन्हें यह गिफ्ट दी है. मदर्स डे पर हर महिला को मैं यह संदेश देती हूं कि अगर कैंसर की संभावना है तो तुरंत जांच करवाएं. इसको छिपाएं नहीं. ऑपरेशन करवाना भी पड़े तो, महिलाएं निराश न हों, बल्कि बहुत धैर्य व साहस के साथ इसका मुकाबला करें. जैसे वह सामान्य जीवन जी रही हैं, वैसे वे भी जी सकती हैं. पूरा काम करने के साथ वह स्कूटर व कार भी चला लेती हैं.
उनको कोई दिक्कत नहीं होती है. वह गोल्फ भी खेलती हैं. अपने इरादे की पक्की इस शिक्षिका का मानना है कि ईश्वर ने जो जीवन दिया है, यह बहुत कीमती है, जब हम अस्वस्थ पड़ते हैं तो इसकी कीमत समझ में आती है. जब तक जीवन है, इसका भरपूर आनंद उठाना चाहिए. खूब मस्ती करनी चाहिए व दूसरों को भी मदद करनी चाहिए.
अभी मैं उन महिलाओं को मोटीवेट करती हूं, जो इस बीमारी से जूझ रही हैं या अपना इलाज करवा रही हैं. जब उनके चेहरे पर मुस्कराहट आती है तो मेरा मन भी अंदर से कहीं प्रफुल्लित होता है. मेरा ऐसा मानना है कि व्यक्ति सकारात्मक सोच रखे तो वह हर चुनाैती का मुकाबला कर सकता है. जब आप हिम्मत कर लेते हैं तो मुसीबतें परास्त होने लगती हैं.

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