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#WorldHealthDay आत्महत्या में रोमांच नहीं, यह अवसाद का है परिणाम

आज विश्व स्वास्थ्य दिवस है, ऐसे में यह बात विचार करने योग्य है कि आखिर क्यों लोग आत्महत्या करते हैं. भारत में आत्महत्या की घटनाएं और विशेषकर युवाओं में बढ़ती आत्महत्या की घटनाएं खतरे की घंटी है. कुछ ही दिनों पहले सरकार ने आत्महत्या को अपराध की श्रेणी से अलग कर दिया है, ऐसे में […]

आज विश्व स्वास्थ्य दिवस है, ऐसे में यह बात विचार करने योग्य है कि आखिर क्यों लोग आत्महत्या करते हैं. भारत में आत्महत्या की घटनाएं और विशेषकर युवाओं में बढ़ती आत्महत्या की घटनाएं खतरे की घंटी है. कुछ ही दिनों पहले सरकार ने आत्महत्या को अपराध की श्रेणी से अलग कर दिया है, ऐसे में यह आशंका भी जतायी जा रही है कि आत्महत्या की घटनाएं और बढ़ेंगी.

हर साल विश्व में आठ लाख लोग करते हैं सुसाइड
प्रतिवर्ष विश्व में आठ लाख लोग सुसाइड करते हैं, जिनमें से भारत में 135,000 लोग सुसाइड करते हैं, जो कुल आंकड़े का 17 प्रतिशत है. चौंकाने वाली बात यह है कि भारत में आत्महत्या की घटनाएं लगातार बढ़ रहीं हैं. भारत सरकार ने वर्ष 2010 में जो आंकड़ा जारी किया था उसके अनुसार प्रतिवर्ष देश में 134,600 सुसाइड की घटनाएं हो रही हैं.
युवाओं में बढ़ रही है आत्महत्या की प्रवृत्ति
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार भारत में सुसाइड करने वालों में 18-30 वर्ष के 44,870 लोग हैं. यह स्थिति बहुत बड़े संकट का सूचक है. भारत को युवाओं का देश माना जाता है, जहां विश्व में सबसे ज्यादा युवाओं की आबादी है. ऐसे में युवाओं का अवसादग्रस्त होकर आत्महत्या करना खतरे की घंटी है. कुछ ऐसी घटनाएं भी सामने आयीं हैं, जिसमें युवा आत्महत्या को खेल की तरह ट्रीट करते हैं और जीवन से हाथ धो बैठते हैं. अभी दो-तीन पहले ही मुंबई से यह खबर आयी थी कि एक 24 साल के युवक ने फेसबुक पर लाइव कर 19वीं मंजिल से छलांग लगा दी .
स्किजोफ्रेनिया के शिकार लोग करते हैं आत्महत्या
मनोचिकित्सकों का मानना है कि स्किजोफ्रेनिया यानी खंडित मानसिकता एक मानसिक बीमारी है, जिसमें लोग बहुत लंबे समय समय तक अवसादग्रस्त रहते हैं और परिणति आत्मत्या के रूप में होती है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार पारिवारिक विवाद, बेरोजगारी, परीक्षा में असफलता, प्रेम संबंध, शारीरिक उत्पीड़न, संपत्ति विवाद आदि ऐसे कारण है जिनके कारण लोग आत्महत्या करते हैं.
कैसे रोका जाये आत्महत्या करने वालों को
आत्महत्या करने वालों की मानसिक स्थिति हमें समझने होगी, साथ ही उसे समय देना होगा, ताकि वो खुद को अकेला महसूस ना करें. मनोचिकित्सकों की राय है कि आत्महत्या करने वालों को हम इस तरह से रोक सकते हैं.
बातचीत : अगर आपको लगता है कि कोई सुसाइड कर सकता है, तो उससे सीधा पूछिए क्या वह सुसाइड करने की सोच रहा है. ऐसा करने से घबराएं नहीं, क्योंकि आपकी बातचीत से पीड़ित व्यक्ति को सहारा मिलेगा और उसे लगेगा कि कोई है जो उसकी चिंता करता है.
सुनें और समय दें: अगर उक्त व्यक्ति कहता है कि वह सुसाइड करना चाहता है, तो उसे सुनें और उसे समय दें. उसे पूरा समय दें कि वह अपनी बात रख सके. इससे उसका दुख कम होगा आप उसे पूरा समय दें.
मनोचिकित्सक की राय लें : कोई भी व्यक्ति जब अवसाद ग्रस्त होता है तो सुसाइड जैसी बात उसके मन में आती है. ऐसे में यह जरूरी है कि आप उसकी मदद करें और उसे मनोचिकित्सक के पास लेकर जायें, ताकि उसे उचित सलाह मिल सके और वह अवसाद से उबर सके.

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