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बोकारो : कोकुन से किस्मत का धागा संवार रहीं महिलाएं

महिला समिति बोकारो व बीएसएल सीएसआर की ओर से मिल रहा प्रशिक्षण केस स्टडी 01 सेक्टर 04/एफ की फूलमति देवी घर-घर जाकर झाडू-पोछा का काम करती थी. जी-तोड़ मेहनत के बाद कुछ पैसा तो मिल जाता था, लेकिन स्वाभिमान वाला काम न होने की वजह से मन कचोटता रहता था. दो लड़की व एक लड़का […]

महिला समिति बोकारो व बीएसएल सीएसआर की ओर से मिल रहा प्रशिक्षण
केस स्टडी 01
सेक्टर 04/एफ की फूलमति देवी घर-घर जाकर झाडू-पोछा का काम करती थी. जी-तोड़ मेहनत के बाद कुछ पैसा तो मिल जाता था, लेकिन स्वाभिमान वाला काम न होने की वजह से मन कचोटता रहता था. दो लड़की व एक लड़का समेत परिवार को चलाना भी आसान नहीं होता था. रिश्तेदारों ने सिल्क यार्न रिलिंग प्रोजेक्ट के प्रशिक्षण के बारे में बताया. आज वह धागा से किस्मत गढ़ रही हैं.
केस स्टडी 02
चास की पम्पी देवी के पति प्राइवेट जॉब करते हैं. आर्थिक रूप से कमजोर पम्पी देवी को नौकरी की तलाश थी. नौकरी ऐसा हो कि स्वाभिमान बना रहे. कुछ दिन पहले पम्पी की सहेली ने सिल्क धागा के प्रोजेक्ट के बारे में बताया. इसके बाद वह सिल्क धागा निर्माण ट्रेनिंग ले रही हैं. आज वह हर दिन कई बॉबिन धागा तैयार कर रही हैं.
सीपी सिंह
बोकारो : ऐसे कई उदाहरण हैं, जिसमें रेशम का कीड़ा (कोकुन) से महिलाएं आत्मनिर्भरता व स्वावलंबन का धागा पीरो रही हैं. किस्मत को सिल्कियत दे रही हैं. महिलाओं को महिला समिति बोकारो व बीएसएल सीएसआर की ओर से सेक्टर 04 में संचालित स्वावलंबन केंद्र में फिलहाल 10 महिला सिल्क यार्न रिलिंग प्रोजेक्ट के तहत ट्रेनिंग मिल रही. ट्रेनिंग जीरो वेस्ट तकनीक पर दिया जा रहा है. ट्रेनिंग पाकुड़ (लिट्टीपाड़ा) की दो एक्सपर्ट दे रही हैं.
दो की ट्रेनिंग मिल रही है एक अन्य का मिलेगा
अधिकारी बताते हैं : वर्तमान में दो तरह के धागा निर्माण की ट्रेनिंग दी जा रही है. आने वाले कुछ दिनों में एक अन्य मशीन (चरखा) को इंस्टॉल किया जायेगा. इससे एक अन्य तरह का धागा तैयार होगा. प्रोजेक्ट अभिनव सिल्क के साथ साझेदारी के तहत चलाया जा रहा है. इससे महिलाओं को किसी न किसी रूप में फायदा होगा. साथ ही वेस्टेज को शत प्रतिशत कम किया जा सकेगा. बताते हैं : कोकुन की क्वालिटी पर ही धागा की क्वालिटी निर्भर करती है.
ट्रेनर प्रेमलता देवी बताती हैं : एक कोकुन से 03-04 ग्राम धागा निर्माण होता है. पहले कोकुन को हाइड्रोजन पारासाइट व साबुन के घोल में उबाला जाता है. इसके बाद कोकुन से एक तार निकाला जाता है.
एक तार निकलने के पहले कई तार निकलते हैं, उन तारों का इस्तेमाल मटका सिल्क में किया जाता है. एक तार को सीधे मशीन के बोबिन में चढ़ाया जाता है. यह प्योर सिल्क होता है, कीमत 4400 प्रति किलो होता है. जबकि मटका सिल्क की कीमत 1700 रुपया प्रति किलो होती है.
महिला समिति व बीएसएल सीएसआर के पदाधिकारियों की माने तो कोकुन रांची के अभिनव सिल्क से प्राप्त किया जाता है. शुरुआत में 15000 कोकुन प्राप्त किया गया है. तैयार धागा भी अभिनव सिल्क को ही बेचा जायेगा. ट्रेनिंग प्राप्त कर रहीं महिलाओं को प्रति किलो के दर से वेतन दिया जाता है. यदि महिलाओं ने एक दिन में एक किलो प्योर सिल्क धागा तैयार किया तो उन्हें कम से कम 1000 रुपया मिलेगा. वहीं मटका सिल्क के लिए प्रति किलो कम से कम 800 रुपया दिया जाता है.
इन्हें मिल रही है ट्रेनिंग
सिम्पी भारती (सेक्टर 12), भारती (सेक्टर 04/एफ), चिंता देवी (सेक्टर 04/डी), पम्पी कुमारी (चास), फूलमति देवी (सेक्टर 04/एफ), अनिता देवी (सेक्टर 05), रेखा देवी (सेक्टर 04), अनिता देवी, रेखा देवी, मीना देवी, सुलेखा देवी वर्तमान में ट्रेनिंग ले रही हैं.
मटका सिल्क… बर्बाद कुछ नहीं होता
ट्रेनर रेखा देवी बताती हैं : कोकुन के कई तार को मिलाकर एक धागा बनाया जाता है. डिमांड के अनुसार धागा का व्यास तय किया जाता है. धागा शुरू से अंत तक एक व्यास का रहे, इसी में कलाकारी होती है. इसी से क्वालिटी मेनटेन होता है. वहीं मटका सिल्क बर्बाद हो रहे कोकुन के तार का इस्तेमाल कर बनाया जाता है. इसमें मेहनत ज्यादा होती है, बारीकी काम. इसमें व्यास की ज्यादा परवाह नहीं करनी पड़ती है

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