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लुगुबुरु घांटाबाड़ी संतालियों की गहरी आस्था और विश्वास का केंद्र : द्रौपदी मुर्मू

ललपनिया/महुआटांड़ : लुगुबुरु घांटाबाड़ी धोरोमगाढ़ में संतालियों का 19वां अंतरराष्ट्रीय सरना महाधर्म सम्मेलन का आज दूसरा दिन है. दो दिवसीय महाधर्म सम्मेलन के आखिरी दिन मुख्य अतिथि के रूप में राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू शामिल हुई हैं. राज्‍यपाल करीब 2 बजकर 30 मिनट पर ललपनिया पहुंची. सम्‍मेलन को संबोधित करते हुए राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कहा […]

ललपनिया/महुआटांड़ : लुगुबुरु घांटाबाड़ी धोरोमगाढ़ में संतालियों का 19वां अंतरराष्ट्रीय सरना महाधर्म सम्मेलन का आज दूसरा दिन है. दो दिवसीय महाधर्म सम्मेलन के आखिरी दिन मुख्य अतिथि के रूप में राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू शामिल हुई हैं. राज्‍यपाल करीब 2 बजकर 30 मिनट पर ललपनिया पहुंची.

सम्‍मेलन को संबोधित करते हुए राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि लुगुबुरु धोरोमगाढ़ हमारी गहरी आस्था व विश्वास का केंद्र है. जब छोटी थी तो दादी-नानी लुगुबुरु का बखान करती थी. उन्होंने संतालियों से परंपरा, संस्कृति, भाषा व धर्म के प्रति सजग रहने की अपील की.

समाज के विकास में शिक्षा का अहम स्थान है. शिक्षा को लेकर हमें जागरूक होना होगा. साथ ही दूसरों को भी जो पीछे छूट रहे हैं, उन्हें भी साथ लेकर चलना होगा. तभी सामाजिक विकास को भी बल मिलेगा. कहा कि संताली प्रकृति के उपासक हैं.

हमारे देवतागण खुले आसमान में रहते हैं. ग्लोबल वार्मिंग की समस्या के प्रति सचेत रहने की जरूरत है. भारत के 11 करोड़ आदिवासी नहीं बल्कि सभी का दायित्व है कि वे इस दिशा में सजग रहें. प्रकृति की रक्षा करें. उन्होंने स्व लिखित गीत गाया.

टीटीपीएस फुटबॉल ग्राउंड स्थित हेलीपेड में उतरने के बाद राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया. इसके बाद उनका कारकेड सीधे दोरबार चट्टानी स्थित पुनाय थान पहुंचा. यहां पूरी शिद्दत से अपने आराध्य देवों की पूजा-अर्चना की. फिर आदिवासी बालिकाओं की टोली ने उनका पारंपरिक स्वागत करते हुए गवर्नर को मंच तक लेकर गयीं. महाधर्म सम्‍मेलन में शामिल होने के बाद 3 बजकर 19 मिनट में राज्यपाल मंच से उतरीं और रांची के लिये रवाना हुईं. राज्यपाल के दौरे को देखते हुए बोकारो पुलिस ने सुरक्षा के तगड़े इंतजाम किये थे.

* केन्द्री, सिंगा, नगाड़े और बांसुरी वाद्य यंत्रों के स्टॉल्स में भीड़

सम्मेलन के दौरान आयोजित मेला में संतालियों से जुड़ी पारंपरिक वाद्य यंत्र केन्द्री, सिंगा, बांसुरी, नगाड़े, डुगडुगी आदि, हथियार में तीर धनुष, भाला आदि, वस्त्र, साहित्य व उपन्यास, ओलचिकी की किताबें, पंडित रघुनाथ मुर्मू की जीवनी और अन्य महापुरुषों की गाथा से भरी किताबें मुख्य आकर्षण का केंद्र रहीं.

पारंपरिक साज-सजावट, पूजा अनुष्ठान की सामग्रियां, चांवर, मोरपंख, घोड़ा बाल आदि चार चांद लगा रहे थे. हस्त कला से बनी शॉल व अन्य वस्त्र सामग्रियों के स्टॉल्स भी शोभा बढ़ाते दिखे. श्रद्धालुओं ने मेला का खूब लुत्फ उठाया और जमकर खरीदारी भी की. करोड़ों का कारोबार हुआ.

* 72 घंटे लगातार चला भंडारा

सम्मेलन के मद्देनजर आयोजन समिति द्वारा पूर्व की तरह ऑफिसर्स क्लब में 10 तारीख की शाम से 12 की सुबह तक लगातार भंडारा चलाया गया. लाखों श्रद्धालुओं ने इसका लाभ उठाया. भोजन करने को लंबी-लंबी कतारें थीं.

* चिकित्सा व कानूनी शिविर से लाभान्वित हुए श्रद्धालु

दोरबार चट्टानी व अन्य जगहों पर सीएचसी गोमिया, सीसीएल व अन्य संस्थाओं के माध्यम से करीब पांच मेडिकल कैंप लगे थे. हजारों श्रद्धालु इन कैंपों से लाभान्वित हुए. निःशुल्क दवाइयों का वितरण हो रहा था. इसी तरह कानूनी शिविर से भी श्रद्धालुओं को लाभ पहुंचा.

* रविवार से ही ललपनिया पहुंचने लगे थे श्रद्धालु

सम्मेलन में रविवार से ही श्रद्धालु ललपनिया पहुंचने लगे थे और सोमवार को शाम साढ़े चार बजे तक करीब डेढ़ लाख से अधिक श्रद्धालु देश-विदेश से पहुंच चुके थे. जिससे पूरे इलाके में अभूतपूर्व चहल-पहल देखी जा रही है.

सोमवार को नेपाल से करीब 20 श्रद्धालु और बांग्लादेश से करीब 12 श्रद्धालुओं का जत्था लुगुबुरु पहुंच चुका है. समिति के अध्यक्ष बबुली सोरेन व सचिव लोबिन मुर्मू ने विदेशी श्रद्धालुओं के जत्थे का स्वागत किया. इस तरह असम, ओड़िसा, पश्चिम बंगाल, छतीसगढ़, बिहार, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, सिक्किम आदि राज्यों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं और यह सिलसिला लगातार जारी है.

शाम करीब 5 बजे तक 50 हजार से अधिक श्रद्धालु पूजा अर्चना करने लुगुबुरु गुफा के लिये चढ़ाई शुरू कर चुके थे. समिति के पदाधिकारी व सदस्य, वॉलंटियर्स व्यवस्थाओं को सुचारू रखने को खूब मेहनत कर रहे हैं. प्रशासन के लोग भी जुटे हुए हैं. हर चौक-चौराहे व मेला परिसर तथा पार्किंग एरिया में लाठीधारी महिला-पुरुष बल तैनात हैं.

* जाहेरगढ़ (सरना स्थल) संतालियों का उपासना केंद्र

संतालियों की अपने आराध्यों की उपासना का प्रमुख धार्मिक स्थानों में जाहेरगढ़ होता है. जहां सखुआ के बड़े-बड़े पेड़ होते हैं. यहां संताली अपने सभी देवी-देवताओं का आह्वान कर उनकी पूजा करते हैं. सरहुल हो सोहराय सभी जाहेरगढ़ में मनाते हैं. संताली यहां सर्वप्रथम मरांग बुरु फिर जाहेर आयो, लीट्टा गोसाईं, मोड़े को और तुरुई को देवी-देवताओं की पूजा करते हैं.

खास बात यह भी है कि संताली अपनी उपासना में प्रकृति की सुरक्षा की मन्नत भी मांगते हैं. चूंकि, यहां सरना अनुयायी पूजा करते हैं. इसलिए इस स्थल को आम भाषा में सरना स्थल भी कहा जाता है.

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