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उत्तराखंड हाइकोर्ट ने हरीश रावत सरकार के कल होने वाले बहुमत परीक्षण पर लगायी रोक

नैनीताल : उत्तराखंड हाइकोर्ट की डिविजन बेंच नेकल 31 मार्च को उत्तराखंड विधानसभा में होने वाले हरीश रावत सरकार के बहुमत परीक्षण पर रोक लगा दी. अब इस मामले की सुनवाई अदालत छहअप्रैल को करेगी. उत्तराखंड हाइकोर्ट ने केंद्र सरकार से यहभी पूछा कि आखिर उसे राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने कीजल्दी क्यों थी? अदालत […]

नैनीताल : उत्तराखंड हाइकोर्ट की डिविजन बेंच नेकल 31 मार्च को उत्तराखंड विधानसभा में होने वाले हरीश रावत सरकार के बहुमत परीक्षण पर रोक लगा दी. अब इस मामले की सुनवाई अदालत छहअप्रैल को करेगी. उत्तराखंड हाइकोर्ट ने केंद्र सरकार से यहभी पूछा कि आखिर उसे राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने कीजल्दी क्यों थी? अदालत ने कहा कि सदन के पटल पर बहुमत परीक्षण सबसे अच्छा रास्ता हो सकता है. उल्लेखनीय है कि उत्तराखंडमें सरकार बचाने-गिराने को लेकर कांग्रेस-भाजपा में चल रही तीखी राजनीतिक लड़ाई राजनीतिक मैदान केअलावा अदालत के अंदर भीकानूनीरूप से लड़ी जा रही है. इस मामले में आज नैनीताल स्थित उत्तराखंड हाइकोर्ट में आज डबलबेंच के सामने सुनवाई हुई. केंद्र का पक्ष अटार्नी जनरल मुकुल रहतोगीनेरखा. दिन में इस मामले की सुनवाई के दौरान रहतोगी ने कोर्ट से आग्रह कियाथा कि बहुमत साबित करने के फैसले कोकमसे कम तीन दिनों के लिए टाल दिया जाए.

मालूम हो कि कल ही उत्तराखंड हाइकोर्ट की सिंगल बेंच ने 31 मार्च को हरीश रावत सरकार को विधानसभा के पटल पर बहुमत साबित करने का फैसला सुनाया था.

शाम में आठ बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वदेश में अनुपस्थिति के कारण गृहमंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट की बैठक होगी. समझा जाता है कि इस बैठक में केंद्र सरकार उत्तराखंड के संबंध में कोई अहम निर्णय ले सकती है.

इधर कांग्रेस के बागी विधायक सुबोध उनियाल की याचिका पर नैनीताल हाई कोर्ट 1 अप्रैल को सुनवाई करेगा. टीवी रिपोर्ट के अनुसार विधानसभा अध्यक्ष द्वारा 9 बागी विधायकों को बरखास्त करने के मामले में विधायकों ने आदेश को चुनौती देते हुए न्यायालय में याचिका दाखिल की गयी थी. इसी मामले पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति यू.सी.ध्यानी की एकलपीठ ने मामले की सुनवाई के लिए 1 अप्रैल की तिथि तय की और स्टे देने से इनकार कर दिया.


उत्तराखंड में सत्ता की लड़ाई के अबतक के बड़े डेवलपमेंट

मंगलवार को उत्तराखंड हाइकोर्टकीसिंगल बेंच ने फैसला दिया कि हरीश रावत सरकार31 मार्च को विधानसभा मेंबहुमतसाबित करे और इसमेंकांग्रेसके नौ बागी विधायकों को भी वोट रखने का मौका दिया जाये. हालांकिबंदलिफाफे में पड़ने वाले इनवोटों में बागियों के वोटों को शामिल करने परफिलहाल रोक लगा दी गयी.

हाइकोर्ट के इस फैसले के दो पक्ष थेऔर कांग्रेस-भाजपाको जो अंश सूट किया उससे वे खुशहुए और वैसे अंश जो उसके खिलाफ हैं, उसे डबल बेंच के सामने चुनौती देने का भी फैसला लिया. बहुमत साबित करने के फैसले को कांग्रेस ने स्वीकार किया, लेकिन बागी विधायकों को सदन में आने व वोट करने के फैसले को कांग्रेस ने चुनौती देने की बात सूत्रों के हवाले से कही. वहीं, भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने खुद के द्वारा लगाये गये राष्ट्रपति शासन को सही करार देने और बहुमत साबित की जरूरत नहीं हाेने की दलील पेश करने के लिए डबल बेंच में अपील की.

मंगलवार देर शाम केंद्र सरकार ने उत्तराखंड के लिए संसद के बजट सत्र का सत्रावसान कर दिया, ताकि केंद्र उत्तराखंड में पहली अप्रैल के बाद व्यय की अनुमति से संबंधित अध्यादेश जारी कर सके. ध्यान रहे कि एक अप्रैल से नया वित्तीय वर्ष शुरू होता है और केंद्र संसद सत्र के जारी रहते अध्यादेश जारी नहीं कर सकता. गृहमंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाली मंत्रिमंडल की संसदीय कार्य समिति ने यह फैसला लिया. बाद में संसदीय कार्य मंत्री वेंकैया नायडू ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मिल कर इस फैसले से उन्हें अवगत कराया और उत्तराखंड की स्थिति के बारे में जानकारी दी.

71 विधानसभासीट वाली उत्तराखंड विधानसभा में कांग्रेस के 36 विधायक हैं, जिनमें नौ विधायकों के बागी होने से पिछले दिनों हरीश रावत सरकार अल्पमत में आ गयी. यह बगावत पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा व औद्योगिक विकास मंत्री का पद पाने से वंचित रहे हरक सिंह रावत के नेतृत्व में हुई. हरक सिंह रावत ने बाद में एक सीडी जारी कर मुख्यमंत्री हरीश रावत पर विधायकों को खरीदने व धमकाने का आरोप लगाया, जिसे हरीश रावत व कांग्रेस ने झूठ बताया.

कांग्रेस के बागी विधायक खुले तौर पर भाजपा के नेताओं के साथ घूमते देखे गये. कांग्रेस और भाजपा दोनों ने राष्ट्रपति से मिल कर अपना-अपना पक्ष भी रखा. केंद्र सरकार ने जहां राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने का फैसला किया, वहीं विधानसभा अध्यक्ष ने नौ बागी विधायकों को सस्पेंड कर दिया. दोनों फैसले इस तरह लिये गये कि यह संशय बन गया कि पहले कौन-सा फैसला लिया गया. बाद में भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार व कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकारदोनों इस मामले में अदालत में चली गयी.

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