मुंबई : महाराष्ट्र के सुदूर क्षेत्र की नौ लड़कियों को बाल विवाह रोकने और अन्य लड़कियों को इस कुरीति से लड़ने में उनकी मदद करने के लिए आज संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के नवज्योति पुरस्कारों से सम्मानित किया गया.मुंबई में यूनिसेफ प्रमुख राजेश्वरी चंद्रशेखर ने आज यहां कहा, ‘‘नवज्योति युवतियों की उपलब्धियों को दर्शाने का एक राज्यस्तरीय मंच है जो अपने समुदायों में बदलाव के दूतों के लिए आदर्श भूमिका अदा करती हैं.’’ माओवाद प्रभावित गढ़चिरौली जिले की 15 वर्षीय सुनीता वचामी का सपना आईपीएस अधिकारी बनने का है और उसने इसे पूरा करने के लिए अपनी शादी कराने के सभी प्रयासों को नाकाम कर दिया.
जब सुनीता के बड़े भाई बहन ने उसके सामने शादी करने या माओवादियों में शामिल हो जाने में से एक विकल्प चुनने को कहा तो उसने इन दोनों के बजाय शिक्षा को चुना. फिलहाल भामरागढ़ में सरकारी आवासीय कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में पढ़ रही सुनीता ने कहा, ‘‘मैंने स्कूल की पढ़ाई छोड़ने से मना कर दिया. मैंने उन्हें बताया कि मैं अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती हूं और आईपीएस अधिकारी बनना चाहती हूं.’’ कक्षा 10वीं में पढ़ रही आशा तोंडे मुंबई के परभनी जिले के एक गांव से यह पुरस्कार लेने आई.
खेतिहर मजदूर की चार संतानों में से एक आशा 16 साल की है और कम उम्र में अपनी बहनों की शादी होने के बाद उनकी हालत से बुरी तरह प्रभावित हुई.इनमें से कुछ लड़कियां न केवल अपने शिक्षा के अधिकार के लिए लड़ीं बल्कि उन्होंने दूसरी लड़कियों को भी इसे मुहिम के तौर पर चलाने को कहा. 17 साल की माधुरी पवार जालना के निवदुंगा गांव में पहली बार कक्षा 12वीं तक पहुंचने वाली लड़कियों में शामिल है. इसी तरह यवतमाल में हिवरदारा गांव की 16 साल की रोशना ने न केवल अपनी शादी कम उम्र में होने से रोकी बल्कि गांव की अनेक लड़कियों को इस कुरीति का शिकार होने से बचाया. जब उसके रिश्तेदारों ने 2012 में उसकी शादी करने की कोशिश की तो उसने पुलिस को बुलाने और दुल्हे को जेल भेजने की चेतावनी दी.