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कोलकाता : बच्चों पर पढ़ाई का दबाव ना डालें अभिभावक, प्रभात खबर जन संवाद में बोले वक्ता

कोलकाता : बच्चों की परवरिश में अभिभावक अपनी ओर से किसी भी प्रकार की कमी नहीं रखते हैं, लेकिन जाने-अनजाने में कुछ ऐसी बातें हैं, जो बच्चों के लिये शायद सही नहीं होती. पढ़ाई के लिये बच्चों पर दबाव या प्रेशर डालना, उन्हीं बातों में से एक है. बच्चों के साथ लापरवाही भरा व्यवहार सही […]

कोलकाता : बच्चों की परवरिश में अभिभावक अपनी ओर से किसी भी प्रकार की कमी नहीं रखते हैं, लेकिन जाने-अनजाने में कुछ ऐसी बातें हैं, जो बच्चों के लिये शायद सही नहीं होती. पढ़ाई के लिये बच्चों पर दबाव या प्रेशर डालना, उन्हीं बातों में से एक है. बच्चों के साथ लापरवाही भरा व्यवहार सही नहीं है लेकिन पढ़ाई के लिये बच्चों पर ज्यादा दबाव बनाना, उनकी मानसिकता पर गलत प्रभाव डाल सकता है.
उन पर नकारात्मक असर पड़ सकता है. बच्चे इससे तनाव व डिप्रेशन के शिकार भी हो सकते हैं. बच्चों से प्यार से बहुत कुछ कराया जा सकता है, जो जोर-जबर्दस्ती से शायद संभव नहीं है. बच्चों पर पढ़ाई का दबाव नहीं डालना ही अभिभावकों के लिए सही है. यह बात प्रभात खबर ‘जन संवाद’ परिचर्चा में मौजूद विशिष्टजनों ने कही.
इस बार प्रभात खबर जन संवाद का आयोजन ह्यूमन राइट्स प्रोटेक्शन ऑफ इंडिया नामक संगठन के सहयोग से उत्तर 24 परगना जिले के बैरकपुर में हुआ था. परिचर्चा का विषय ‘बच्चों पर पढ़ाई का दबाव/ क्या करें अभिभावक?’ रखा गया. परिचर्चा की अध्यक्षता संगठन के अध्यक्ष मोहम्मद अब्दुल खालिक ने किया. आइये जानते हैं परिचर्चा में विशिष्टजनों की बातें :
मोहम्मद अब्दुल खालिक (ह्यूमन राइट्स प्रोटेक्शन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष) :
कभी-कभी बच्चों को पढ़ाई को लेकर मां-बाप गुस्से में कुछ गलत बोल देते हैं, तो कभी अनजाने में दूसरों से बच्चों की तुलना कर बैठते हैं. इस तरह की बातें बच्चों के दिमाग में घर कर जाती है. बच्चे संवेदनशील होते हैं.
ऐसा करने से बच्चों पर नकरात्मक प्रभाव पड़ता है. अभिभावकों को बच्चों पर पढ़ाई का दबाव नहीं डालना चाहिए, बल्कि उनकी परेशानी का समझकर उसका समाधान करना चाहिए, ताकि बच्चे उनके साथ भावात्मक रूप से जुड़े रहें व कोई अनैतिक कदम ना उठाएं. बच्चों के विकास के लिए अभिभावकों व शिक्षकों को मिलकर कार्य करना चाहिए व उनमें सकारात्मक सोच उत्पन्न करनी चाहिए.
भारत में 15 से 29 साल की उम्र के किशोरों और युवा वयस्कों के बीच आत्महत्या की दर सबसे अधिक है. पढ़ाई के लिए दबाव बनाना वास्तव में बच्चों पर और अधिक तनाव डालना है. अभिभावक अपने बच्चों को यह कहकर उत्साह बढ़ाएं कि वे जानते हैं कि उनका बच्चा परीक्षा में अच्छा परफॉरमेंस के लिये तैयार है. बच्चे से उनके अनुसार अच्छा करने की बात कहनी चाहिये व परीक्षा में अच्छे नंबर लाने के लिये उन पर दबाव नहीं बनाना चाहिए.
रवि प्रसाद
अभिभावक को बच्चे की पढ़ाई के दौरान उसका मददगार होना चाहिए. इम्तिहान को लेकर बच्चा अपने स्तर पर थोड़ा तनाव में रहता है. उसे अच्छे नंबर लाने के लिये बार-बार कहकर दबाव डालना उसके तनाव को बढ़ाना ही है.
बच्चों पर पढ़ाई का दबाव डालकर आप जबर्दस्ती उन्हें पढ़ा सकते हैं लेकिन इससे उन पर बुरा असर पड़ सकता है. अगर बार-बार पढ़ने के लिये बच्चों पर दबाव बनाया जाये तो वे पढ़ाई से दूर भागने लगते हैं, वो चीज उन्हें बोरिंग लगने लगती है.
बच्चों को अभिभावक यदि प्यार से समझाएं तो वे बिना आनाकानी से पढ़ाई पर ध्यान देने लगेंगे. अभिभावक बच्चों की पढ़ाई का एक टाइम टेबल बनाने में मदद करें, ताकि उसे अपने विषयों को रिवाइज करने का पर्याप्त समय मिल पाये, साथ ही उसे खेलने के वक्त भी मिले. बच्चों के लिये अभिभावकों का भावनात्मक सपोर्ट काफी अहम होता है.
काजल भौमिक
स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के भारी-भरकम बैग और होमवर्क को लेकर केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जरूरी गाइडलाइंस जारी किया है, ताकि बच्चों के दबाव को कम किया जा सके. कई अभिभावक ऐसे भी होते हैं जो हर वक्त बच्चों को पढ़ाई के लिये कहते हैं. स्कूल के गेट से निकलते ही उनके होमवर्क के बारे में पूछने लगते हैं.
हर ऐसा माहौल बच्चों के लिये क्या सही है? यह अभिभावकों को सोचना पड़ेगा. दबाव व प्रेशर से बच्चों का परफाॅरमेंस शायद अच्छा नहीं हो पाता है. पढ़ाई में जब वह रूचि लेगा तभी उसका परफॉरमेंस बेहतर होगा. इसके लिये उसे पढ़ाई के लिये प्रोत्साहित करने की जरूरत है, उसपर दबाव बनाने की नहीं.
विनोद यादव
मौजूदा समय में ऐसा लगता है कि पढ़ाई को लेकर बच्चों के बीच प्रतिस्पर्धा नहीं बल्कि अभिभावकों के बीच है. नतीजा यह होता है कि पढ़ाई को लेकर बच्चों पर अभिभावकों का दबाव बढ़ता जाता है. फलस्वरूप बच्चों पर मानसिक दबाव में भी बढ़ोतरी होती है. अभिभावकों को पहले ये समझने की जरूरत है कि हर बच्चा अपने आप में अलग है, उसकी अपनी रूचि होती है और हर बच्चे का अपना सामर्थ्य और प्रतिभा होता है.
अभिभावक बच्चे को इंजीनियर या डॉक्टर बनाना चाहते हैं, यह भी तो हो सकता है कि उसे क्रिकेट व अन्य खेल के प्रति रूचि हो और वह एक खिलाड़ी बनना चाहता है. अभिभावक अपने सपनों को बच्चों पर ना थोंपे बल्कि उनकी रूचि के अनुसार उन्हें आगे बढ़ने के लिये प्रोत्साहित करें. सिर्फ पढ़ाई-लिखाई के आधार पर अपने बच्चे का मूल्यांकन करना बिल्कुल भी सही बात नहीं है.
विनोद कुमार सिंह
आधुनिक भारत में शिक्षा प्रणाली और बेहतर हो पाता यदि हर अभिभावक अपने बच्चों की क्षमता को पहचान करने मेें समर्थ हो पाते. पढ़ाई का दबाव बनाकर बच्चे पढ़ाई के प्रति सजग नहीं हो सकते हैं.
अरमान अली
हर अभिभावकों की अपेक्षा होती है कि उसकी संतान परीक्षा मेें अच्छा नंबर लाये. इसी अपेक्षा के चलते वे जाने-अनजाने बच्चों पर अतिरिक्त मानसिक दबाव डाल देते हैं. अपने माता-पिता की अपेक्षा पूरी करने के लिये बच्चा तनावग्रस्त हो सकता है.
तनाव से बच्चे की पढ़ाई ठीक नहीं हो पाती है. परीक्षा परिणाम अपेक्षित नहीं रहने से विद्यार्थियों के मन में निराशा की भावना आ जाती है. कई बार परीक्षा में असफल होने या अभिभावकों की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरने पर विद्यार्थी गलत कदम भी उठा लेते हैं. तनावमुक्त रहकर पढ़ाई करने वाला बच्चा हमेशा अच्छे स्कोर करता है.
जन संवाद के दौरान राजू रजक, इंद्रजीत साह, राज कुमार यादव, जीतेंद्र महतो, शिव कुमार मल्लिक, सूरज पासवान, विजय साव, पिंकी साव, प्रदीप हाल्दार, अरविंद अग्रवाल, केशव चौधरी, दया शंकर सिंह, श्रीराम सिंह, संतन सिंह, मोहन राय, विप्लव विश्वास, तपन राय, टी दास, अभिजीत घोष, गणेश जायसवाल, पंकज राय, शेख अली समेत अन्य गणमान्य लोग मौजूद रहे.

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