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प्रेम की तरलता
कविता विकास स्वतंत्र लेखिका नेत्रहीन बच्चों के महाविद्यालय में स्वरचित कविता पाठ प्रतियोगिता में निर्णायक की भूमिका निभाते हुए मैंने पाया कि आधे से ज्यादा प्रतिभागियों ने मां को अपना विषय बनाया हुआ था.जिन आंखों ने मां को कभी देखा नहीं, उन्होंने इतनी भावपूर्ण कविताएं रची थीं कि वक्ता और श्रोता, सभी भावुक हो गये […]
कविता विकास
स्वतंत्र लेखिका
नेत्रहीन बच्चों के महाविद्यालय में स्वरचित कविता पाठ प्रतियोगिता में निर्णायक की भूमिका निभाते हुए मैंने पाया कि आधे से ज्यादा प्रतिभागियों ने मां को अपना विषय बनाया हुआ था.जिन आंखों ने मां को कभी देखा नहीं, उन्होंने इतनी भावपूर्ण कविताएं रची थीं कि वक्ता और श्रोता, सभी भावुक हो गये थे. प्रेम के एहसास की सबसे गहन अनुभूति जिस रिश्ते में होती है, वह मां है. इस छोटे से शब्द के इर्द-गिर्द सारी दुनिया चलायमान है. उसके बिना एक व्यवस्थित जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती. फिर भी, हर जगह उसकी इज्जत हो रही हो, ऐसा नहीं है.
युवा पीढ़ी को यह बताने की जरूरत है कि मां का स्थान सबसे ज्यादा आदरणीय होता है. घर के कामकाज में उसे फंसी देखकर पिता से उसका स्थान कभी भी कम नहीं आंकना चाहिए. बच्चे अगर मां का आदर करेंगे, तो बहन का भी करेंगे और फिर हर लड़की के लिए उनके मन में इज्जत होगी. प्रेम तभी तरलता से बहता होगा, जब इसकी मर्यादा होगी.
प्रेम अपने चरम सीमा में मां को प्रेमी और प्रेमी को मां जैसा बना देता है. मां ठंडी होती जा रही संवेदनाओं में सुबह की गुनगुनी धूप है, तो पतझड़ की बयार सी शुष्क होती जिंदगी में सावन की फुहार है.
सुबह-सुबह बच्चों की टिफिन में भरवां पराठा पैककर उन्हें पहुंचाना और भागकर फिर पति के लिए कोलेस्ट्रोल-फ्री खाना पैककर समय से उन्हें ऑफिस विदा करना किसी स्त्री के लिए ही संभव है.
खुद भी बन-संवर कर एक सुंदर गृहिणी की तरह बाकी कामों का निष्पादन करना, वह भी इतना सिलसिलेवार तरीके से कि बच्चों के आने के पहले फिर से स्वयं को उनके लिए खाली कर लेती है.
मां के व्यक्तित्व से सीखनेवाली असंख्य बातों में एक बात यह भी है कि उसका प्रेम बेलौस होता है, बेशर्त प्रेम. छत की ढलाई करते समय मजदूर औरतें मंगल गीत गाती हैं, ताकि उनके हाथों से हो रहे भवन निर्माण के बाद उसका मालिक सुख की नींद सो सके.
भला ऐसी उदात्त भावनाएं स्त्री को छोड़कर और किसके पास हो सकती हैं! प्रेम का प्रत्युत्तर प्रेम तो है, पर स्त्रियां केवल देह के नेह से तृप्त नहीं होतीं. उनके पास जो हुनर है, उसका निखार भी चाहती हैं. इसलिए पूरे परिवार का दायित्व है कि उसके मन में उजास भरते हुए उसके सपनों का सम्मान किया जाये. यह मुश्किल नहीं है, बल्कि इतना व्यावहारिक है कि अब बच्चे भी अपनी मां के लिए और पति अपनी पत्नी के लिए नौकरी तलाशने लगे हैं.
मां के अनुराग को पढ़ने की क्षमता परिवार के हर सदस्य में होनी चाहिए. प्रेम को अपनी हथेली में रखकर मां इतना विस्तृत कर देती है कि उसमें तारामंडल समा जाता है. प्रेम जिंदा रहेगा, तो संसार जिंदा रहेगा. आंखों की अंधेरी दुनिया में प्यार का चिराग जलानेवाली उन नेत्रहीन बच्चों की मांओं को शत-शत नमन, जिन्होंने प्रेम को शब्दों में व्यक्त करने की प्रेरणा देकर अपने अस्तित्व का मान बचाये रखा है.
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