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आइपीएल और संसद

II आलोक पुराणिक II वरिष्ठ व्यंग्यकार आइपीएल चल रहा है. संसद न चली इस बार. धुआंधार शोर-शराबा, ये मार वो काट, हो हो हो हो, हू हू हू हू, तेरी तो, जीतेगा भई जीतेगा, मार तमाम हल्ला हो लिया. कहां जी कहां? आइपीएल में भी और संसद में भी. तरह-तरह के कपड़े पहनकर आये बंदे. […]

II आलोक पुराणिक II
वरिष्ठ व्यंग्यकार
आइपीएल चल रहा है. संसद न चली इस बार. धुआंधार शोर-शराबा, ये मार वो काट, हो हो हो हो, हू हू हू हू, तेरी तो, जीतेगा भई जीतेगा, मार तमाम हल्ला हो लिया.
कहां जी कहां? आइपीएल में भी और संसद में भी. तरह-तरह के कपड़े पहनकर आये बंदे. उस ड्रेस में, इस भेष में. कहां पर जी? आइपीएल में भी और संसद में भी.
आइपीएल में तरह-तरह के स्वांग बनाकर बैठते हैं बंदे और इस बार तो तेलगुदेशम पार्टी सांसद तरह-तरह के भेष बनाकर आये. विरोध करने के चक्कर में तेलगुदेशम के सांसदों ने अपनी नाट्य प्रतिभा का भरपूर प्रदर्शन किया. यूं नेता आम और पर बड़े स्तर के नाट्यकर्मी होते हैं. तरह-तरह की ड्रेस पहनकर बंदे आइपीएल के मैचों में भी आते हैं.
आइपीएल तो खेल है जी, हंस-बोलकर चले जाते हैं लोग. तो जी संसद क्या लग रही है आपको? यहां भी लोग हंस-बोलकर चले जाते हैं. जो नेता टीवी स्क्रीन पर एक-दूसरे को खाने को दौड़ते हैं, वो स्क्रीन से बाहर मिल-बांटकर खाते हैं. हंस-बोलकर संसद से भी चले जाते हैं लोग. काम-धाम तो यहां भी ना होता, बस खेल-सा होता दिखता है यहां भी.
मतलब कमाल की बात कर रहे हैं आप, आइपीएल को संसद से क्यों मिला रहे हैं? आइपीएल में बहुत बेकार की बातें होती हैं.आइपीएल के स्टेडियमों में जैसे ही टीवी कैमरा बंदों पर जाता है, वे हाथ हिलाने लगते हैं और तरह-तरह की हरकतें करने लगते हैं.
तो जी संसद में क्या दीखता है आपको? जैसे ही किसी सांसद पर कैमरा जाता है, वह ज्यादा चीखने लगता है. पार्टी बाॅस के आगे नंबर बढ़ाने होते हैं. चीख-चिल्लाहट दोनों जगह एक जैसी होती है. बस यूं है कि संसद में चीयर लीडर ना होते, वो होते, तो संसदीय गतिविधियां ज्यादा दर्शनीय हो जातीं!
ये क्या बकवास कर रहे हैं, संसद में चीयरलीडर लाने की बात कर रहे हैं आप?
जी, बीते कुछ हफ्तों में जो हुआ है संसद में, वह बकवास ही है. सब कुछ बेमतलब हुआ. फोकटी का हो-हल्ला, कोई काम नहीं. चीयर लीडरों को कुछ ठोस काम करना पड़ता है.
एक खास लय पर डांस करना पड़ता है. चीयर लीडर परफाॅर्म करते हैं, तो पैसे मिलते हैं. सांसदों की तरह नहीं हैं कि कुछ ना करो, तो भी सैलरी-भत्ते मिलते हैं. सांसदों को यह छूट हासिल है कि कुछ ना करें, तो भी अपनी सैलरी बढ़ाने का हक उन्हें हासिल होता है. ऐसा हक चीयर लीडरों को हासिल नहीं है.
देखिए, संसद और आइपीएल टूर्नामेंट को एक स्तर पर न रखिए. दोनों का इतिहास अलग-अलग है.जी, ठीक कहा आपने. संसद चले या ना चले, अब आम पब्लिक को बहुत फर्क नहीं पड़ता है. आइपीएल मैचों का हाल यह है कि एक मैच भी कैंसल हो जाये, तो पब्लिक परेशान हो लेती है. मैचों के स्पांसर परेशान हो लेते हैं. संसद के चलने या ना चलने का कोई फर्क किसी को नहीं पड़ता जी!

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