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अथ श्री खिचड़ी कथा

मुकेश कुमार व्यंग्यकार सब खिचड़ी खिचड़ी हल्ला मचाये जा रहे हैं, पर खिचड़ी की कोई सुनता ही कहां है? कोई खिचड़ी को ब्रांड, कोई खिचड़ी को मुफलिसी का निशान तो कोई कुछ और ही बता रहा है. लेकिन, कोई खिचड़ी की सुन नहीं रहा, सब अपने ही गाये- बजाये जा रहे हैं. ऐसा देखकर खिचड़ी […]

मुकेश कुमार

व्यंग्यकार

सब खिचड़ी खिचड़ी हल्ला मचाये जा रहे हैं, पर खिचड़ी की कोई सुनता ही कहां है? कोई खिचड़ी को ब्रांड, कोई खिचड़ी को मुफलिसी का निशान तो कोई कुछ और ही बता रहा है. लेकिन, कोई खिचड़ी की सुन नहीं रहा, सब अपने ही गाये- बजाये जा रहे हैं. ऐसा देखकर खिचड़ी बड़ी उदास है! आखिर क्यों न हों वह उदास. सबका एक दिन आता है, जब खिचड़ी के जश्न का दिन आया, तो लगे उसका मजाक बनाने लगे! जबकि सब अपने मतलब की खिचड़ी पकाने में लगे रहते हैं. अरे भई, अब बीरबल की खिचड़ी का जमाना रहा नहीं.

क्या आपने सोचा है कि आपकी जिंदगी में यह खिचड़ी कितनी अंदर तक धंस गयी है. अब यह आपकी थाली से निकल आपकी पहचान बन गयी है. खिचड़ी बाल, खिचड़ी पार्टी (गठबंधन सरकार), खिचड़ी-संस्कृति आदि-आदि. यह अलग बात है कि आप खिचड़ी पसंद नहीं करते, इसे मजबूरी में खाते हैं. या तो जब मैडम को कुछ बनाने का मन ना करे या फिर आपकी अंतड़ियों को कुछ पचाने का.

जिंदगी के पन्नों को पलट कर देखिये तो हुजूर! कितना साथ निभाया है इस बेचारी खिचड़ी ने. विद्यार्थी जीवन हो या फिर बेकारी के दिन, जब कुछ नहीं था तो खिचड़ी ही थी. उस गरीब का सोचिये, जिसके पास ‘दाल और हल्दी’ तक नहीं, तो यह खिचड़ी अपना रंग और नाम बदलकर ‘मड़गिल्ला भात’ हो जाती है. आप खिचड़ी की ताकत को अंडर-एस्टीमेट कर कॉमन मैन की ताकत को भूल रहे हैं. अभी आप भूल सकते हैं, क्योंकि आप बलशाली हैं धनशाली हैं.

लेकिन, जरूरत में आप नहीं भूल पाइयेगा. तब बड़े प्यार से आपको दुलारने-पुचकारने मूंग दाल की पतली-पतली खिचड़ी ही आयेगी. उसके बाद चाहे आप पत्थर भी पचाने लगे. ‘ओट्स और दलिया’ यह जो कुछ लोगों के चोचले हैं न, यह भी खिचड़ी की सगी बहनें हैं. अंग्रेजी में यह कहके कभी मत उछलियेगा की ‘आइ डोंट लाइक खिचड़ी, आइ लाइक ओट्स’, क्योंकि यह कहकर तब भी आप खिचड़ी के पास ही जा रहे होते हैं.

यह खिचड़ी किसी के लिए भूख की पहली आवाज है, तो किसी के लिए लग्जरी भी है! आप पूछियेगा कैसे? गरीब की खिचड़ी के साथ सिर्फ आलू का चोखा, लेकिन अमीर की खिचड़ी में पांच तरह की दाल, उसमें गोभी, टमाटर, छिम्मी-मटर और बनने के बाद देशी घी का तड़का, उसके बाद भी खिचड़ी के और भी शृंगार हैं.

याद है न वह कहावत- ‘खिचड़ी के चार यार- घी, पापड़, दही, अचार’. अब कौन गरीब इतना ताम-झाम जुटा पायेगा. उसे स्वाद नहीं, केवल तृप्ति चाहिए.खिचड़ी की दरियादिली तो देखिये कि महल हो या कुटिया, हर जगह रच-बस जाती है. खिचड़ी की महिमा यही नहीं रुकती.अगर मंदिर में बंट जाये, तो ‘महा-प्रसाद’, स्कूल में बंट जाये तो ‘मिड-डे-मील’ और अगर राहत-शिविरों में बंट जाये, तो ‘भूखों की पहली आस’ है यह खिचड़ी.

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