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छोटी बचत योजनाओं का महत्व

डॉ जयंतीलाल भंडारी अर्थशास्त्री jlbhandari@gmail.com पिछले छह वर्षों में छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में लगातार कमी के बाद हाल ही में 20 सितंबर को केंद्र सरकार ने अक्तूबर-दिसंबर तिमाही के लिए छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में 0.40 फीसदी तक का इजाफा किया है. अतएव अब छोटी बचत योजनाओं पर भी ब्याज […]

डॉ जयंतीलाल भंडारी
अर्थशास्त्री
jlbhandari@gmail.com
पिछले छह वर्षों में छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में लगातार कमी के बाद हाल ही में 20 सितंबर को केंद्र सरकार ने अक्तूबर-दिसंबर तिमाही के लिए छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में 0.40 फीसदी तक का इजाफा किया है.
अतएव अब छोटी बचत योजनाओं पर भी ब्याज दर बढ़ाकर छोटी बचत योजनाओं पर मिलनेवाले रिटर्न को लाभप्रद बनाये जाने की घोषणा की गयी है. इन योजनाओं में पीपीएफ, राष्ट्रीय बचत पत्र (एनएससी) और किसान विकास पत्र शामिल हैं. साल 2012 के बाद पहली बार छोटी योजनाओं पर ब्याज दर बढ़ी है. हालांकि, बचत जमाओं पर ब्याज दर सालाना चार प्रतिशत पर ही बनी हुई है.
निश्चित रूप से छोटी बचत योजनाओं की ब्याज दरों में वृद्धि से सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ेगा, लेकिन महंगाई और अपनी सामाजिक सुरक्षा से चिंतित करोड़ों छोटे बचतकर्ताओं को फायदा मिलेगा. यदि हम छोटी बचत संबंधी आंकड़ों को देखें, तो वर्ष 2012-13 के बाद बचत दर लगातार घटती गयी है.
पिछले कुछ वर्षों में लोगों के बढ़ते हुए खर्च और बचत योजनाओं में ब्याज की कमाई का आकर्षण बहुत कम हो जाने के कारण घरेलू बचत दर घटती गयी है. नवीनतम आंकड़े संकेत दे रहे हैं कि भारत की बचत दर चिंताजनक है. वित्त वर्ष 2007-08 के दौरान जो सकल घरेलू बचत दर 36.8 फीसदी थी, वह लगातार घटते हुए वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान 29.8 फीसदी हो गयी.
बचत की जरूरत इसलिए है, क्योंकि हमारे यहां विकसित देशों की तरह सामाजिक सुरक्षा का ताना-बाना नहीं है. बेटी की शादी, रीति-रिवाजों की पूर्ति, बच्चों की पढ़ाई और सेवानिवृत्ति के बाद का जीवन आदि के मद्देनजर छोटी बचत योजनाएं करोड़ों लोगों की सामाजिक सुरक्षा का प्रमुख आधार रही हैं.
छोटी बचत योजनाएं रिटायर हो चुके और डिपोजिट पर मिलनेवाले ब्याज पर निर्भर बुजुर्ग पीढ़ी का सहारा बनती हैं. देश में किसी कारगर सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था के अभाव में यह बचत ही बुजुर्गों की आय को महंगाई से बचाती है. जिन लोगों को महंगाई सूचकांक के आधार पर पेंशन मिलती है, उनके लिए छोटी बचत योजनाओं की अहमियत से इनकार नहीं किया जा सकता.
निश्चित रूप से छोटी बचत योजनाएं लोगों में बचत की आदत डालती हैं. ये योजनाएं लंबी अवधि के निवेश का विश्वसनीय माध्यम होती हैं और इनसे सरकार को अपनी विकास योजनाओं के लिए फंड भी हासिल होता है. वर्ष 2008 की वैश्विक मंदी का भारत पर कम असर होने के पीछे भारतीयों की बचत महत्वपूर्ण मानी गयी थी. एक बार फिर वर्ष 2018 के अंतिम महीनों में अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते ट्रेड वार के कारण वैश्विक मंदी की आशंका के बीच भारत में घरेलू बचत का महत्व बढ़ गया है.
विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत में बचत को उत्पादक निवेश और अच्छे रिटर्न वाले निवेश में लगाये जाने का लाभप्रद परि²दृश्य दिख रहा है. हाल ही में नेशनल सेविंग्स इंस्टीट्यूट (एनएसआई) के द्वारा प्रस्तुत भारत में बदलते हुए निवेश की प्रवृत्ति रिपोर्ट-2018 में कहा गया है कि देश के लोग अब सोना खरीदने, रियल एस्टेट में निवेश करने की जगह छोटी बचत योजनाओं में तुलनात्मक रूप में बड़ा निवेश कर रहे हैं.
वर्ष 2011-12 में जहां छोटी बचत योजनाओं के समूह राष्ट्रीय लघु बचत निधि (एनएसएसएफ) में कुल निवेश महज 31 अरब रुपये था, वहीं यह 2017-18 में बढ़ते हुए 1,550 अरब रुपये के स्तर तक पहुंच गया. इसको भी कई गुना बढ़ाया जा सकता है, क्योंकि देश की विकास दर बढ़ गयी है, और लोगों के हाथों में पैसे भी आ रहे हैं.
बीते एक सितंबर को भारतीय डाक भुगतान बैंक (आईपीपीबी) का शुभारंभ हुआ है. इसका प्रमुख उद्देश्य डाकघर की शाखाओं के व्यापक तंत्र का उपयोग करके आम आदमी के दरवाजे तक बैंकिंग सेवाएं पहुंचाना है.
आईपीपीबी डाक विभाग की पहल है, जिसकी शत-प्रतिशत हिस्सेदारी सरकार के पास है. इस बैंक के पास 1.55 लाख डाकघर और तीन लाख से अधिक डाकिये हैं, जिन्हें बैंक संबंधी कामकाज का प्रशिक्षण दिया गया है. अब करोड़ों लोगों को डाक विभाग की बैंकिंग और डाक विभाग की बचत योजनाएं घर बैठे सरलता से प्राप्त होंगी. आईपीपीबी को नये ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए अधिक प्रयास नहीं करने पड़ रहे हैं, क्योंकि डाकघरों में पहले से ही 17 करोड़ बचत खाते हैं.
इस डाक बैंक की ओर ग्रामीण क्षेत्रों के उपभोक्ताओं की रुचि बढ़ेगी, क्योंकि अब भी ग्रामीणों के लिए सरकारी और निजी क्षेत्र के बैंकों में बैंकिंग संबंधी कार्य मुश्किल भरा है. आईपीपीबी के कार्य शुरू करने के बाद छोटी बचत योजनाओं पर अधिक ब्याज दर के आकर्षण के कारण अधिक लोगों की अधिक बचत संग्रहित हो सकेगी.
ऐसे दौर में, जब सामाजिक-आर्थिक विकास ने भारत के ग्रामीण इलाकों की तस्वीर बदल दी है, आईपीपीबी ग्रामीण परिवारों की बढ़ी हुई कमाई में से बचत वाले भाग को सरलता से संग्रहित करके उसे बड़े पैमाने पर उत्पादक निवेश का रूप दे सकेगा. निश्चित रूप से छोटी बचत योजनाओं पर छह वर्ष बाद एक अक्तूबर 2018 से ब्याज दर बढ़ाने का निर्णय देश में बचत की प्रवृत्ति को बढ़ावा देगा. इससे बचत बढ़ेगी.
बचत आधारित निवेश बढ़ेगा. सामाजिक सुरक्षा के लिए नया विश्वास पैदा होगा. कुल मिलाकर छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दर में वृद्धि आम आदमी से लेकर अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत है.

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