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संथाली भाषा और साहित्य का विस्तार

गणेश मुर्मू जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग, विनोबा भावे विवि, हजारीबाग संथाली या होड़ भाषा भारत की एक प्राचीन भाषा है. यह अत्यधिक विकसित साहित्यिक और पूर्व-वैदिक काल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है और यह वर्तमान में एस्ट्रो-एशियाई समूहों के एस्ट्रो-एशियाई परिवार की मुंडा भाषा के अंतर्गत आती है. परंपरागत संथाली भाषा और साहित्य का […]

गणेश मुर्मू
जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग, विनोबा भावे विवि, हजारीबाग
संथाली या होड़ भाषा भारत की एक प्राचीन भाषा है. यह अत्यधिक विकसित साहित्यिक और पूर्व-वैदिक काल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है और यह वर्तमान में एस्ट्रो-एशियाई समूहों के एस्ट्रो-एशियाई परिवार की मुंडा भाषा के अंतर्गत आती है. परंपरागत संथाली भाषा और साहित्य का विकास और प्रचार 1870-75 के बाद से कुछ विदेशी साहित्य प्रेमियों द्वारा शुरू किया गया. आगे चल कर जी आर्चर ने 1940 के दशक की शुरुआत में संथाल कविता का उल्लेखनीय संग्रह किया.
उन्होंने जनजातीय कविता के विशेष संदर्भ के साथ भारत की साहित्यिक परंपरा के प्रति महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उसके बाद बहुत सारे नाटक, लोककथा, लोकगीत, संथाली शब्दकोश और पारंपरिक साहित्य प्रकाशित किया गया.
संथाली भारत की एक आधिकारिक भाषा है. इसे 22 दिसंबर 2003 को भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया. आज के दिन संथाली भाषा दिवस मनाया जाता है. संथाली लिपि ओलचिकी फोंट को विश्व स्तर पर संस्करण 5.1.0 के रिलीज के साथ चार अप्रैल, 2008 को विश्व स्तर पर यूनिकोड मानक से जोड़ा गया. ‘भारतीय भाषाओं के लिए प्रौद्योगिकी विकास’ (टीडीआईएल) द्वारा दिल्ली में आठ सितंबर, 2009 को सार्वजनिक डोमेन में संथाली ओलचिकी सॉफ्टवेयर टूल्स जारी किया गया.
संथाली भाषा साहित्य के डिजिटलाइजेशन एवं विकास के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों द्वारा कार्य हो रहा है, जिनमें मुख्य रूप से ओलचिकी सॉफ्टवेयर विकास परियोजनाएं शामिल हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यूनिकोड कंसोर्टियम का कार्य आमेरिका द्वारा संथाली में विकिपीडिया का ओलचिकी में कार्य, एशिया और अफ्रीका की भाषाओं और संस्कृतियों के अध्ययन के लिए संस्थान (आईएलसीएएए), टोक्यो यूनिवर्सिटी ऑफ फॉरेन स्टडीज द्वारा ओलचिकी कन्वर्टर पर सॉफ्टवेयर बनाने का कार्य चल रहा है.
सीबीजी, सुंदरबर्ग, स्वीडन द्वारा संथाली कंप्यूटर एडेड ट्रांसलेशन (सीएटी) के लिए काम शुरू किया गया है. लायनब्रिज प्रौद्योगिकी, विंटर स्ट्रीट, मैसाचुसेट्स द्वारा ओलचिकी लिपि में संथाली भाषा गुणवत्ता निरीक्षण के लिए कार्य हो रहा है, जो त्रुटियों की तलाश करते हैं.
सिंपल डाइरेक्टमीडिया लेयर (एसडीएल), मेडेनहेड, यूके, ओएलजी और 3डी के माध्यम से ऑडियो, कीबोर्ड, माउस, जॉयस्टिक और ग्राफिक्स हार्डवेयर को निम्न स्तर की पहुंच प्रदान करने के लिए ओलचिकी सामग्री प्रबंधन और भाषा अनुवाद सॉफ्टवेयर के लिए काम कर रहा है. लंदन की एक कंपनी द्वारा संथाली में ओलचिकी स्क्रिप्ट के साथ स्मार्टफोन, टैबलेट और क्लासिक फोन बनाया गया है. स्वयं का लेखन प्रणाली होने से भाषा संरक्षण में मदद मिलती है और इसके बोलनेवालों को भी समाज में सही स्थान मिलता है.
संथाली साहित्य राष्ट्र-प्रेम की भावना से ओत-प्रोत है. अपनी संस्कृति के प्रति गौरव-बोध वस्तुत: राष्ट्रीय अस्मिता का हिस्सा है और राष्ट्रीय अस्मिता राष्ट्र-बोध का अभिन्न हिस्सा है. प्रगति, विकास, संस्कृति, इतिहास-भूगोल आदि की जड़ भाषा होती है और भाषा को समृद्ध साहित्य ही करता है.
साहित्य वर्तमान को कलात्मक एवं यथार्थ रूप में समाज के सम्मुख प्रस्तुत करता है. मनुष्य चाहे जितनी प्रगति कर ले, पर जब तक वह भीतर से सभ्य नहीं होता, तब तक उसकी प्रगति नहीं हो सकती. बाहरी सभ्यता भौतिक प्रगति को दर्शाती है, तो भीतरी सभ्यता मानवता को. समाज की आंतरिक और बाह्य प्रगति के लिए साहित्य हमेशा कल्पवृक्ष सिद्ध होता है.
संथाली साहित्य आदिवासी, गैर-आदिवासी साहित्य की अध्ययन परंपरा को विभाजित नहीं करती है. चूंकि उनका जीवनदर्शन किसी भी विभाजन के पक्ष में नहीं है, उनके समाज में समरूपता और समानता है, इसलिए उनका साहित्य भी विभाजित नहीं है. वे अपने साहित्य को ‘ऑरेचर’ अर्थात् ऑरल+लिटरेचर कहते हैं. उनका कहना है कि आज का लिखित साहित्य भी उनकी वाचिक यानी पुरखा साहित्य की परंपरा का ही साहित्य है.

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