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गुमनाम हैं अधिकांश सेनानियों के परिजन

आजादी के दीवानों के वंशजों की दास्तां-1 हम जंग-ए-आजादी के मशहूर नायकों को तो जानते हैं, मगर भारत के स्वाधीनता संग्राम में हजारों अनाम और अल्पज्ञात साहसी लोगों ने भी अपनी शहादत दी है. उनके जीवन की आहूति के वजह से ही भारत का रूप-रंग निखरा है. स्वाधीनता संग्राम के नायकों की ऐसी अनेक स्मृतियां […]

आजादी के दीवानों के वंशजों की दास्तां-1

हम जंग-ए-आजादी के मशहूर नायकों को तो जानते हैं, मगर भारत के स्वाधीनता संग्राम में हजारों अनाम और अल्पज्ञात साहसी लोगों ने भी अपनी शहादत दी है. उनके जीवन की आहूति के वजह से ही भारत का रूप-रंग निखरा है. स्वाधीनता संग्राम के नायकों की ऐसी अनेक स्मृतियां है, जिन्हें उनके वंशजों ने संजो रखी हैं. आज पढ़िए पहली कड़ी.

।। अशफाकउल्ला खां ।।

काकोरी कांड के नायक अशफाकउल्ला खां के परपोते हैं 45 वर्षीय अशफाकउल्लाह. उत्तर प्रदेश के शाहजहां पुर में रहते हैं. अपने दादा के नाम पर कई धर्मार्थ (चैरिटेबल) संस्थान चलाते हैं. अशफाक को दर्द है कि उनके दादा के बारे में मौजूदा भारत के लोगों को बहुत ही कम जानकारी है.

उनकी विचारधारा की गहराई के बारे में भी लोगों को पता नहीं है. वह राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां की दोस्ती का जिक्र करते हुए बताते हैं कि एक बार पंडित राम प्रसाद बिस्मिल हवन कर रहे थे.

कुछ मुसलमान युवक उसमें विघ्न डालना चाहते थे. अशफाकउल्ला खां ने न सिर्फ उनलोगों को रोका, बल्कि कहा कि बिना मेरी लाश पर गुजरे वे लोग ऐसा नहीं कर सकते हैं. आज के सांप्रदायिक माहौल में लोगों को ऐसी कहानियां क्यों नहीं सुनाई-बतायी जाती हैं? क्यों हम ऐसे नायकों को सिर्फ काकोरी कांड की घटना मात्र से जोड़ कर सीमित कर देते हैं?

।। विनायक दामोदर सावरकर ।।

31 वर्षीय सात्यिक सावरकर वीर विनायक दामोदर सावरकर के परपोते हैं. पुणो में रहते हैं. एक सॉफ्टवेयर फर्म में टेक्निकल सपोर्ट इंजीनियर हैं. वीर सावरकर उनके दादा के सगे भाई थे. स्वाधीनता सेनानी सावरकर वर्षो तक अंडमान के सेल्यूलर जेल में बंद रहे.

उन्हें महात्मा गांधी की हत्या के षड्यंत्र रचने के मामले में गिरफ्तार किया गया था, बाद में उन्हें साक्ष्य के अभाव में रिहा कर दिया गया था. जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें कभी स्वीकार नहीं किया. जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधान मंत्री बने, तब जाकर उन्हें स्वतंत्रता सेनानी पेंशन मिलनी शुरू हुई.

सात्यिक को भी लगता है कि उनके दादा वीर सावरकर को ठीक से समझा ही नहीं गया. वह बताते हैं कि जब मैं स्कूल जाता था, तो लोग मुझसे अक्सर पूछते कि सावरकर ने ऐसा क्यों किया. मैं ऐसी बातें सुन कर झुंझला जाता था.

नाराज होता था. मुझे अपने दादा की विरासत को समझने और सराहने में काफी वक्त लगा. यह बिल्कुल ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि उन्हें सिर्फ एक नजरिये से देखा गया. उनके व्यक्तित्व के अन्य पहलुओं को नजरअंदाज कर दिया गया.

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